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राष्ट्रसंत बापू चिन्मयानंद ने बताया कैसे सुने कथा, भगवान शंकर का उद्हारण देकर बताई यह बातें

By Mohan Rao Published December 15, 2022
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श्रीराम कथा, राष्ट्रसंत स्वामी चिन्मायानंद बापू
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भिलाई। श्रीराम जन्मोत्सव समिति एवं जीवन आनंद फाउण्डेशन द्वारा आयोजित श्रीराम ज्ञान यज्ञ एवं श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ के दूसरे दिन कथावाचक राष्ट्रीय संत श्री चिन्मयानंद बापू ने शिव चरित्र को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि माया के कारण अवगुण जन्म लेते हैं, लेकिन श्रीराम की शरण में आकर सारे अवगुण सदगुण में बदल जाते हैं। उन्होंने कहा कि श्रीराम की शरण में ही विश्राम मिलेगा। उन्होंने कहा कि भगवान को पाना है तो मन को निर्मल बनाना होगा। मन को प्रभु चरण में लगाएं और मन को प्रभु चरण में लगाने रामकथा से बेहतर कुछ भी नहीं। बापू ने कहा कि रामकथा की प्यास हमेशा होनी चाहिए। फिर कथा श्रवण का मौका कही भी मिले, जरूर करें। लेकिन कथा सुनने के भी कुछ नियम है उसका पालन करते हुए कथा का श्रवण कीजिए।

बापू ने कहा कि कथा सुनने के लिए जिस तरह महादेव कैलाश से उतरकर धरती पर आए थे उसी तरह अपने अंहकार, पद, प्रतिष्ठा, जाति धर्म को छोड़कर आना होगा। बापू ने कहा कि श्रीराम कथा भारत के चरित्र का पोषण करती है। उन्होंने श्री राम को देश का संयम और भगवान कृष्ण को बुद्धि बताया। चिन्मयानंद बापू ने कहा कि जिनको अपराजित पौरुष और पूर्ण परमात्मा की चाहत होती है, वही भगवान श्रीराम की शरण में आते हैं। इस मौके पर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पांडेय, श्रीरामजन्म उत्सव के जिलाध्यक्ष युवा प्रभाग मनीष पांडेय, जीवन आनंद के फाउंडेशन के अध्यक्ष विनोद सिंह, तेज बहादूर सिहं, पियुष मिश्रा, बुधन ठाकुर, जोगिंदर शर्मा, बंटी पांडेय, रमेश माने, अजय पाठक, राजेश त्रिपाठी, उमेश मिश्रा, अजीत सिंह, प्रकाश यादव, टोपा, श्रीनु, नील मानिकपुरी, शंकर केडिया, पवन भारद्वाज, सोनू शर्मा, आदि मौजूद थे।

महादेव की तरह रखें निष्ठा
चिन्मयानंद बापू ने शिव चरित्र का विश्लेषण करते हुए बताया कि गोस्वामी तुलसीदास ने शिव का चरित्र इसलिए रखा ताकि लोग रामभक्ति में दृढ निष्ठावान बन सकें। भगवान शिव की तरह श्रीराम में अनन्य निष्ठा रखने वाला उदाहरण कहीं अन्यत्र मिलना दुर्लभ है। चिन्मयानंद बापू ने कहा कि भगवान शिव ने निष्पाप सती को केवल इसलिए त्याग दिया क्योंकि श्रीराम की परीक्षा लेने के लिए उन्होंने भगवती सीता का रूप धारण किया। यद्यपि भगवान शिव सीता को अपनी इष्ट देवी के रूप में मानते थे। उन्होंने श्रीराम कथा को आगे बढ़ाते हुए पार्वती के जन्म तथा शिव विवाह के प्रसंग पर रोचक व्याख्या प्रस्तुत करते हुए कहा कि भगवान शिव का स्वरूप लोक कल्याणकारी है। भगवान शिव के त्रिशूल का दर्शन करने से प्राणी के तीनों प्रकार के शूल नष्ट हो जाते हैं। दैहिक, देविक तथा भौतिक संताप शिव भक्तों को छू भी नहीं सकते। भगवान शिव के हाथ में सुशोभित डमरू के नाद से ही वेदों की ऋचाएं, संगीत के सातों स्वर व्याकरण के सूत्रों का सृजन हुआ है। भगवान शिव के भव्य भाल पर सुशोभित गंगा त्रेलोक्य को पवित्र तथा पावन बनाती है।
कथा सुनकर शिव की तरह लौंटे
बापू चिन्मयानंद ने कहा कि रामकथा का श्रवण करने के बाद भगवान शिव की तरह लौटना चाहिए। मन में भगवान राम की छबि लेकर घर को लौटें। रास्ते में व्यर्थ की बातें करने की बजाए हरि चर्चा करें और कथा का चिंतन कर भगवान का स्मरण करें। उन्होंने बताया कि सती की गलती सिर्फ इतनी थी कि उन्होंने श्रीराम कथा को पूरी निष्ठा के साथ श्रवण नहीं किया। इसलिए वे सीता के वियोग में तड़पते राम को पहचान सकी और वे ही सती दूसरे जन्म में पार्वती बनी। उन्होंने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की तब भगवान शिव ने उन्हें श्रीराम की आज्ञा से पुन: स्वीकार किया।

मंत्रोच्चार से गूंज रहा परिसर
श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ के दूसरे दिन मंत्रोच्चार से सारा आयोजनस्थल गुंजायमान रहा। लक्ष्मी एवं विष्णु भगवान के सहस्र नामों के साथ मुख्य यजमान व अन्य भक्तों ने यज्ञ में आहुतियां डालीं। श्रीराम जन्मोत्सव समिति एवं जीवन आनंद फाउण्डेशन के इस आयोजन में महायज्ञ के दूसरे दिन भक्तों ने यज्ञ मंडप की परिक्रमा कर स्वयं को श्रीलक्ष्मीनारायण भगवान से जोड़ा।

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