-दीपक रंजन दास
आवश्यकता की वस्तु पर चाहे जितने प्रतिबंध लगा लो, वह तो बिकेगा ही। एक नंबर में बिकता है तो सरकार को राजस्व मिलता है और दो नम्बर में माफिया मालामाल होता है। अब दारू को ही देख लो। जिन राज्यों में प्रतिबंधित है वहां चार गुनी कीमत पर मिलती है और सरकार अंगूठा चूसती रह जाती है। निस्संतान दंपतियों के लिए पसंद का बच्चा एक जरूरत है। पर सरकार ने यहां भी अड़ंगा लगा रखा है इसलिए अब बच्चों की खरीद फरोख्त शुरू हो गई है। हाल ही में पुलिस के हाथ एक मोबाइल कॉल रिकार्डिंग आई है जिसमें एक महिला नवजात उपलब्ध कराने का सौदा कर रही है। सबसे अनोखा मामला है जेल में बैठे-बैठे कम्प्यूटर एप्लिकेशन में डिप्लोमा करने का। 2014 से जेल में बंद एक युवक 2019 में रिहा होता है। उसके पास 2018 का डीसीए का सर्टिफिकेट है। यह सर्टिफिकेट एक निजी विश्वविद्यालय ने जारी किया है या यूं कहिए बेचा है। आरटीआई कार्यकर्ता ने मामला उजागर करते हुए मामले की शिकायत राज्य शासन के उच्च शिक्षा विभाग, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्नीकल एजुकेशन से की है। शिकायत की प्रति छत्तीसगढ़ प्राइवेट यूनिवर्सिटी रेगुलेटरी कमीशन सहित निजी विश्वविद्यालय को भी उपलब्ध करा दी गई है। आरोप है कि यूनिवर्सिटी ने छात्र का कोई पंजीयन नहीं किया, उसे एडमिशन भी नहीं दिया पर सर्टिफिकेट दे दिया। इस मामले में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। आखिर इतना हंगामा क्यों है भाई? बंदे को काम नहीं आता होगा तो एक सर्टिफिकेट भर से उसे कोई नौकरी नहीं मिल जाएगी। यदि काम आता होगा तो सर्टिफिकेट तो केवल एक फार्मेलिटी है। रामायणकाल में वैद्य सुषेण हुए। वे दशानन रावण के फैमिली फिजीशियन थे। युद्ध के दौरान भ्राता लक्ष्मण मूर्छित हुए तो उन्होंने चिकित्सक धर्म का पालन करते हुए उनकी भी सेवा सुश्रुषा की। उनके प्राण बचाए। वैद्य सुषेण से लेकर चरक-सुश्रुत तक के पास कोई डिग्री-डिप्लोमा नहीं थी। रामदेव बाबा के पास भी कोई डिग्री नहीं है। पर इन्हें व्यापक स्वीकार्यता है। डिग्री धारी स्कूल कालेज में नौकरी कर रहे हैं और पढ़ाई बीच में छोडऩे वाले भी कोचिंग चला रहे हैं। स्वीकार्यता कोचिंग की ज्यादा है। ऐसा इसलिए भी है कि स्कूल कालेज में पढ़ाने वाले शिक्षक, व्याख्याता, सहायक प्राध्यापक, सह प्राध्यापक या प्राध्यापक ही हो सकते हैं। कॉमर्स गुरू, केमिस्ट्री गुरू, मैथ्स गुरू और फिजिक्स गुरू तो कोचिंग सेन्टर में ही मिल सकते हैं। इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में छोडऩे वाला 9वीं, 10वीं, 11वीं, 12वीं के बच्चों को तो पढ़ा ही सकता है। डिग्री भले ही पूरी न हुई हो उसे कोचिंग का अच्छा खासा एक्सपीरियंस है। लिहाजा भीड़ उसके पास है और कालेज वाले फाख्ता उड़ा रहे हैं।
गुस्ताखी माफ: जो जरूरी है वह तो बिकेगा ही फिर चाहे…
