नई दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली के प्रगति मैदान में छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से समां बांधा। मौका था भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में छत्तीसगढ़ राज्य दिवस पर सांस्कृतिक संध्या का, जहां एमफी थियेटर में छत्तीसगढ़ की लोक कला व संस्कृति की अनुपम छंटा बिखरी। कार्यक्रम का उदघाटन छत्तीसगढ़ के खाद्य एवं संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत ने किया।
प्रगति मैदान के एमफी थियेटर में छत्तीसगढ़ की समृद्ध संस्कृति व कला के बड़ी संख्या में लोग साक्षी बने। दर्शकों ने भी भरपूर तालियां बजाकर कलाकारों का प्रोत्साहन किया। छत्तीसगढ़ से आये कलाकारों ने छत्तीसगढ़ में विभिन्न उत्सवों, तीज त्योहारों पर किए जाने वाले नृत्यों की प्रस्तुति दी। सांस्कृतिक संध्या में खाद्य व संस्कृति मंत्री श्री अमरजीत भगत भी खुद को रोक नहीं सके। मंच पर पहुँच कर उन्होंने भी कलाकारों के साथ मांदर पर थाप दिया।
भिलाई से आए लोक रागनी दल के कलाकारों ने सबसे पहले देवी पूजन से नृत्य की शुरुआत की, जिसमें देवी द्वारा राक्षस के नरसंहार को दिखाया गया। महिला कलाकारों द्वारा भोजली नृत्य के बाद सुआ नृत्य के माध्यम से छत्तीसगढ़ की नृत्य कौशल को प्रस्तुत किया। इस दौरान महिलाओं छत्तीसगढ़ का सुआ नृत्य प्रस्तुत किया। जिसके बाद गेंडी नृत्य की प्रस्तुति दी गई।
बस्तर के जनजातियों द्वारा किये जाने वाले परब नृत्य की प्रस्तुति दी। यह नृत्य बस्तर में निवास करने वाले धुरवा जनजाति के द्वारा किया जाता है। इस नृत्य को सैनिक नृत्य कहा जाता है, क्योंकि नर्तक नृत्य के दौरान वीरता के प्रतीक चिन्ह कुल्हाड़ी व तलवार लिए होते हैं। वहीं, बस्तर के मारिया जनजाति के द्वारा जात्रा पर्व पर किए जाने वाला गौर नृत्य प्रस्तुत किया गया। इसके साथ ही कलाकारों ने छत्तीसगढ़ का पारम्परिक नृत्य करमा की प्रस्तुति डी। इसे करमा देव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इस नृत्य में पारंपरिक पोषक पहनकर लोग नृत्य करते है और छत्तीसगढ़ी गीत गाते है।
सबसे अंत में उपकार पंथी नृत्य दल के कलाकारों ने नृत्य के माध्यम से गुरु घासीदास के संदेशों को लोगों तक पहुंचाया। यह नृत्य कई चरणों और पैटर्न का एक संयोजन है। यह नृत्य न केवल इस क्षेत्र के लोक नृत्य के सबसे महत्वपूर्ण रूपों में से एक है, बल्कि इसे छत्तीसगढ़ के सतनामी समुदाय का एक प्रमुख रिवाज या समारोह भी माना जाता है। यह नृत्य अक्सर समुदाय द्वारा माघ पूर्णिमा में होने वाले गुरु घासीदास की जयंती के उत्सव के दौरान किया जाता है।