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Gustakhi Maaf: कपटी साधु, शैक्षिक अनुसंधान और आईपीआर

By Om Prakash Verma Published January 15, 2023
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Gustakhi Maaf: इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है पायलट का अनुभव
Gustakhi Maaf: इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है पायलट का अनुभव
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-दीपक रंजन दास
शिक्षा में शोध एक मजेदार विषय है. राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद किताबों का मजमून तय करता है. इसके द्वारा अनुमोदित किताबें ही बच्चों को पढ़ने के लिए दी जाती हैं. इसी तरह राज्यों में भी उनके अपने शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद होते हैं. छत्तीसगढ़ में भी है. परिषद ने पांचवी के विद्यार्थियों के लिए एक पुस्तक का प्रकाशन किया है. इस पुस्तक का नाम है हिन्दी-छत्तीसगढ़ी-संस्कृत. इसका एक पाठ “चमत्कार” विवादों में है. इसमें एक दाढ़ी-मूंछ वाले बाबा की तस्वीर लगाकर बाबा के वेश में ठगी करने वालों के बारे में सावधान किया गया है. साथ ही निर्देश दिया गया है कि बाबाओं द्वारा की जाने वाली ठगी को चर्चा द्वारा बच्चों के लिए स्पष्ट किया जाए. अब यह लेख विवाद में है. बवंडर बाबा ने इसे सनातन संस्कृति पर हमला बताया है. वहीं ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने किताब का यह पन्ना फाड़कर अपना विरोध जताया है. उन्होंने परोक्ष रूप से पाठ का वक्तव्य स्वीकार करते हुए कहा है कि ठगों की इस मंडली में फकीरों, राजनेताओं और पुलिस को भी शामिल किया जाना चाहिए था. कोढ़ पर खाज यह कि इस पाठ के लेख जाकिर अली रजनीश हैं. दरअसल, केन्द्रीय शिक्षा नीति देश में शोध कार्यों को बढ़ावा देने पर बल देती है. देश के सभी विश्वविद्यालय इस पर जोर देते हैं. साथ ही यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहते हैं कि ऐसे अनुसंधान में नक्काली नहीं होनी चाहिए. इसके लिए प्लेगियारिज्म के साफ्टवेयर हैं. शोधार्थी को अपना शोध कृतिदेव 010 फाण्ट में उपलब्ध कराना होता है. इसे सॉफ्टवेयर में डालकर जांचा जाता है कि कहीं यह किसी और लेख की हूबहू नकल तो नहीं है. लब्बोलुआब यह कि जो भी लिखें, स्वयं शोध कर अपने शब्दों में लिखें. विवादित पाठ का आशय यही है कि ठगी केवल वही कर सकते हैं जिनपर विश्वास होता है. नकली साधु आपको ठगते हैं. इस पाठ का लेखक जाकिर अली रजनीश को बताया गया है. जाकिर अली का कहना है कि उन्होंने पांचवी की पुस्तक के लिए कोई पाठ नहीं लिखा. उन्होंने एक एकांकी लिखी थी जिसमें साधु के वेष में ठग आते हैं. यह एकांकी 1997 में एक पत्रिका में छपी थी. इस एकांकी में किसी भड़काऊ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया था. इसके 13 साल बाद 2010 में राज्य शैक्षिक अनुसंधान परिषद ने इसपर एक पाठ तैयार कर प्रकाशित कर दिया. इसके लिए उनकी अनुमति तक नहीं ली गई. यह सरासर बौद्धिक संपदा अधिकार के हनन का मामला है. मूल एकांकी बच्चों के लिए नहीं लिखी गई थी. यह किसी भी पाठ्यपुस्तक के लिए नहीं लिखी गई थी. वह तो पाठ पर विवाद खड़ा हो गया और सब अपनी-अपनी बचाने में लग गए. अगर पाठ की प्रशंसा होती, जो कि अकसर होता है, तो एससीईआरटी खुद अपनी पीठ थपथपा रहा होता. बेचारा लेखक, अंगूठा चूसता रह जाता.

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Om Prakash Verma January 15, 2023
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