150 सप्ताह से लगातार खिला रहे हैं 5 रुपए में भरपेट भोजन
दोस्तों के साथ की थी शुरुआत, जुडऩे लगा कांरवा
भिलाई। एक दिन अपनी शॉप के बाहर बच्चों को कचरे में कुछ ढूंढते देखा लेकिन जब कचरे में फेंके हुए केक के कुछ टुकड़ों को जब बच्चे खा रहे थे तो मन ऐसे कचोटा कि काश ऐसे लोगों के लिए कुछ कर पाते जो कम से कम अच्छा खाना सम्माजनक स्थिति में खा पाते। रुवीन्दऱ् बाजवा ने अपने दिल की बात कुछ दोस्तों से शेयर की और सभी ने मिलकर एक तरीका खोज निकाला। जिससे सप्ताह में एक दिन गरीब व्यक्ति भी अच्छा खाना खा सकें। बस क्या था शुरू हो गई मम्मा की रसोई यानी मां के हाथों जैसा स्वाद और मां जैसा दुलार। सुपेला के जीई रोड़ के किनारे रविवार को रूपीन्दऱ् अपने साथियों के साथ वहां लोगों को भोजन कराते नजर आ जाते है। जून 2018 में पहली बार मम्मा की रसोई का स्वाद लोगों ने चखा था और आज पूरे 150 सप्ताह पूरे हो चुके हैं। चाहे अमीर हो या गरीब हर कोई यहां मात्र 5 रुपए में यहां भरपेट भोजन कर रहा है।
5 रुपए इसलिए क्योंकि सम्मान बना रहे
रुवीन्दर ने बताया कि मम्मा की रसोई में भरपेट भोजन का मूल्य 5 रुपए इसलिए रखा गया हैं, ताकि लोगों को भोजन करने में झिझक न हो, क्योंकि कई स्वाभिमानी होते हैं जो फ्री का भोजन नहीं खाते, ऐसे में 5 रुपए देकर यहां हर कोई भोजन कर सकता है। उन्होंने बताया कि इस रसोई में मार्केट एरिया में काम करने वाले से लेकर कई दुकानों के मालिक भी यहां भोजन करने आते हैं।

बढ़ता गया कांरवा
बाजवा ने बताया कि उनकी टीम में 10 लोगों से ज्यादा ऐसे है जो भोजन बनाने से लेकर बांटने तक में उनकी मदद करते हैं। इनमें कमलेश मिश्रा, पंकज गुप्ता, मिलिन्द्र भीड़े, सूर्यकांत अग्रवाल, वैभव वर्मा, जयंत वारदे, आकाश राजपूत, रहमान आदि शामिल है। कुछ ऐसे भी लोग है जो अपनी शादी की सालगिरह, परिजनों की पुण्यतिथि और जन्मदिन पर भी भोजन कराने की इच्छा जाहिर करते हैं। जिससे भोजन का मैन्यू और शानदार हो जाता है।

4 सौ लोगों का भोजन
मम्मा की रसोई में हर सप्ताह 4 सौ लोगों को भोजन बनाया जाता है। जिसमें पुलाव, मटर पनीर, मिठाई, पापड़, सलाद,आचार जैसी चीजें शामिल होती है। वही कोई विशेष सहयोग मिलता है तो मैन्यू और बढ़ता चला जाता है। बाजवा ने बताया कि सिर्फ 26 किलो चावल का तो पुलाव ही बनता है।
पेसमेकर से लिए भी मदद
मम्मा की रसोई की टीम भरपेट भोजन के साथ-साथ लोगों की सेहत का भी ख्याल रख रही है। संस्था अब जरूरतमंदों को पेसमेकर भी उपलब्ध करा रही है, ताकि जरूरतमंदों को मंहगे पेसमेकर नहीं ले पाने की वजह से इलाज में दिक्कत न हो।
लोगों ने कहा- आसान नहीं यह काम
मम्मा की रसोई में हर सप्ताह आने वाले लोगों का कहना है कि लगातार 150 सप्ताह तक एक ही क्वालिटी के साथ समय को मेंटेन करना आसान नहीं होता। रुवीन्दऱ् ने कहा कि रविवार को रसोई बनाने के लिए उन्हें तीन दिन पहले से तैयारी करनी होती है, और उनकी टीम रविवार सुबह से ही लग जाती है।