बिलासपुर. छत्तीसगढ़ में अनेकों देवी-देवताओं का वास है। नवरात्र में आज हम आपको आदिशक्ति मां महामाया मंदिर से रूबरू करा रहे। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां माता सती का दाहिना हाथ गिरा था। इसलिए इसकी गिनती देश के 51 शक्तिपीठों में होती है। भगवान शिव ने स्वयं आविर्भूत होकर रतनपुर की महामाया को कौमारी शक्ति पीठ का नाम दिया था। इसलिए यह शक्तिपीठ कुंवारी कन्याओं को सौभाग्य देने वाले मंदिर के रूप में भी प्रसिद्ध है।
11 वीं शताब्दी का प्राचीन मंदिर
बिलासपुर-कोरबा मार्ग पर शहर से करीब 25 किलोमीटर दूर रतनपुर में आदिशक्ति मां महामाया देवी का पौराणिक मंदिर हैं। वैसे तो सालभर यहां भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन नवरात्रि पर यहां विशेष अनुष्ठान होते हैं। इन दिनों मंदिर में पैर रखने के लिए भी जगह नहीं रहती। माता के मंदिर में खासकर कुंवारी लड़कियों की विशेष भीड़ देखने मिलती है। कुंवारी लड़कियों को माता सौभाग्य देतीं हैं। रतनपुर माता मंदिर का इतिहास प्राचीन व गौरवशाली है। त्रिपुरी की एक शाखा ने रतनपुर को अपनी राजधानी बनाकर दीर्घकाल तक छत्तीसगढ़ में शासन किया। महामाया देवी मंदिर का निर्माण राजा रत्नदेव प्रथम द्वारा 11 वीं शताब्दी में कराया गया था।
माता सती का गिरा था दाहिना हाथ
ऐसा माना जाता है कि महामाया मंदिर में माता सती का दाहिना हाथ गिरा था। भगवान शिव ने स्वयं आविर्भूत होकर उसे कौमारी शक्ति पीठ का नाम दिया था। इसलिए इस स्थल को माता के 51 शक्तिपीठों में शामिल किया गया। यहां सुबह से देर रात तक भक्तों की भीड़ लगी रहती है। माना जाता है कि नवरात्र में यहां की गई पूजा विशेष फलदायी होती है।
नागर शैली में बना है प्राचीन मंदिर
महामाया मंदिर नागर शैली में बना है। मंदिर का मंडप 16 स्तंभों पर टिका हुआ है। भव्य गर्भगृह में मां महामाया की साढ़े तीन फीट ऊंची दुर्लभ प्रस्तर प्रतिमा स्थापित है। मान्यताओं के अनुसार मां की प्रतिमा के पृष्ठ भाग में मां सरस्वती की प्रतिमा है जो विलुप्त मानी जाती है। इसके चारों ओर 18 इंच मोटा परकोटा है।
राजा को दिखा था अलौकिक प्रकाश
1045 ई में राजा रत्नदेव प्रथम मणिपुर गांव में रात्रि विश्राम के लिए रूके उन्होंने एक वट वृक्ष के नीचे रात काटी। आधी रात जब राजा की आंखें खुली तब उन्होंने वट वृक्ष के नीचे अलौकिक प्रकाश देखा। उन्होंने देखा कि वहां महामाया देवी की सभा लगी हुई थी। इतना देखकर वे बेहोश हो गए। सुबह होने पर वे अपनी राजधानी तुम्मान खोल लौट गए। उन्होंने अब मणिपुर को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया। इसके बाद 1050 ई वे वहां महामाया देवी मंदिर का निर्माण कराया गया।