भिलाई. शारदीय नवरात्रि का आज छठवां दिन है, इस दिन मां दुर्गा के छठवें स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। माता के इसी स्वरूप में महिषासुर दानव का वध किया था, इसलिए मां कात्यायनी को महिषासुरमर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है। सच्चे मन से माता की पूजा-अर्चना करने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं। यह दिन खास तौर पर विवाह योग्य कन्याओं के लिए बेहद शुभ माना जाता है, माता की पूजा-अर्चना करने से मनोकामना की पूर्ति होती है।
आंतरिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं माता कात्यायनी
माता कात्यायनी का स्वरूप का ध्यान कर लेने से भर से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। मां कात्यायनी अपार आंतरिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करने वाली मां हैं। देवी का यह छठा स्वरूप अदभुत तरंगों से सराबोर आज्ञा चक्र की ऊर्जा है। भारतीय दर्शन के अनुसार, आज्ञा चक्र शरीर में शक्ति केंद्र का छठवां मूल चक्र होता है। नवग्रहों में माता कात्यायनी शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती हैं, जिससे वह विवाह संबंधित सभी समस्याओं और अड़चनों को दूर करती हैं।
महर्षि कात्यायन की पुत्री हैं माता कात्यायनी
मां दुर्गा के छठे स्वरूप को कात्यायनी कहते हैं। कात्यायनी महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं। महर्षि कात्यायन से सर्वप्रथम इनकी पूजा की थी, इसलिए ये कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हुई। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी है। यह दुर्गा देवताओं और ऋषियों के कार्यों को सिद्ध करने के लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुई थीं। अपने सांसरिक स्वरूप में यह शेर यानी सिंह पर सवार चार भुजाओं वाली सुसज्जित आभा मंडल युक्त देवी कहलाती हैं। इनके बाएं हाथ में कमल और तलवार दाहिने हाथ में स्वस्तिक और आशीर्वाद मुद्रा अंकित है।
ऐसा है माता का स्वरूप
मां दुर्गा का यह स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है, ये माता स्वर्ण के समान चमकीली हैं और भास्वर हैं। माता की चार भुजाएं हैं। दाएं ओर की ऊपर वाली भुजा अभय मुद्रा में है औप नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है। बाई ओर का उपर वाला हाथ तलवार लिए है और नीचे वाला हाथ कमल के फूल है। माता बाघ पर सवारी करती हैं और इनको ही ईश्वरी, गौरी, उमा, काली, रमा, हेमावती, कल्याणी आदि नामों से जाना जाता है। माता भगवती का यह स्वरूप स्नेह और शक्ति का सम्मिलित रूप है।
ब्रज की अधिष्ठात्री देवी हैं कात्यायनी
माता कात्यायनी को ब्रज की अधिष्ठात्री देवी भी कहा जाता है। भगवान कृष्ण जैसा पति प्राप्त करने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा-अर्चना की थी। गोपियों द्वारा माता की पूजा कालिंदी यमुना तट पर की गई थी इसलिए मां ब्रज की अधिष्ठात्री के रूप में प्रतिष्ठित हुईं। माता कात्यायनी देवी मनचाहे वर का आशीष देने वाली हैं इसलिए गोपियों ने भी भगवान कृष्ण जैसा वर पाने के लिए माता की उपासना की थी।
माता कात्यायनी पूजा विधि
शारदीय नवरात्रि के छठवें दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र पहनें और माता का ध्यान करें। इसके बाद पूजा स्थल पर गंगाजल से छिड़काव करें और पांच देसी घी के दीपक जलाएं। माता कात्यायनी की पूजा में गंगाजल, कलावा, नारियल, धूप, दीप, फूल, फल रोली, चावल, चुन्नी, शहद, अगरबत्ती, और घी आदि का प्रयोग किया जाता है। इसके बाद माता की आरती उतारें और फिर पूरे परिवार के साथ माता के जयकारे लगाएं। माता कात्यायनी को शहर का भोग लगाएं। माता की पूजा लाल रंग के वस्त्रों से करें क्योंकि यह रंग ना केवल शक्ति का प्रतीक है बल्कि माता को भी प्रिय है।