-दीपक रंजन दास
हम सब डिजिटल युग में जी रहे हैं. मोबाइल फोन आने के ढाई दशक बाद दुनिया एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां मोबाइल एब्यूज और स्क्रीन टाइम सबसे बड़ा मुद्दा बने हुए हैं. इनका शारीरिक के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर देखा जा रहा है. आंखें खराब हो रही हैं, स्पांडिलोसिस के मरीज बढ़ रहे हैं, रीढ़ की समस्या बढ़ रही है और जाने क्या-क्या हो रहा है. समाज में विघटन आ रहा है. लोग अपने-अपने मोबाइल में कैद हो रहे हैं. बिना मोबाइल देखे खाना अंदर नहीं जाता. बिना मोबाइल के सुबह पेट भी साफ नहीं होता. परिवारों में आपस की बातचीत खत्म होने के कगार पर है. अब दोपहर को बाल सुखाती गृहिणी पड़ोसन से नहीं पूछती – ‘का साग रांधे हसÓ. अब बातें सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे कंटेन्ट की होती है. सभी के पास-अपना अपना व्हाट्सअप ग्रुप है. कुछ ग्रुप में उन्हें बिना पूछे शामिल कर लिया गया है तो कुछ ग्रुप में उन्होंने खुद किसी और को बिना पूछे शामिल कर लिया है. इन ग्रुप्स में दिन भर रोचक सामग्री इधर से उधर शेयर होती रहती है. इनमें फेक न्यूज, फेक वीडियो और विवादास्पद बातें भी होती हैं. खबरों को आगे बढ़ाने की इस होड़ में हम सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को कई बार मार चुके हैं. पारिवारिक स्टैंडअप कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव का जब फाइनली निधन हुआ तो हमारे पास कहने के शब्द नहीं बचे थे. हमने मरने से पहले ही उन्हें कई बार श्रद्धांजलि जो दे दी थी. दरअसल, पल-पल आ रही नई सूचनाएं दिमाग को किसी भी सूचना पर ठहरने, सोचने या पुनर्विचार करने का वक्त ही नहीं देती. ब्रेकिंग की ऐसी होड़ मची है कि स्थापित अखबार भी इसका शिकार हो रहे हैं. राज्य का नम्बर वन सर्कुलेशन वाला अखबार भी ब्रेकिंग न्यूज देता है कि बच्चा चोर महिला पकड़ी गई. थोड़ी देर बाद अखबार एक और खबर देता है कि महिला उन बच्चों की अभिभावक थी जिन्हें वो दीपावली शॉपिंग के लिए बाजार लेकर आई थी. आखिर पाठक कैसे तय करेगा कि कौन सी सूचना पुष्ट है और किसकी पुष्टि का इंतजार करना है. हालांकि सूचनाओं की इस ओलावृष्टि में मीडिया का काम कुछ आसान हुआ है पर सच कहीं खो सा गया है. कुछ साल पहले जब भिलाई के एक शिक्षाविद के पुत्र का शव बरामद हुआ तो उसकी आरोपी गर्लफ्रेंड की फोटो मीडिया में खूब चली. इसका सोर्स उसका फेसबुक अकाउंट था. हाल ही में रायपुर में पदस्थ एक आईएएस अफसर के घर ईडी की रेड पड़ी तो एक नामचीन मीडिया ने उसकी पत्नी के ढेर सारे फोटो के साथ न्यूज पोस्ट की. ये फोटोग्राफ्स भी उनकी पत्नी के फेसबुक आईडी से ही आए थे. झल्लाकर उन्होंने अपना फेसबुक पेज प्राइवेट कर दिया और प्रोफाइल लॉक कर दिया. अब खबरों से सोशल मीडिया नहीं चल रहा बल्कि सोशल मीडिया कंटेंट्स से अखबार छापे जा रहे हैं. ऐसे में विश्वसनीयता का क्या होगा?