-दीपक रंजन दास
पहलगाम बर्फ से ढकी चोटियों, देवदार के पेड़ों और जीवंत फूलों की घाटियों से घिरा एक आकर्षक शहर है। यह स्थान श्रीनगर से 95 किलोमीटर तथा अनंतनाग से 45 किलोमीटर दूर है। इसे पर्यटकों का स्वर्ग भी कहा जाता है। इसी पहलगाम में 22 अप्रैल को आतंकियों की एक टोली ने हमला किया। उन्होंने पर्यटकों का नाम पूछ-पूछ कर उन्हें गोली मारी। इस हमले में 26 लोग मारे गए और 17 अन्य गंभीर रूप से जख्मी हैं। घटना के एक दिन बाद भारत ने अपना रुख कड़ा करते हुए 1960 के सिंधु जल संधि पर रोक लगा दी। इसके तहत पाकिस्तान को भारत की तीन नदियों का पानी मिलता है जिससे वहां सिंचाई और विद्युत निर्माण होता है। अटारी चेकपोस्ट को बंद कर दिया गया है। जितने भी लोग वीजा पर भारत में हैं, उन सबको तत्काल भारत छोडऩे के आदेश दिये गये हैं। पाकिस्तानी नागरिकों के सार्क वीजा छूट योजना के तहत भारत में प्रवेश बंद कर दिया गया है। पाकिस्तानी उच्चायोग में तैनात रक्षा और सैन्य सलाहकारों को अवांछित घोषित कर एक सप्ताह में भारत छोडऩे के आदेश दिये गये हैं। भारत अपने रक्षा सलाहकारों को भी इस्लामाबाद से वापस बुला रहा है। सैन्य डिप्लोमैटिक संवाद ठप कर दिया गया है। उधर, पाकिस्तान में संभावित भारतीय सैन्य कार्रवाई को लेकर दहशत का माहौल है। ऐसा पहले भी कई बार हुआ है पर आतंकवाद पर पूर्ण अंकुश लगा पाना संभव नहीं हुआ है। ठीक है कि ऐसी घटनाओं के बाद देश को इसका कड़ा प्रतिवाद करना चाहिए। वह भारत ने किया है जिसके लिए उसे साधुवाद दिया जाना चाहिए। पहलगाम, पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा से 218 किमी, लाहौर से 600 किमी और इस्लामाबाद से 1000 किमी दूर है। सेना, पुलिस और गुप्तचर विभाग अपना काम कर रहे हैं। इसके नतीजे भी सामने आ जाएंगे। इसके साथ ही देश के इतिहास में एक और बड़ा आतंकवादी हमला शामिल हो जाएगा। दरअसल, नक्सलवाद हो या आतंकवाद, इसके खिलाफ सिर्फ धैर्य पूर्वक काम करने की जरूरत है। इनके खिलाफ की जा रही कार्रवाई को लेकर डींगें मारने का कोई तुक नहीं है। जवाबी कार्रवाई भी ऐसे हमलों के बाद ही की जा सकती है। यह छापामार युद्ध है जिसके खिलाफ तैयारी करने में सबसे बड़ी भूमिका सूचना अर्थात इंटेलीजेंस की हो सकती है। अमेरिका में भी आतंकी हमला हुआ। अमेरिका ने इसके बाद गुपचुप पाकिस्तान में घुसकर इस हमले के मास्टरमाइंड को मार गिराया। पर भारत में स्थिति कुछ और ही है। यहां सरकार के प्रत्येक कदम को चुनावी कसौटी पर भी कसा जाता है। इसलिए कभी हम आतंकवाद को खत्म करने की डेडलाइन देते हैं तो कभी नक्सलवाद को खत्म करने की तारीख सुनाते हैं। इन दावों की कोई बुनियाद नहीं होती, हो भी नहीं सकती। आप अच्छी तैयारी करें, परीक्षा अच्छे से और पूरी ईमानदारी से दें, नतीजे अपने आप अच्छे आएंगे। उकसाने वाले दावों से परहेज करना सीखें।
