-दीपक रंजन दास
मिनी इंडिया भिलाई “एक भारत-श्रेष्ठ भारत” का अनुपम उदाहरण है. यहां सभी प्रांतों, विभिन्न भाषा-भाषियों और धर्म-पंथ के लोगों का सहवास रहा है. इस्पात नगरी के हृदय स्थल सेक्टर-6 में एक तरफ जहां जैन मंदिर, गुरुद्वारा, कालीबाड़ी, आर्यसमाज, जगन्नाथ मंदिर, चित्रगुप्त मंदिर और श्रीगुरूसंघ का पावन स्थल है वहीं दूसरी तरफ विभिन्न समुदायों के चर्च और मस्जिद साथ-साथ संचालित हैं. खान-पान, पहनावा-ओढ़ना से लेकर भाषा तक इस शहर की एक ही रही है. लगभग सभी मोहल्लों की यही बानगी थी. कोई भेदभाव नहीं था. तीज-त्यौहार तक मिलकर मनाते थे. पर इधर कुछ समय से लोग एक दूसरे से कटने लगे हैं. मांस-मछली से लेकर फल और सब्जी दुकानों तक की छंटाई होने लगी है. एक खास मानसिकता वाले लोगों की बैठकों में प्रायः गर्मागर्म बहसें हो रही हैं. इतिहास को नए सिरे से बांचा जा रहा है. ज्ञात-अज्ञात स्रोतों से मिली जानकारी के आधार पर जूतियों में दाल परोसी जा रही है. कहीं का वीडियो फुटेज कहीं चिपका कर नए संदेश लिखे जा रहे हैं. इतिहास को कोर्स का अंतिम विषय मानने वाले एकाएक इसमें पीएचडी करने लगे हैं. अनुभूत इतिहास पर कूटरचित कागजी सबूत भारी पड़ रहे हैं. कहा जाता है कि जिस घर में फूट पड़ गई हो, उसे बाहरी दुश्मनों की जरूरत नहीं होती. अब इस पाप के प्रायश्चित्त का वक्त आ गया है. अब विभिन्न प्रांतों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए, उनमें भाईचारा और राष्ट्र का बोध जगाने के लिए विशेष अभियान चलाने की जरूरत आन पड़ी है. जाहिर कारणों से छत्तीसगढ़ के लिए यह अभियान महत्वपूर्ण है. इसी साल यहां चुनाव होने हैं. नए छत्तीसगढ़ को अपनी भाषा-बोली, अपने खान-पान, संस्कृति पर अभिमान है. जिन लोगों ने बोरे-बासी से किनारा कर लिया था, छत्तीसगढ़ी बोलने में सकुचाने लगे थे अब उन लोगों की गिनती कम हो रही है. छत्तीसगढ़ की यह संस्कृति रही है कि वह बीती कड़वी बातों को भुलाकर आगे बढ़ता रहा है. मामला चाहे नक्सल पीड़ित बस्तर का हो, कोरवा जनजातियों पर होने वाले अत्याचार का हो या फिर पश्चिम ओड़ीशा से खदेड़े गए व्यापारियों का, छत्तीसगढ़ सबकुछ भूलकर आगे बढ़ता रहा है. छत्तीसगढ़ी स्वाभिमान का ही प्रताप है कि सुदूर उत्तरी अमरीका के विभिन्न शहरों में रहने वाले लोगों ने नार्थ अमेरिका छत्तीसगढ़ी एसोसिएशन “नाचा” का गठन किया है. इसी छत्तीसगढ़ में अब पड़ोसी राज्यों के साथ मिलकर “एक भारत श्रेष्ठ भारत” उत्सव मनाया जाएगा. वहां के लोगों को, विशेषकर यदि भाजपा शासित राज्य हुआ तो मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों को भी आमंत्रित किया जाएगा. तो क्या गैर भाजपाई एक भारत की परिभाषा में नहीं आते? वैसे छत्तीसगढ़ की बात करें तो उसकी सोच इससे आगे तक जाती है. छत्तीसगढ़ ने दुनिया भर के आदिवासियों को एकजुट कर “वसुधैव कुटुम्बकम” का संदेश पहले ही दे दिया है.
Gustakhi Maaf: एक भारत-श्रेष्ठ भारत और मिनी इंडिया की तासीर




