-दीपक रंजन दास
वर्ण या जाति व्यवस्था पर नया बवाल शुरू हो गया है. राम जन्मभूमि और राम मंदिर का बवंडर अब शांत हो चुका है. मंदिर बनने के साथ ही उतावलापन भी जाता रहा है. अब समय आ गया है हिन्दुओं को बांटने वाली वर्ण व्यवस्था पर चोट करने की ताकि सारे हिन्दू एकजुट होकर विदेशी धर्मों का विरोध कर सकें. पर इसकी शुरुआत ही गलत हो गई. कारण भी स्पष्ट है. वर्ण व्यवस्था पर मुंह खोलने से पहले महानुभावों ने होमवर्क नहीं किया. दरअसल, होमवर्क संस्कृति का ही लोप हो चुका है. लोग न तो पढ़ते हैं और न ही शोध करते हैं. कुछ जानना हुआ तो गूगल कर लिया. कच्ची पक्की जानकारी हासिल की और लगे ज्ञान बांटने. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत की एक टिप्पणी को लें. उन्होंने कहा कि ईश्वर की नजर में सभी समान हैं. मुंबई में संत रविदास की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि जाति प्रथा ब्राह्मणों की देन है, जो गलत है. इसीका फायदा उठाकर बाहरी लोगों ने हमें बार-बार गुलाम बनाया. ब्राह्मणवाद के खिलाफ देश की एक बड़ी आबादी में आक्रोश है. भागवत शायद उन्हें एक मंच पर लाने की कोशिश कर रहे हैं. पर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कह दिया कि गीता में भगवान ने स्वयं कहा है कि चार वर्णों की रचना उन्होंने स्वयं की. पुराणों के अनुसार चार वर्णों की उत्पत्ति ईश्वर के मुख, छाती, भुजा और चरणों से हुई है. वहीं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने कहा कि जाति शब्द की उत्पत्ति ज्ञाति शब्द के अपभ्रंश के रूप में हुई. वस्तुतः जिसके पास जो ज्ञान था वह उसका ज्ञाता या ज्ञाति कहलाया. ज्ञाति ही चलन में जाति के रूप में प्रचलित हो गया. मानव जाति के विकास क्रम का अध्ययन करने वाले उनसे सहमत हो सकते हैं. सवाल यह नहीं है कि जाति या वर्ण व्यवस्था किसने बनाई, सवाल यह है कि क्या यह व्यवस्था आधुनिक भारत में प्रासंगिक है? शायद नहीं. आज सभी क्षेत्रों में सभी वर्णों के लोग आपस में प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं. शिक्षा, विज्ञान, सेना, खेल, आध्यात्म, सभी क्षेत्रों में सभी वर्णों के लोग हैं. कौन किससे बेहतर है, यह उसकी जाति तय नहीं करता. तो क्या यह आरक्षण के मूल पर किया गया एक हमला है? देश का एक बड़ा तबका जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था के खिलाफ है. आज अनेक राज्यों में आरक्षण के प्रतिशत को लेकर घमासान हो रहा है. उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ रहा है. यदि जाति/वर्ण व्यवस्था के खिलाफ आंधी उठी तो युवा वोटरों का ध्रुवीकरण हो जाएगा. वैसे भी निर्वाचन आयोग अब स्कूलों में जाकर बच्चों के वोटर आईडी बनाने वाला है. इसलिए 2023-2024 में होने वाले चुनावों में पहली बार वोट डालने वाले युवाओं की अच्छी खासी संख्या होगी. यदि इन्होंने जिद में आकर मतदान किया तो राजनीति में नए समीकरणों का बनना तय है.
Gustakhi Maaf: वर्ण/जाति व्यवस्था पर करना होगा होमवर्क




