-दीपक रंजन दास
जिस वंशवाद को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी राजनीति से खत्म करना चाहती है, उसी वंशवाद का सबूत दे गए नमो सेना इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष सोमनाथ बोस. उन्होंने नाम न लेते हुए कांग्रेस के गांधी परिवार से “गांधी” होने का सबूत मांगा. उनसे वंश पत्रिका की भी मांग की. इसी को कहते हैं असली वंशवाद. इंदिरा, राजीव, राहुल, प्रियंका के वंश को छोड़ भी दें तो भारतीय राजनीति में उनका अपना भी व्यक्तिगत योगदान है. सोमनाथ बोस क्या साबित करना चाहते हैं? इसमें कोई दो राय नहीं कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस को चाहने वाले आज भी इस देश में करोड़ों की संख्या में लोग हैं. उनकी एक मांग पर बंगाल की महिलाओं ने अपने जेवर तक उनपर निछावर कर दिये थे. हजारों की संख्या में युवा उस ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ हथियार उठा कर खड़े हो गए थे, जिनके बारे में कहा जाता था कि उनके राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता. जान को हथेली पर रखकर नेताजी ने देश विदेश की छद्म रूपों में यात्रा की ताकि भारत की आजादी के आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिल सके. आज उनका नाम भुनाने के लिए उनका पोता सामने आकर खड़ा हो जाता है. वह भी नमो सेना इंडिया के नाम पर. सोमनाथ वही सवाल उठा रहे हैं जो भाजपा उठाती रही है. उन्हें बताना चाहिए कि वे वंश पत्रिका क्यों मांग रहे हैं. स्वयं नेताजी की सेना में हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई शामिल थे. उन्होंने एक विजातीय महिला से विवाह किया था. वैसे भी आज की तारीख में वंश पत्रिका रखता कौन है. कुछ ब्राह्मण और ठाकुर परिवारों में वंश पत्रिका शायद मिल भी जाए पर अधिकांश लोगों के यहां बंश पत्रिका जैसी कोई चीज अस्तित्व में ही नहीं है. आज भी हवन और श्राद्ध आदि कार्यक्रमों में पंडित जब पांच पीढ़ियों का नाम पूछते हैं तो लोग बगले झांकने लग जाते हैं. इंदिरा का विवाह 1942 में एक पारसी युवक फिरोज से हुआ था. बड़ी संख्या में लोग इस विवाह को रोकने के लिए महात्मा गांधी और नेहरू को पत्र लिख रहे थे. तब पं. नेहरू ने कहा था कि हालांकि माता पिता को अपनी संतानों को सलाह देनी चाहिए पर विवाह जैसे मामलों में अंतिम इच्छा वर वधु की ही होनी चाहिए. पर इस विवाह के बाद कोई भी अपना धर्म नहीं बदलेगा. उन्होंने कहा कि जरथुस्त्र धर्म की बहुत सारी बातें वैदिक कर्मकांड से मिलती-जुलती है, क्योंकि दोनों धर्म का उद्गम एक ही जगह से है. गांधीजी ने स्वयं इस विवाह के लिए मंत्रों का संयोजन किया जिसमें हिन्दू और जरर्थ्रुस्त्र दोनों धर्म के मंत्र थे. बाद में महात्मा गांधी ने दोनों को अपना उपनाम गांधी दे दिया था. दरअसल, ऐसे ही थे नेहरू. उन्होंने आजादी से भी पहले स्पेशल मैरिज एक्ट की नींव रख दी थी. उन्होंने उन अधिकारों की बात आठ दशक पहले की थी जिसकी जरूरत आज महसूस की जा रही है.
Gustakhi Maaf: नेताजी का पोता क्यों कलप रहा
