-दीपक रंजन दास
बीजापुर के जंगलों में नक्सलियों से हुई मुठभेड़ के बाद पुलिस ने एक बड़ा रहस्योद्घाटन किया है. बीजापुर पुलिस ने बताया कि नक्सलियों से प्राप्त चार हथियारों में से एक अमेरिकी एम1 कार्बाइन है. यह हथियार नक्सलियों तक कैसे पहुंचा पुलिस इसकी पड़ताल कर रही है. वैसे इससे पहले भी नक्सलियों के कब्जे से फ्रांस और जर्मनी में बने हथियार मिलते रहे हैं. अब तक यही माना जाता था कि नक्सिलयों को हथियार चीन से मिलते हैं. इसके लिए बाकायदा एक ट्रेड रूट है जिसे लाल गलियारे का नाम दिया गया है. यह भी कहा जाता रहा है कि छोटे हथियार जहां नेपाल के रास्ते भारत तक पहुंचते हैं वहीं बड़े हथियार जमीनी मार्ग से उत्तर पूर्वी राज्यों से होकर भारत पहुंचते हैं. यह खबरें भी आती रही हैं कि इन हथियारों को पहले से तय स्थानों पर एयरड्रॉप किया जाता है. हथियार कहां से और किस रास्ते से आते हैं, इसका पता लगाना खुफिया तंत्र का काम है. पर इतना तो साफ हो ही जाता है कि नक्सल समस्या को केवल राजनीतिक समस्या मानकर चलना सच्चाई से आंख चुराने जैसा है. नक्सली हों या आतंकवादी, अगर इनके पास उन्नत हथियार आते हैं तो इनका मुकाबला करने वाले सशस्त्र बलों को भी मजबूरी में इससे बेहतर हथियारों की जरूरत पड़ती है. जब चीनी हथियार मिलते थे तो हम बड़ी आसानी से नक्सलवाद के लिए चीन को दोषी ठहरा देते थे. अमरीकी, रूसी, फ्रांसी या जर्मनी के हथियार मिलने पर इन देशों को नक्सलवाद के लिए जिम्मेदार ठहरा देना भी क्या उतना ही आसान होगा? जवाह नहीं में है और होना भी चाहिए. चीन के खिलाफ हमारे गुस्से की पुरानी वजह नए-नए आजाद हुए भारत पर उसका हमला करना है. इसके बाद उसने पाकिस्तान से दोस्ती कर ली और भारत को परेशान करने वाली हरकतें करता रहा. पाकिस्तान और बांग्लादेश की तरह चीन भी हमारा पड़ोसी राज्य है. इसलिए सीमाओं पर झड़पें होती रही हैं और होती रहेंगी. चीन के प्रति हमारी नफरत और गुस्सा लाजिमी है. पर यह केवल आधा सच है. सच्चाई का दूसरा आधा ज्यादा महत्वपूर्ण हैं. दुनिया के लगभग सभी उन्नत देश हथियारों के शोध और निर्माण पर अच्छा खासा खर्च करते हैं. अमेरीका, फ्रांस, जर्मनी, रूस और चीन के निर्यात का एक बड़ा हिस्सा हथियार है. यह उनकी अर्थव्यवस्था के लिए भी महत्वपूर्ण है. चीन के मास प्रोडक्शन और सस्ते प्रॉडक्ट ने इन देशों के उत्पादों को चंद लोगों तक सीमित कर दिया. बच गया हेवी मशीनरी और हथियारों का अंतरराष्ट्रीय बाजार. ये सभी देश केवल मुंह से राम-राम करते हैं जबकि सबके बगल में छुरी है. देश बाहरी लड़ाई लड़ें या अंदरूनी इनके हथियार बिकते हैं. विश्व में शांति व्यवस्था कायम हो जाएगी तो इनके हथियार उद्योग का क्या होगा? हथियारों के दलाल और हथियारों के तस्कर इनका यही काम आसान करते हैं. वे अपराधियों तक हथियार पहुंचाते हैं और फिर इनके आका बिजनेस डील पक्की करते हैं.