-दीपक रंजन दास
अधिकांश लोगों को ऐसा लगता होगा कि खेती किसानी और खाद्य उद्योग एक ही चीज है. ये दोनों न केवल अलग हैं बल्कि तराजू के दो पलड़ों में इन्हें अलग-अलग रख दो तो किसान आसमान की ओर चले जाएंगे. आज दुनिया भर के किसान मर रहे हैं. उन्हें अपनी उपज की कीमत नहीं मिल रही. जबकि उन्हीं उत्पादों का उपयोग कर प्रसंस्करण उद्योग मालामाल हो रहा है. इसमें सबसे बड़ा रोड़ा है सरकार की नीतियां. केन्द्र सरकार धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है. साथ ही यह शर्त भी चिपका देती है कि यदि राज्य सरकार ने इससे ज्यादा की बोनस राशि दी तो फिर केन्द्र धान खरीदी से हाथ खींच लेगा. पूरी खरीदी राज्य को ही करनी पड़ेगी. इस डर से राज्य की सरकारें धान के समर्थन मूल्य पर ज्यादा बोनस नहीं दे पाती. जबकि यह मूल्य इतना कम है कि कृषि मजदूरों के हिस्से में कुछ भी नहीं आता. फसल खराब होने की स्थिति में किसान खुद कर्ज से लद जाता है और या तो जेल चला जाता है या फिर खुदकुशी कर लेता है. कृषि और कृषि आधारित उद्योग की बात करें तो किसान को धान का जहां मुश्किल से प्रति किलो 22-24 रुपए मिलता है वहीं उससे निकला चावल 50 से 65 रुपए किलो बिकता है. इसी चावल से बनाया गया मुर्रा 250 से 300 रुपए किलो बिकता है. देश के मशहूर कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा का मानना है कि यदि स्थिति में बदलाव नहीं आया तो 2050 तक देश दुनिया भर में केवल 5 प्रतिशत ही किसान रह जाएंगे. वो इस बात से भी खफा थे कि कारोबारियों का हजारों करोड़ का कर्जमाफ हो जाता है लेकिन किसानों को जेल हो जाती है. वो कहते हैं कि खुद को बचाने का हथियार भी किसानों के पास ही है. देश के आधी आबादी किसानों की है. 60 करोड़ लोग खेती से प्रत्यक्ष जुड़े हैं. ये 60 करोड लोग अगर ठान लें तो उनकी अपनी सरकार बन सकती है. जब तक वे अपने वोट का इस्तेमाल ठीक नहीं करते हैं, दूसरे तरीके की सरकारें ही बनती रहेंगी. इन 60 करोड़ लोगों को किसानी के आधार पर वोट डालना चाहिए. किसान होने के नाते वोट डालना चाहिए. धर्म, जाति या पॉलीटिकल आईडियोलॉजी के नाम पर वोट देंगे तो ये खुद मरेंगे. यही हो रहा है किसानों के साथ. पिछले 70-75 सालों से सरकारें उनकी आय को दोगुना करने की बातें कर रही हैं पर वास्तविकता के धरातल पर कुछ नहीं हो रहा है. इस मामले में देविंदर छत्तीसगढ़ सरकार के साथ खड़े नजर आते हैं. वे कहते हैं कि पारम्परिक खेती की तरफ बढ़ना, भूजल के लिए नरवा योजना चलाना, आर्गेनिक खेती की तरफ कदम बढ़ाना, ये सभी शुभ संकेत हैं. यह सरकार किसानों के हाथ तक ज्यादा से ज्यादा पैसा पहुंचाने की कोशिश कर रही है. इससे राज्य की पूरी अर्थव्यवस्था पुष्ट हो रही है.
Gustakhi Maaf: फूड इंडस्ट्री और एग्रीकल्चर का तराजू
