-दीपक रंजन दास
छत्तीसगढ़ विधानसभा के इस कार्यकाल का आखिरी सत्र चल रहा है. महज चार दिन के इस मानसून सत्र में विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लेकर आ रहा है. चंद महीनों में सरकार के अधिकार वैसे ही फ्रीज हो जाने हैं. इसके बाद चुनाव होंगे और जो जीतेगा वही नया सिकंदर होगा. इसलिए इस सत्र की तुलना फेयरवेल पार्टी से की जा सकती है. स्कूलों में फेयरवेल पार्टी का चलन अभी नया है. निजी स्कूलों के विद्यार्थी दो फेयरवेल मनाते हैं. इनमें से एक फेयरवेल पार्टी संस्थागत होती है जिसमें प्राचार्य, स्कूल संचालक और शिक्षक शामिल होते हैं. विद्यार्थियों को आगे के जीवन के लिए मार्गदर्शन दिया जाता है. बताया जाता है कि विद्यार्थियों के आचरण एवं उपलब्धियों से उनके संस्थान का नाम भी जुड़ा होगा. इसलिए वे ऐसा कुछ भी न करें जिससे उस संस्थान को ठेस पहुंचे जहां उन्होंने अपने जीवन के श्रेष्ठ 12 साल बिताए हैं. इसके बाद विद्यार्थी एक दूसरे की कमीज पर पेन से अपने हस्ताक्षर करते हैं. इन कमीजों को विद्यार्थी धोते नहीं बल्कि काफी समय तक संभाल कर रखते हैं. इसके अलावा एक और फेयरवेल पार्टी होती है जिसे अन-ऑफिशियल पार्टी कहते हैं. इसका आयोजन किसी होटल में होता है जहां वे नाच गाने के साथ लजीज व्यंजनों का लुत्फ उठाते हैं. उनके मन के किसी कोने में यह बात होती है कि आगे के जीवन पर बंदिशें कम होने वाली हैं और जिन्दगी खूबसूरत होने वाली है. पर पॉलीटिक्स में ऐसे सद्भाव की उम्मीद नहीं की जाती. यह विधानसभा का आखिरी सत्र कम और आने वाले चुनावों की तैयारी ज्यादा होती है. छत्तीसगढ़ विधानसभा के इस अंतिम सत्र में विपक्ष 109 बिन्दुओं के आरोप पत्र के साथ शामिल हो रही है. वह सरकार के खिलाफ तब अविश्वास प्रस्ताव लेकर आ रही है जब कि उसके कार्यकाल के गिनती के दिन शेष रहे हैं. अक्टूबर में चुनाव आचार संहिता लगते ही सरकार स्वयमेव पंगु हो जाएगी. इस सत्र का इससे बेहतर उपयोग हो सकता था. वैसे विपक्ष की झोली के सबसे बड़े हथियार को देश की सर्वोच्च न्यायालय ने भोथरा कर दिया है. शराब घोटाले को लेकर जितना हो-हंगामा विपक्ष ने मचाया था, उस मामले की प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) जांच पर ही सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है. साथ ही किसी भी प्रकार की दंडात्मक या कठोर कार्रवाई पर रोक लगा दी गई है. अब जो मुद्दे उसके पास बचे हैं, उन्हें लेकर खुद उसका दामन कभी साफ नहीं रहा. भ्रष्टाचार और घोटाला तो अब सभी राजनीतिक दलों और सरकारों के लिए पर्यायवाची शब्द है. सत्तारूढ़ पार्टी की तरफ एक उंगली उठती है तो तीन अंगुलियां खुद-ब-खुद अपनी और मुड़ जाती हैं. रही बात डीएमएफ फंड से आत्मानंद स्कूलों के संचालन की तो इससे जनता खुश है. फालतू के शिलान्यास और लोकार्पण समारोहों में खर्च होने वाली यह राशि किसी सद्कर्म में लगे तो किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? जनता तो खुश है.