-दीपक रंजन दास
वैवाहिक सीजन शुरू हो गया है. निमंत्रण पत्रक आने लगे हैं. लेन-देन का बजट बनाया जा रहा है. महिलाएं अपनी उत्तम स्मृति शक्ति का उपयोग करते हुए बता रही हैं कि उनके यहा से कब क्या आया था. बच्चे खुश हैं कि पढ़ाई के चकल्लस से छुट्टी मिलेगी. इधर कुछ पुराने गिफ्ट भी घर में पड़े हुए हैं जिन्हें आगे सरकाना है. इसमें खास वैवाहिक अवसरों के लिए बनने वाले कटपीस के शर्ट-पैंट के पैकेट ही ज्यादा हैं. कुछ अपने बनने-संवरने पर भी खर्च करना है. मतलब यह कि शादी की तैयारी केवल वो ही नहीं करते, जिनके यहां शादी हो रही है बल्कि वो भी उतनी ही शिद्दत के साथ उसकी तैयारी कर रहे होते हैं जिन्हें शादी में जाना है. किसी के यहां की यह पहली शादी है तो किसी के यहां एक पीढ़ी की आखरी. इसे खास यादगार बनाने की कोशिशें हो रही हैं. दरअसल, भारतीय परम्पराओं में वैवाहिक, आदि संस्कार सामाजिक मेल मिलाप और परस्पर सहयोग के अवसर होते थे. पर अब यह रसूख से जुड़ गए हैं. हम उन्हें महंगा तोहफा देते हैं जिन्हें हमारे किसी भी तोहफे की कोई कद्र नहीं. जिनकी हम कुछ रुपये देकर मदद कर सकते हैं उन्हें बेहद घटिया या अनुपयोगी गिफ्ट दे आते हैं. विवाह के आडम्बर की तरह यह भी एक व्यर्थ का खर्च है. विवाह के दूसरे दिन जब घर पर लोग बैठकर गिफ्ट खोलते हैं तो इसमें से एक के बाद एक घडिय़ा, डिनर सेट और कांच के बरतन निकलते हैं. कुछ लोग थाली, कटोरा, चम्मच भी देते हैं. आजकल बेडशीट, सोफा कवर आदि भी देने की चलन है. वाल हैंगिंग्स और सजावटी सामान भी कुछ कम नहीं आते. लोअर मिडिल क्लास के लोग अपने यहां आए मेहमानों को ही इसमें से आधे से ज्यादा चीजें टिका देते हैं – रिटर्न गिफ्ट के रूप में. कटपी के पैकेट अलग रख दिये जाते हैं. इन्हें कोई सिलवाता नहीं. ये आगे देने के काम आते हैं. करीबी रिश्तेदार सोना – चांदी भी देते हैं. कुछ लोग अपनी व्यस्तता के चलते समझदार हो जाते हैं. वे नगद राशि दे देते हैं. राशि कितनी है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. ऐसे समय में सौ-दो सौ रुपये भी राहत दे जाते हैं. लोग अपना-अपना घर अपने हिसाब से सजाते हैं. इसलिए सजावटी सामान दीवान में या ऐटिक में पड़े रह जाते हैं. दो कमरे के घर में 20 घडिय़ों का कोई काम नहीं होता. शेष घडिय़ां या तो आगे बढ़ा दी जाती हैं या फिर किसी के गृह प्रवेश के लिए सुरक्षित कर दी जाती हैं. कुछ समाजों में वैवाहिक उपहार पर पाबंदी लगाने की पहल की गई है. कुछ लोग व्यक्तिगत रूप से भी कार्ड पर “नो गिफ्ट प्लीज” लिख देते हैं. पर ऐसे प्रयास अभी प्रारंभिक दौर में हैं. इस अभियान को गति मिली तो शादी का कार्ड टेंशन देना बंद कर देंगे. सबलोग खुशी-खुशी संस्कार में शामिल होंगे.
गुस्ताखी माफ: शादियों का मौसम और गिफ्ट की जद्दोजहद
