-दीपक रंजन दास
फिल्म ‘आदिपुरुष’ को लेकर देशभर में बवाल मचा हुआ है। बवाल फिल्म के संवादों को लेकर है जिन्हें लिखा है मशहूर संवाद लेखक मनोज मुंतशिर ने। मनोज को लोग उनके हिन्दी प्रेम और हिन्दी ज्ञान के लिए जानते हैं। पिछले कुछ समय से अच्छी हिन्दी जानने और बोलने वालों की खूब चली हुई है। इस कड़ी में आशुतोष राणा और डॉ कुमार बिस्वास का भी नाम लिया जा सकता है। हिन्दी के इन तपस्वियों ने साबित कर दिया है कि भाषा पर पकड़ अच्छी हो तो व्यक्ति शोहऱत की बुलंदियों को छू सकता है। बात सही ढंग से, सही शब्दों और सटीक उच्चारण के साथ कही गई हो तो वह जोरदार प्रभाव उत्पन्न करती है। फिर मुंतशिर से यह चूक कैसे हो गई? दरअसल, यह कोई चूक नहीं है। यह दौर अपनी-अपनी प्रतिभा को भुनाने की है। मुंतशिर को भी हम इसीलिए जानते हैं क्योंकि वो सफल हैं। वो किसी मंदिर के पुजारी या प्रायमरी मिडिल स्कूल के भाषा शिक्षक नहीं हैं। जैसी मांग होती है, वैसा लिख देते हैं, लिख सकते हैं। विवादों में घिर जाने के बाद उन्होंने पहला स्पष्टीकरण यही दिया कि यह प्रभु श्रीराम की कहानी नहीं है। इसके चरित्र रामायण के विभन्न पात्रों से प्रेरित मात्र हैं। इसके डायलाग नई पीढ़ी की भाषा के अनुरूप हैं ताकि फिल्म उनसे जुड़ सके। शायद वो सही भी थे। फिल्म ने रिलीज के दिन 95 करोड़ का धंधा किया। दूसरे दिन 65 करोड़ और क्रमश: तीसरे, चौथे, पांचवे दिन 60 करोड़, 50 करोड़ और 45 करोड़ का बिजनेस किया। विदेशी बाजार से फिल्म ने 35 करोड़ कमा लिए। फिल्म को 6000 स्क्रीनों पर एक साथ हिन्दी, इंग्लिश, तमिल और तेलुगु में रिलीज किया गया था। दरअसल, यह एक टोटल कमर्शियल फिल्म है। रामायण के किरदारों को इसलिए चुना गया कि लोग ऐसी फिल्मों को हाथों हाथ लेते हैं। लीड रोल के लिए प्रभाष कुमार और कृति सेनन को लिया गया जिनकी अपनी जबरदस्त फैन फॉलोइंग है। भाषा और संवाद मनोज मुंतशिर के हवाले किया गया जिनकी अपनी फैन फॉलोइंग है। यह बिजनेस है, इसका किसी की आस्था से कोई लेना देना नहीं है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने सही कहा है कि फिल्म के संवादों के घटिया होने की बात सामने आने के बाद इसे देखने की जिद नहीं करनी चाहिए। आखिर आस्था उनकी है, पैसा और समय भी उन्हीं का है। क्यों इसे किसी ऐसे विषय पर खर्च किया जाना चाहिए जो उनकी पसंद और आस्था के अनुरूप नहीं है। वैसे, फिल्म की शोहरत और सफलता में इसके विरोधियों का भी योगदान है। विरोध करने वालों ने टाकीजों में तोडफ़ोड़ की, उग्र प्रदर्शन किये। फिल्म को बैन करने और दोषियों पर कार्रवाई की मांग भी की। पर इससे फिल्म जन-जन तक पहुंच गई। अब फिल्म टाकीजों में नहीं भी लगेगी तो लोग ओटीटी पर देख लेंगे। फिल्म की कमाई नहीं रुकेगी। कुछ लोग इसे डाउनलोड करके भी बांट देंगे।
Gustakhi Maaf: ‘आदिपुरुष’ और मनोज मुंतशिर




