-दीपक रंजन दास
छत्तीसगढ़ में नेताओं की चांदी हो गई है। उनके पास इतने आप्शन हो गये हैं कि किसी पार्टी की टिकट पर चुनाव लडऩा अब कतई मुश्किल नहीं है। तमाम पार्टियां बाहें फैलाए खड़ी हैं। ये कोई काडर बेस्ड पार्टियां नहीं हैं। इन्हें न तो नेतृत्व पैदा करना है, न उसे पालना पोसना है और न ही उसे जीतने योग्य प्रत्याशी बनाना है। ये तो असंतुष्टों को मौका देने वाली पार्टियां हैं। उन्हें पता है कि इतनी बड़ी आबादी वाले देश में नेतृत्व के गुण भले ही गिने-चुने लोगों के पास हों पर नेता हर किसी को बनना है। झक सफेद कुर्ता और ऊपर से अपनी पार्टी का गमछा मारे उसकी चाल देखते ही बनती है। पिछले कुछ दिनों से लगातार खबर आ रही है कि फलां नेता ने अपनी पार्टी छोड़ी और बगावत कर दूसरी पार्टी में प्रवेश कर गया। इसका फल भी हाथों हाथ मिल गया। दूसरी पार्टी ने उसे तत्काल अपना टिकट देकर चुनावी मैदान में उतार दिया। उसे अपनी जीत की कोई उम्मीद नहीं है। पर वह इतना जानता है कि अगर वह खड़ा हुआ तो उसकी मूल पार्टी में अफरातफरी मच जाएगी। विधानसभा चुनाव में कई सीटें ऐसी हैं जहां कुछ सैकड़ा वोटों से बाजी पलट जाती है। यदि सीट ऐसी ही निकली तो ये चुनाव परिणामों को तो प्रभावित कर ही देंगे। इसके बाद पांच साल तक वो इसी उपलब्धि के साथ खुश रहेंगे कि उसने पार्टी को मजा चखा दिया। क्या पता पार्टी उसे फिर से ससम्मान वापस ले ले। वैसे भी कहा जाता है कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता। एक ऐसे ही नेता ने पार्टी छोड़ी और विरोधी दल की गोद में जा बैठा। फौरन टिकट मिली और उसे प्रत्याशी बना दिया गया। नामांकन दाखिले के समय उसका आमना-सामना अपनी पिछली पार्टी के एक दिग्गज से हो गया। उसने तत्काल झुककर चरण स्पर्श किए। नेता भी मरता क्या न करता। उसने भी उसे आशीर्वाद दे दिया। वैसे इतनी अच्छी किस्मत सभी की नहीं होती कि वह किसी बड़ी राष्ट्रीय पार्टी में चला जाए। अधिकांश लोगों को जेसीसीजे, जेसीपी जैसी क्षेत्रीय पार्टियों में जाना पड़ रहा है। वैसे आम आदमी पार्टी ने भी अपने प्रत्याशी खड़े किये हैं। इन सभी दलों ने सभी 90 विधानसभा सीटों से चुनाव लडऩे का ऐलान किया है। पर इतने प्रत्याशी उनके पास हैं ही नहीं। इसलिए उनकी नजर बागियों पर लगी हुई है। मुश्किल ये है कि उनके पास न तो स्टार प्रचारक हैं और न ही फंड। लिहाजा बागी भी इसी बात के इंतजार में हैं कि कोई तो उसे नामांकन वापसी के लिए मना ले। वैसे कुछ लोग मानते हैं कि ये छोटी पार्टियां किसी बड़ी राष्ट्रीय पार्टी की बी-टीम हैं। इनका मुख्य काम प्रतिद्वंद्वी दल के प्रत्याशी का वोट काटना होगा। कुछ सीटों पर हार-जीत तय करने में इनकी निर्णायक भूमिका हो सकती है।
Gustakhi Maaf: जो दे दे उसका हो भला, जो न दे उसका …
