Agency: मंगल ग्रह पर जीवन के कई बार दावे किए जा चुके हैं। हालांकि हर बार यही कहा गया है मंगल ग्रह पर पहले कभी जीवन था लेकिन वर्तमान में वहां की परिस्थितियां जीवन के अनुकूल नहीं हैं। एक ऐस्ट्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर ने बड़ा दावा करते हुए कहा था कि 50 साल पहले ही मंगल पर जीवन की खोज कर ली गई थी लेकिन फिर अचानक जीवन खत्म हो गया। टेक्निकल यूनिवर्सिटी ऑफ बर्लिन के फैकल्टी मेंबर डिर्क सुल्जे माकुच ने दावा किया था कि मंगल पर जीवन तो है लेकिन इसका पता लगते ही यह खत्म हो जाएगा।
नासा ने 2011-12 में क्यूरियोसिटी रोवर मंगल पर भेजा था जो कि अब भी काम कर रहा है। 1970 में नासा ने दो लैंडर मंगल पर भेजे थे। मंगल ग्रह के बारे में पता लगाने का काम करीब 60 सालों से चल रहा है। नासा के मिशन का उद्देश्य यही था कि यह पता लगाया जाए कि मंगल पर जीवन संभव है या नहीं। अगर अब नहीं भी संभल है तो क्या कभी ऐसा रहा होगा कि वहां जीवन रहा होगा। नासा के इस मिशन का नाम विकिंग प्रोग्राम था।
नासा के इस मिशन से कई जानकारियों जुटाई गई थीं। मंगल पर कुछ बहने की आकृति, ज्वालामुखी के स्लोप पाए गए थे। इसके अलावा मंगल पर कुछ क्लोरिनेटेड जैव अवशेष भी मिले थो जो कि जीवन के सबूत के तौर पर देखे जा रहे थे। वैज्ञानिकों ने कहा था कि मंगल पर जैव तत्व हैं लेकिन वे क्लोरिनेटेड फॉर्म में हैं। विकिंग एक्सपेरिमेंट के तहत मंगल की मिट्टी में पानी मिलाया गया। इसके बाद इस लाल मिट्टी में रेडियो ऐक्टिव कार्बन (सी-14) होने का पताचला। वैज्ञानिकों का कहना था कि मंगल पर कभी माइक्रऑर्गनिजम हुआ करते थे जो कि गैस के रूप में रेडियोऐक्टिव कार्बन छोडते थे। शुल्जे माकुच का कहना था कि हो सकता है कि सैंपल में जीवित सूक्ष्मजीव रहे हों लेकिन वे पानी मिलाने की वजह से नष्ट हो गए।
बता दें कि स्पेसक्राफ्ट मार्स रिकॉनसेंस ऑर्बिटर ने मंगल ग्रह पर ‘जमी बर्फ की आकृति’ भेजी थी। इसके बाद नासा ने कहा था कि जहां पानी होता है वहां जीवन भी होता है। इसलिए लाल ग्रह पर पानी की खोज की जा रही है। नासा ने दावा किया था कि मंगल के दक्षिणी ध्रुव पर काफी बर्फ है। मंगल ग्रह पर पानी की संभावनाओं को इसलिए भी खारिज किया जा रहा था क्योंकि यहां का तापमान बहुत कम है और तरल रूप में पानी नहीं रह सकता है।