-दीपक रंजन दास
जब तक इंसान जंगलों में भागता फिरता था, वह नियम कानून से मुक्त था. जैसे ही उसने ठहर कर घर बसाना सीखा, अपने लिये कुछ कायदे कानून भी बना लिये. काम का बंटवारा भी कर लिया. मैदानों में रहने आया तो इन कायदा कानूनों में कुछ इजाफा हो गया. मोहल्ला बना, फिर गांव बसा. अलग-अलग हुनर वालों के समूह भी बन गये. विकास का पहिया घूमता रहा. सड़कें बनीं तो उसपर चलने के लिए नियम भी बने. भीड़ बढ़ी तो मकान के ऊपर मकान बनने लगे. सड़कों पर भीड़ बढ़ी तो डिवाइडर और बैरिकेड लगाने पड़े. वाहनों की रफ्तार बढ़ी तो स्पीड ब्रेकर बनाने पड़े. जरूरत के हिसाब से बैरिकेड्स को हटाया भी जाता है, ब्रेकरों को भी तोड़कर समतल किया जाता है. वक्त के साथ कुछ कायदे बेतुके और बेमानी हो जाते हैं. इन्हें हटा देने में ही अक्लमंदी होती है. उच्च शिक्षा के क्षेत्र में ऐसी पहली कवायद छत्तीसगढ़ के पं. दीनदयाल उपाध्याय हेल्थ साइंस एंड आयुष विवि ने की है. अब दूसरे राज्यों के छात्रों को यहां के संस्थानों में दाखिले के लिए पात्रता प्रमाणपत्र नहीं देना होगा. इस विश्वविद्यालय के तहत 13 मेडिकल, 6 डेंटल 141 नर्सिंग, 9 आयुर्वेद और 2 फिजियोथेरेपी तथा एक नेचुरोपैथी कालेज आते हैं. इनमें केन्द्र का 15 फीसद कोटा है. इन छात्रों को बड़ी परेशानी होती थी. पुराने और नए विश्वविद्यालय के बीच पेंडुलम की तरह झूलते उनके दो-तीन महीने बर्बाद हो जाते थे. इसके कारण उनका नामांकन उलझा रहता था. विवि ने इसकी अऩिवार्यता को खत्म कर दिया है. विवि का कहना है कि मेडिकल की किसी भी पढ़ाई के लिए विद्यार्थी नीट से लेकर डीएमई कार्यालय तक विभिन्न प्रक्रियाओं से होकर गुजरते हैं. फिर कालेजों में भी डाकुमेंट की स्क्रूटनी होती है. इतना फिल्टर होकर आने के बाद भी यदि छात्र को पात्रता प्रमाणपत्र की अनिवार्यता भुगतनी पड़े, तो यह सरासर नाइंसाफी है. वैसे बोर्ड और विश्वविद्यालयों के ऐसे बहुत सारे बेतुके फर्मान हैं जिन्हें समाज बैलों की तरह ढो रहा है. एक हास्य कवि ने पीएम पर कविता सुनाई. कहा कि जानकर अच्छा लगा कि उन्होंने एम किया हुआ है. यह जानकर और भी अच्छा लगा कि उन्होंने बीए भी किया हुआ है. इससे भी बड़ी बात यह थी कि पीएम ने 10वीं-12वीं भी उत्तीर्ण की हुई है. पीएम की शिक्षा पर उठे सवाल के जवाब ने पार्टी ने इसी क्रम में उनकी शिक्षा का ब्यौरा दिया था. पर इसमें हंसने जैसा कुछ नहीं है. छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालयों में स्नातक प्रथम वर्ष की कक्षा में प्रवेश के लिए 10वीं और 12वीं की अंक सूची जमा करानी होती है. ऐसा इसलिए की फर्स्ट ईयर में प्रवेश के लिए 12वीं पास होना जरूरी है पर जन्मतिथि केवल 10वीं की अंकसूची में होती है. प्रत्येक अंकसूची पर ढेरों फालतू बातें लिखी होती हैं. क्या 12वीं की अंकसूची में भी जन्मतिथि दर्ज करने से कोई भूकम्प आ जाता?