-दीपक रंजन दास
जीवन की कठिनाइयां लोगों को मजबूत बनाती हैं. पर यही कठिनाइयां अंधविश्वास और टोटकों को भी जन्म देती है. चतुर लोग इसमें भी धंधा ढूंढ लेते हैं. दरवाजों पर काले घोड़े की नाल, उलटा लटका हुआ कपड़े का काला पुतला तो पहले भी देखने को मिल जाता था पर अब तो टेबल पर कांच या धातु का कछुआ, गिलास या कटोरी में बांस के छोटे पौधों भी देखने को मिल जाते हैं. एक आदमी कूल्हे से लेकर टखने तक भयंकर दर्द की शिकायत लेकर अस्पताल पहुंचा. पहले लगा कि यह सायटिका का दर्द है. मरीज को एडमिट कर लिया गया. जांचें शुरू की गईं. जांच का कोई नतीजा निकाला जाना अभी बाकी था पर मरीज को दर्द जाता रहा. अस्पताल के कपड़े पहनते ही उसका दर्द जाता रहा. तभी एक अटेंडर ने रहस्योद्घाटन किया. उसने मरीज के बेडसाइड टेबल में रखे एक बड़े से ढेले की तरफ डाक्टर का ध्यान आकर्षित किया. करीब से देखने पर पता चला कि वह एक चमड़े का बटुआ “लेदर वॉलेट” है जिसका पेट भयंकर रूप से फूला हुआ है. जब मरीज से बटुए का सामान निकालकर दिखाने को कहा गया तो इसमें से बीच में छेद वाले ढेर सारे चाइनीज फेंगशुई सिक्के निकले. डाक्टरों को तुरंत उसकी तकलीफ का कारण समझ में आ गया. बंदा यह बटुआ अपनी जींस के हिप पॉकेट में रखता था. इसके कारण सायटिका नसों पर दबाव पड़ता था. बंदे ने बताया कि यह करामाती चाइनीज सिक्के हैं जो सुनिश्चित करते हैं कि जेब कभी खाली न हो. बंदे को इस टिप के साथ अस्पताल से छुट्टी दे दी गई कि अब या तो वह बटुए दो रखेगा या फिर उसे सामने की जेबों में रखेगा. ठीक इसी तरह अब दुकानों से लेकर घरों तक में टेबल पर कांच के बर्तन में तैरते धातु या कांच के कछुए दिख जाते हैं. इसे क्रिस्टल कछुआ भी कहा जाता है. मान्यता है कि इसे घर, दफ्तर या दुकान की उत्तर दिशा में रखने पर वित्तीय स्थिरता आती है. इसी तरह बेडरूम या डाइनिंग टेबल पर रखे बांस के छोटे पौधे रिश्ते में सुख, शांति और मधुरता लाते हैं. कुछ ऐसी ही मान्यता पूरब मुखी प्लाट, मकान और दुकानों को लेकर भी है. ऐसे में याद आता है अपना बचपन. पिताजी भिलाई स्टील प्लांट में काम करते थे. भिलाई टाउनशिप के मकान या तो उत्तरमुखी होते हैं या फिर दक्षिणमुखी. वेतन समय पर मिलता था, इसलिए वित्तीय स्थिरता में कोई बाधा नहीं थी. एक-दो कमरे के बीएसपी क्वार्टर में वास्तुदोष नहीं होता था. 6-7 लोगों का परिवार आराम से रहता था. मेहमान भी आ जाते थे. प्लांट में 50-60 हजार लोग काम करते थे. आठ घंटा ड्यूटी करने के बाद भी ओवरटाइम के लिए उनके पास ऊर्जा होती थी. किसी एनर्जी-ड्रिंक या प्रोटीन पाउडर की जरूरत नहीं पड़ती थी. जाहिर है, पगार समय पर मिले तो तमाम वास्तुदोष अपने आप ठीक हो जाते हैं.