भाजपा का ध्यान बस्तर पर तो कांग्रेस का मिशन सरगुजा हुआ पूर्णत: सफल
भिलाई (श्रीकंचनपथ एक्सक्लूसिव)। छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित कुल 29 सीटें कब्जाने के लिए राजनीतिक दलों की जोर-आजमाइश शुरू हो चुकी है। वर्षांत में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के मद्देनजर न केवल सत्तारूढ़ दल कांग्रेस अपितु भाजपा भी इस वर्ग को अपने पाले में करने की जुगत में है। नाराज चल रहे टीएस बाबा को संतुष्ट करने और उससे पहले कद्दावर आदिवासी नेता नंदकुमार साय को कांग्रेस से जोडऩे का जो खेल हुआ, उसके बाद सरगुजा की स्थितियां कुछ हद तक स्पष्ट होती दिखती हैं। वहीं भाजपा का पूरा जोर काफी समय से बस्तर पर है। उसके राष्ट्रीय नेता लगातार इस आदिवासी पट्टी का दौरा करते रहते हैं। दोनों आदिवासी इलाकों को सत्ता की मॉस्टर चाबी माना जाता है।
90 विधानसभा क्षेत्रों वाले छत्तीसगढ़ में कुल 29 सीटें एसटी वर्ग के लिए आरक्षित है। इनमें बस्तर की 12 में से 11 सीटें व सरगुजा की कुल 14 सीटों में से 9 सीटें इस वर्ग को समर्पित है। इन 9 सीटों के अलावा बाकी बची 5 सीटों पर भी कहीं न कहीं एसटी फैक्टर काम करता है। इस तरह दोनों ही आदिवासी पट्टियों में इस वर्ग का समर्थन सत्ता के गुणा-भाग का प्रमुख आधार बनता है। लगातार 3 बार सत्तारूढ़ रही भाजपा का 2018 के चुनाव में इन दोनों आदिवासी इलाकों से सूपड़ा साफ हो गया था। सरगुजा संभाग की कुल 14 सीटों पर टीएस बाबा का जलवा साफ तौर पर दिखा था, जबकि बस्तर की 12 में से 11 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। बाद में बची हुई इकलौती सीट पर हुए उपचुनाव में भी कांग्रेस ने जीत दर्ज की। इस तरह सरगुजा और बस्तर संभाग भाजपा के हाथ से फिसलते चले गए। हालांकि इन दोनों संभागों के अलावा बिलासपुर, रायपुर और दुर्ग संभागों में भी भाजपा अच्छे नतीजे हासिल नहीं कर पाई, किन्तु सरगुजा और बस्तर दो ऐसे संभाग रहे जहां के मतदाताओं ने भाजपा को पूरी और बुरी तरह से नकार दिया।

हालांकि अब सत्ता खोने के 4 साल बाद भाजपा में वापसी को लेकर छटपटाहट दिखती है। पार्टी नेतृत्व काफी पहले ही बस्तर पर फोकस कर चुका था। उसके शीर्षस्थ नेता भी गाहे-बगाहे यहां दौरा मारते रहे हैं। दरअसल, भाजपा नेतृत्व बस्तर के महत्व को अच्छी तरह से जानता है। यह दीगर बात है कि पार्टी के भीतर बड़े आदिवासी नेताओं को कभी भी ज्यादा तवज्जो नहीं मिल पाई। गृहमंत्री अमित शाह, भाजपाध्यक्ष जेपी नड्डा और हाल ही में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने बस्तर का दौरा किया था। इससे पहले प्रदेश भाजपा की प्रभारी के रूप में डी. पुरंदेश्वरी भी यहां आतीं रहीं। वर्तमान प्रभारी ओम माथुर भी बस्तर का दौरा कर आए हैं। कह सकते हैं कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व बस्तर में अपनी खोई हुई साख को फिर से पाने की कोशिश में है। हालांकि ऐसा भी कहा जा रहा है कि वरिष्ठ नेताओं के ये दौरे मिशन 2023 के लिए नहीं बल्कि मिशन 2024 के लिए है और पार्टी नेतृत्व एक-एक सीट पर काम कर रहा है।

दूसरी ओर सरगुजा पर भाजपा के नेता फोकस नहीं कर पा रहे हैं। अभी हाल ही में बड़े आादिवासी नेता नंदकुमार साय अपनी उपेक्षा से नाराज होकर कांग्रेस में शामिल हो गए। इसका ईनाम उन्हें केबिनेट मंत्री के दर्जे के रूप में मिला। साय के भाजपा छोडऩे का आदिवासियों के भीतर एक संदेश स्पष्ट रूप से गया कि भाजपा आदिवासी नेताओं को महत्व नहीं दे पा रही है। साय ऐसे आरोप लगाते भी रहे हैं। जाहिर है कि आने वाले चुनावों में साय फैक्टर का असर भी दिखेगा।
वहीं, सरगुजा के भावी नतीजों से चिंतित कांग्रेस अब राहत की साँस ले सकती है, क्योंकि सरगुजा में कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे टीएस सिंहदेव की नाराजगी अब खत्म हो चुकी है। पार्टी ने उन्हें उपमुख्यमंत्री के पद से नवाजा है। एक समय अपने चुनाव लडऩे पर संशय जाहिर करने वाले टीएस बाबा अब मिल-जुलकर लडऩे और जीतने की बात कर रहे हैं। जाहिर है कि हालात अब बदल चुके हैं। भाजपा यहां अब तक दूसरे कंधे के भरोसे थी। शायद इसीलिए उसने सरगुजा की बजाए बस्तर पर ज्यादा फोकस किया। इस लिहाज से कह सकते हैं कि कांग्रेस ने अपना मिशन सरगुजा सफलता पूर्वक पूरा कर लिया है। जल्द ही उसके नेता बस्तर पर फोकस करते दिख सकते हैं। हालांकि प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मोहन मरकाम बस्तर क्षेत्र का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। दरअसल, कांग्रेस बस्तर को लेकर निश्चिंत दिखती है। इसकी एक प्रमुख वजह यह भी है कि बस्तर में भाजपा पूरी तरह से साफ है और उसके स्थानीय नेता भी हाशिए पर है। उन्हें पार्टी में भी ज्यादा महत्व नहीं मिला।
कांग्रेस आशान्वित, भाजपा में संशय
एसटी वोटर्स की सत्ता-सीढी राजीव भवन में लगेगी या एकात्म परिसर में; इसे लेकर अपने-अपने दावे-प्रतिदावे है। कांग्रेस जहां सरगुजा और बस्तर समेत पूरे छत्तीसगढ़ में परचम लहराने को लेकर आशान्वित है तो दूसरी ओर भाजपा इस उम्मीद में है कि वह मतदाताओं तक प्रदेश सरकार की कथित विफलता को पहुंचाकर हालातों को अपने पक्ष में कर लेगी। भाजपा के नेताओं में संशय मिश्रित प्रतिक्रिया भी आ रही है।
मंत्रियों के दौरों से कितना बदलेंगे हालात?
इस बीच, लगातार आ रही निगेटिव रिपोर्ट के चलते गृहमंत्री अमित शाह ने छत्तीसगढ़ की कमान अपने हाथों में ले ली है। वे 5 जुलाई को एक बार फिर छत्तीसगढ़ आ रहे हैं। 7 जुलाई को पीएम नरेन्द्र मोदी का दौरा है। उनके साथ सड़कमंत्री नितिन गडकरी, रेलमंत्री अश्वनी वैष्णव के साथ ही गिरिराज सिंह, रेणुका सिंह, मनसुख मांडविया जैसे मंत्री भी आएंगे। पीएम मोदी के अगले महीने फिर दौरे की संभावना है। ऐसे में सवाल यह उठाया जा रहा है कि क्या केन्द्रीय नेताओं के आगमन से छत्तीसगढ़ की राजनीतिक फिजां में बदलाव आएगा? दरअसल, पार्टी आलाकमान तक यह रिपोर्ट पहुंची है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा के लिए चुनावी हालात दुरूस्त नहीं है। ऐसे में माहौल में बदलाव लाने के लिए आला नेताओं के दौरे हो रहे हैं। बताया तो यह भी जा रहा है कि शाह अपने दौरे के दौरान पार्टी के नेताओं से अलग से रायशुमारी भी करेंगे।