रायपुर। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा जैविक कृषि को बढ़ावा देने एवं रासायनिक कृषि को हतोत्साहित करने के लिए संचालित गोधन न्याय योजना के अन्तर्गत पूरे प्रदेश में गौठानों की स्थापना की जा रही है। इन गौठानों में गाय के गोबर से वर्मीकम्पोस्ट एवं सुपरकम्पोस्ट का निर्माण किया जा रहा है, जिससे कृषि में रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम हो रही है, मृदा स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है तथा उर्वरता में वृद्धि हो रही है। गौठानों में निर्मित सुपरकम्पोस्ट, वर्मीकम्पोस्ट में पोषक तत्वों की मात्रा प्राकृतिक रूप से बढ़ाने हेतु इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय एवं छत्तीसगढ़ बायोटेक्नोलॉजी प्रमोशन सोसायटी के संयुक्त प्रयास से प्रभावी मित्र सूक्ष्म जीवों युक्त उर्वरा शक्ति नामक तरल जैविक कल्चर तैयार किया गया है, जिसका उपयोग गौठानों में निर्मित सुपरकम्पोस्ट एवं वर्मीकम्पोस्ट के गुणवत्ता उन्नयन एवं उसे समृद्ध बनाने हेतु किया जा रहा है। जैव उर्वरकों के उपयोग का प्रशिक्षण देने के लिए प्रदेश के 27 कृषि विज्ञान केन्द्रों के सहयोग से गौठानों में प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें गौठान समितियों के सदस्यों के साथ-साथ महिला स्व-सहायता समूह के सदस्य भी शमिल हो रहीं हैं। इस प्रशिक्षण कार्यकम द्वारा प्रदेश के 150 गौठानों के 1500 गौठान समिति के सदस्य, एवं स्वसहायता समूहों के सदस्यों को प्रशिक्षित किया गया है।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय एवं छत्तीसगढ़ बायोटेक्नोलॉजी प्रमोशन सोसायटी द्वारा निर्मित जैव उर्वरकों में राइजोबियम कल्चर, फास्फोरस सोल्यूब्लाईजिंग बैक्टीरिया कल्चर, एजोस्पाइरिलम, जिंक सोल्यूब्लाईजिंग बैक्टीरिया कल्चर एवं पोटेशियम सोल्यूब्लाईजिंग बैक्टीरिया कल्चर शामिल हैं। गौठानों में निर्मित खाद चूंकि प्राकृतिक पदार्थ है अत: यह पर्यावरण के दृष्टिकोण से कृषि हेतु अति उत्तम जैविक खाद है। यह मिट्टी को पोषक तत्वों के साथ-साथ जैविक रूप से समृ़द्ध बनाने हेतु अति उपयोगी है। इन खादों में स्थानीय फसल आवश्यकताओं को देखते हुए प्रभावी लाभदायक सूक्ष्मजीवों का समावेश कर दिया जावे तो इनके गुणवत्ता में वृद्धि होगी। कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा डी.ए.पी. एवं म्यूरेट आफॅ पोटाश की आवश्यकताओं एवं पूर्ति को दृष्टिगत रखते हुए विभिन्न फसलों में पी.एस.बी. एवं के.एस.बी. जैव उर्वरकों का उपयोग करने की सलाह दी जा रही है। गोठानों में निर्मित जैविक खादों को उपरोक्त जैव उर्वरकों से जैव सवंर्धित किया जाय तो इनके द्वारा प्रदाय की गई पोटाश से फसलों को आवश्यक पोषक तत्वों की काफी मात्रा में पूर्ति की जा सकती है।

पी.एस.बी. कल्चर से उपचारित जैविक खादों के प्रयोग से फसल को लगभग 15-20 किलोग्राम/हेक्टेयर आपूर्ति की जा सकती है। इसी तरह के.एस.बी. कल्चर से उपचारित जैविक खाद के प्रयोग से 12-15 किलोग्राम पोटाश की आपूर्ति प्रति हेक्टेयर की जा सकती है। वर्तमान में प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में धान की खेती में जस्ते (जिंक) की कमी पाई गई है जिससे धान का उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित होती है। ऐसे क्षेत्र के लिए जिंक घोलक जीवाणु (जेड.एस.बी.) तरल कल्चर का उपयोग किया जा सकता है। बस्तर के काफी क्षेत्र में मक्के की खेती की जाती है जिसका उत्पादन बढ़ाने में पोटाश की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हल्की मृदाओं में उगायी जाने वाली मक्का फसल हेतु पोटाश घोलक जीवाणु (के.एस.बी.) कल्चर से उपचारित जैविक खाद का प्रयोग निसंदेह मक्का की अच्छी पैदावार हेतु उपयोगी सिद्ध होगा।
