भिलाई (श्रीकंचनपथ न्यूज़)। चुनाव तारीखों का ऐलान होते ही एक निजी चैनल का चुनावी सर्वे सामने आया है। इस सर्वे के चौंकाने वाले आंकड़े प्रदेश में एक बार फिर से कांग्रेस की सरकार बनाने की ओर इशारा कर रहे हैं, जबकि भाजपा में भी इस सर्वे को लेकर उत्साह है। दरअसल, एबीपी-सी वोटर सर्वे में 90 सदस्यीय छत्तीसगढ़ विधानसभा में कांग्रेस को 51 सीटें मिलती दिखाई गई है। राज्य में बहुमत का जादुई आंकड़ा 46 है। ऐसे में इस सर्वे के हिसाब से एक बार फिर कांग्रेस की सरकार बनती दिखती है, लेकिन इसी सर्वे में भाजपा को भी 40 से 45 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है। शायद यही वजह है कि भाजपा के लोगों में भी उत्साह है। उन्हें लगता है कि थोड़े प्रयासों से प्रदेश में सरकार बनाई जा सकती है। सवाल यह है कि 2018 में 68 सीटें जीतने वाली कांग्रेस आखिर 5 साल की सत्ता के बाद 51 के आंकड़े तक कैसे पहुंची?
इस सवाल का जवाब 2018 के चुनाव अभियान से मिलता है। 14 सीटों वाले सरगुजा संभाग को पूरा भरोसा था कि टीएस सिंहदेव छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बनेंगे। इसलिए वहां ऐसी हवा चली कि भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया। सभी 14 सीटें कांग्रेस की झोली में गई। इधर, पार्टी ने साहू समाज के कद्दावर नेता सांसद ताम्रध्वज साहू को विधानसभा के चुनाव में उतारा, उधर पूरा साहू समाज लामबंद हो गया। समाज के लोगों ने बढ़-चढ़कर कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग की। उन्हें भी उम्मीद थी कि ताम्रध्वज साहू सीएम बनेंगे। लेकिन इस बार स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट है। सरगुजा के लोगों और साहू समाज को यह भलीभांति मालूम है कि क्या होगा? साहू समाज को भाजपा का समर्थक माना जाता रहा है। अब भाजपाइयों को भरोसा है कि एक बार फिर यह समाज भाजपा के पक्ष में खड़ा होगा। पिछले दिनों टीएस बाबा ने खुद कहा था कि इस बार सरगुजा में कांग्रेस के सीटें आधी हो सकती है। इन सबके अलावा एक बार फिर सतनामी समाज भाजपा का हाथ थामता दिखता है। हालांकि समाज के एक गुरू कांग्रेस के विधायक और केबिनेटमंत्री हैं, लेकिन बड़ी संख्या में समाज के गुरूओं और महंतों द्वारा भाजपा का समर्थन करने से हालात बदले हैं। इसके साथ ही इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि कांग्रेस में जो युवा और नए लोग विधायक बने, उनका परफारमेंस बेहद खराब रहा है। कांग्रेस की सर्वे रिपोर्ट में भी इसका खुलासा हुआ था। इसके चलते बहुत सारे विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस की संभावनाएं क्षीण हुई है। हालांकि पार्टी इस बार ऐसे विधायकों को टिकट से वंचित करने जा रही है। भाजपा के विपरीत कांग्रेस ने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन संभावना है कि इस बार पार्टी महिलाओं को ज्यादा टिकट दे। शायद इसके जरिए कुछ भरपाई करने की कोशिश होगी।
2018 में कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में कुल 43 फीसद वोट मिले थे। जबकि भाजपा को 33 फीसद। दोनों के बीच वोट प्रतिशत का अंतर 10 था। यदि निजी सर्वे पर भरोसा करें तो भाजपा इस अंतर को काफी कुछ पाटती दिखती है। जबकि 2013 में स्थितियां इसके ठीक उलट थी। उस वक्त भाजपा को 49 और कांग्रेस को 39 फीसद वोट मिले थे। इस अंतर को कांग्रेस ने 2018 में बहुत बेरहमी से पाटा था। मतलब, कांग्रेस ने 2013 के मुकाबले 2018 में 20 फीसद ज्यादा वोट कबाड़े थे। हालांकि इसे सत्ता विरोधी लहर और डॉ. रमन सरकार की कुछ नीतियों का दोष माना जा सकता है। ऐसे में यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि इस बार भाजपा क्या जादू कर दिखाती है? वैसे, पार्टी के भीतर टिकट वितरण को लेकर खासा असंतोष देखने को मिल रहा है। जिन चेहरों पर दाँव लगाया गया है, पार्टी के कार्यकर्ताओं का मानना है कि उनके दम पर सरकार बनाना संभव नहीं है। बावजूद इसके छत्तीसगढ़ में चुनावी नैय्या पार लगाने की जिम्मेदारी आरएसएस के कंधों पर डाली गई है।

सभी संभागों में नुकसान का अंदेशा
2018 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने कमाल का परफारमेंस दिया था। इसी के चलते सरगुजा और बस्तर जैसे संभागों से भाजपा का सूपड़ा पूरी तरह से साफ हो गया था। वहीं दुर्ग संभाग से उसे महज 2 सीटें ही नसीब हुई थी। तब भाजपा की लाज बचाने में कुछ हद तक बिलासपुर और रायपुर संभाग कुछ हद तक कामयाब हुए थे। 24 सीटों वाले बिलासपुर संभाग से कांग्रेस को कुल 13 और 20 सीटों वाले रायपुर संभाग से 14 सीटें मिली थी। लेकिन इस बार कांग्रेस के लिए हालात उतने मुफीद नहीं हैं। भाजपा और कांग्रेस के सर्वे के साथ ही हालिया आए निजी चैनल के सर्वे को मिलाकर निष्कर्ष निकालें तो कांग्रेस को इस बार सभी 5 संभागों में काफी सीटों का नुकसान होने का अंदेशा है। यह तब है जब छत्तीसगढ़ सरकार की जनकल्याणकारी नीतियों की चर्चा पूरे देश में है। यदि बारीकी से अन्वेषण करें तो इस मामले में कांग्रेस की कमियां कम और भाजपा की भरपाई ज्यादा दिखती है। यह भूपेश बघेल सरकार की योजनाओं का ही असर है कि छत्तीसगढ़ में एक बार फिर से कांग्रेस की सरकार बनती दिखती है।
कांग्रेस का पिटारा खुलने का इंतजार
भले ही भाजपा ने 90 में से 85 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं, लेकिन अब भी कांग्रेस ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। कांग्रेस के साथ ही राजनीतिक विश्लेषकों को भी इसका बेसब्री से इंतजार है। दरअसल, कांग्रेस द्वारा घोषित किए जाने वाले प्रत्याशियों के आधार पर ही किसी तरह का आंकलन संभव है। पूरी संभावना है कि कांग्रेस नया सप्ताह प्रारम्भ होते-होते अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दे। लेकिन जो खबरें आ रही है, उसके मुताबिक, कांग्रेस के कई विधायकों के टिकट काटे जा रहे हैं। ये वे विधायक हैं, जिनका परफारमेंस कमजोर आंका गया है। कांग्रेस के सर्वे में यह बात प्रमुखता से आई थी कि ये विधायक सत्ता सुख भोगने में इतने मशगूल रहे कि उन्होंने जनता और क्षेत्रीय समस्याओं की ओर मुंह तक नहीं किया। इसके चलते पार्टी की स्थिति खराब हुई है। इसके अलावा ऐसे भी संकेत मिल रहे हैं कि जिन दावेदारों की राजनीतिक पकड़ कमजोर हैं, उन्हें टिकट नहीं मिलेगी। 2018 में पार्टी ने कुल 13 महिलाओं को टिकट दी थी। इस बार यह संख्या 18 से 20 होने की संभावना जाहिर की गई है।




