2018 की हार से सबक लेते नहीं दिख रहे भाजपा नेता
दुर्ग जिले की भाजपाई राजनीति गुटबाजी में आकंठ डूब गई लगती है। पिछले कुछ चुनावों के नतीजे गवाह है कि कैसे इस गुटबाजी के चलते भाजपा को 6 विधानसभा सीटों वाले दुर्ग में करारी पराजय का सामना करना पड़ा। पार्टी के वरिष्ठ नेता इस बात पर ठंडी आह भर सकती है कि 11 लोकसभा सीटों वाले छत्तीसगढ़ में भाजपा को 9 सीट मिली। किन्तु यह जीत स्थानीय नेतृत्व और नेताओं की बदौलत नहीं बल्कि मोदी मैजिक के चलते मिली थी। पिछले दिनों पार्टी के रणनीतिकारों ने जब छत्तीसगढ़ समेत देशभर के राजनैतिक हालातों पर चिंतन किया तो उसका निष्कर्ष यही था कि अब राज्यों में मोदी मैजिक की बदौलत नहीं रहा जा सकता, इसलिए प्रादेशिक नेतृत्व को स्थानीय स्तर पर अपने दम पर चुनाव जीतने-जिताने के हालात बनाने होंगे। जाहिर है कि इसके लिए सभी नेताओं को एकजुट होकर चुनाव लडऩा होगा। ऐसा कम से कम दुर्ग जिले में तो होता नहीं दिख रहा है।
गौरतलब है कि दुर्ग जिले की भाजपाई राजनीति में 3 गुटों का वर्चस्व है। इसमें सबसे ज्यादा प्रभाव राज्यसभा सांसद सुश्री सरोज पाण्डेय का है। स्थानीय संगठनों पर उनके समर्थकों का दबदबा है। यही वजह है कि दूसरे बड़े नेता संगठन की बैठकों से दूरी बनाए रखते हैं। दूसरी ओर लोकसभा सांसद विजय बघेल और पूर्व मंत्री व वरिष्ठ नेता प्रेमप्रकाश पाण्डेय के समर्थक भी अपनी अलग राह पर हैं। भिलाई क्षेत्र में जिले के इकलौते विधायक विद्यारतन भसीन के समर्थकों की भी अपनी खिचड़ी पकती है। हालात है कि भाजपा ऊपर से तो एक परिवार दिखती है, लेकिन भीतर हर सदस्य के अपने अलग चूल्हे जल रहे हैं। मजे की बात तो यह है कि पार्टी के प्रदेश संगठन महामंत्री पवन साय ने बैठक में संगठन को ही पार्टी की रीढ़ कहा, जबकि जिले के संगठन शीर्ष पर ऐसे लोगों को बिठाया गया है, जिनके पास राजनीतिक अनुभव और समझबूझ की कमी है। ऐसे लोगों को संगठन का प्रमुख महज इसलिए बनाया गया ताकि दूसरे गुट के नेताओं को नीचा दिखाया जा सके। मसलन, भिलाई जिला भाजपा अध्यक्ष की बात करें तो वे मीडिया से चर्चा करने से यह कहकर इनकार कर देते हैं कि उन्हें ऊपर से आदेश मिला है कि मीडिया से बात नहीं करनी है। दुर्ग जिला संगठन में भी कमोबेश ऐसे ही हालात है। यहां एक गैर राजनैतिक और संगठन के अनुभवहीन व्यक्ति को जिलाध्यक्ष बनाया गया है, जबकि पार्टी विपक्ष में है।
गैरमौजूद रहे दिग्गज नेता
भिलाई जिला भाजपा की संगठनात्मक बैठक अयप्पा मंदिर, सेक्टर-2 में रखी गई थी। यह बैठक भिलाई, रिसाली, भिलाई-चरोदा नगर निगम व जामुल नगर पालिका में वर्षांत में होने वाले चुनाव के मद्देनर आयोजित थी। इस बैठक में सांसद विजय बघेल, विधायक विद्यारतन भसीन और पूर्व मंत्री व वरिष्ठ नेता प्रेमप्रकाश पाण्डेय शरीक नहीं हुए। आंतरिक सूत्रों के मुताबिक, क्योंकि जिला संगठन पर सरोज गुट का दबदबा है, इसलिए दूसरे गुट के नेताओं और उनके समर्थकों ने इस बैठक से दूरी बनाए रखी। हालांकि सांसद विजय बघेल व प्रेमप्रकाश पाण्डेय ने इसके पीछे अपने अलग तर्क दिए हैं। इन दोनों नेताओं का कहना था कि धर्मांतरण विरोधी ज्ञापन देने राजभवन कूच करना था, इसलिए वे रायपुर चले गए थे। वहीं जिला भाजपा के अध्यक्ष वीरेन्द्र साहू के मुताबिक, सभी वरिष्ठ नेताओं को बैठक की लिखित जानकारी दी गई थी।

गुटविशेष के भरोसे जीतना संभव नहीं
उल्लेखनीय है कि जिले के पार्टी संगठन पर एक गुट विशेष का जबरदस्त प्रभाव है। यही वजह है कि दीगर वरिष्ठ नेता व उनके समर्थक संगठन की बैठकों से परहेज करते हैं। इन परिस्थितियों में पार्टी के लिए किसी भी तरह का चुनाव जीतना संभव नहीं दिखता। जाहिर है कि वर्षांत में होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव में जिस गुट के लोगों को टिकट मिलेगी, उन्हें दूसरे गुटों का समर्थन नहीं मिल पाएगा। भीतरघात और खुलाघात तो बाद की बात है। ऐसे में प्रदेश नेतृत्व को यह सोचना होगा कि आखिर कई धड़ों में बँटे भाजपाइयों को एकजुट कैसे किया जाए? जिले में भाजपाई राजनीति के हालात सांप-बिच्छू जैसे हैं। एक निगलने को तैयार है तो दूसरा डंक मारने को।
सत्ता-पक्ष को कोसने से नहीं चलेगा काम
भाजपा छत्तीसगढ़ ही नहीं, दुर्ग जिले में भी विपक्ष में है और विपक्ष का काम ही सत्तापक्ष की खामियों को उजागर करने का है। लेकिन जिला संगठनों में हालात बिलकुल भिन्न है। दुर्ग और भिलाई संगठनों की ही बात करें तो यहां संगठन तो खड़ा हुआ है, लेकिन उसके काम पूरी तरह बैठे हुए हैं। जमीन पर उनकी कोई गतिविधि नजर नहीं आती। अयप्पा मंदिर, सेक्टर-2 में हुई संगठनात्मक बैठक में भी यही नजारा देखने को मिला। संगठन महामंत्री पवन साय ने संगठन का महत्व तो बताया, लेकिन उन्हें यह बताने वाला कोई नहीं था कि यहां संगठन शून्यता के हालात है। बूथ की मजबूती की वकालत तो की गई, लेकिन एकजुटता जैसे सबसे अहम् मसले को नजरअंदाज कर दिया गया।




