-दीपक रंजन दास
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के मस्जिद-मदरसा भ्रमण पर राजनीतिक भूचाल आया हुआ है. कांग्रेस ने जहां इसे भारत जोड़ो यात्रा का असर बताया है वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने इन यात्राओं पर तंज कसा है. मायावती ने ट्वीट किया कि भागवत ने उलेमाओं से खुद को राष्ट्रपिता और राष्ट्र ऋषि कहलवाया. वहीं राजनीति के पंडित इसे डैमेज कंट्रोल का शुभारंभ मान रहे हैं. राजनीति तो होती रहेगी पर सवाल यह है कि क्या भागवत के मस्जिद-मदरसा जाने से मुसलमानों के घाव भर जाएंगे. माना कि संघ या भाजपा के एजेंडे में कहीं भी मुसलमानों का विरोध नहीं है, पर क्या आम जनता भी ऐसा ही सोचती है? गैर मुस्लिम अवाम में मुसलमानों को लेकर जो धारणा और भावना घर कर गई है, क्या उसे इतनी आसानी से बदला जा सकता है? शायद नहीं. दरअसल केन्द्र में सरकार बदलने के साथ ही कुछ जहरीले लोगों के हौसले बुलंद हो गए. उन्होंने कुरान, हदीस पर पीएचडी कर ली. सार्वजनिक रूप से यह कहा जाने लगा कि मुसलमानों को मौका मिला तो पूरा देश मुसलमान हो जाएगा. आज किसी से भी बहस कर लो वह यही जुबान बोलता नजर आएगा. जिसे कल के इतिहास की खबर नहीं, वह भी 600-800 साल पुराने इतिहास का विशेषज्ञ बना बैठा है. आक्रांता लूट-पाट के उद्देश्य से ही आते हैं. उन्होंने तोडफ़ोड़ की, लूटपाट भी किया पर समय के साथ उन्होंने इस धरती को अपना लिया. स्वतंत्रता संग्राम में उनकी बराबर की हिस्सेदारी रही. आजाद भारत की सेना में भी उन्होंने अपने जौहर दिखाए. माना कि मदरसों के कारण उनकी शिक्षा अलग ढंग से हुई पर यह उनकी नहीं बल्कि तत्कालीन सरकारों की दोषपूर्ण नीतियों का नतीजा थी. अगर मुसलमानों को अल्पसंख्यक वोट बैंक बनाया गया, वक्फ बोर्डों को तमाम सहूलियतें दी गईं तो यह भी सरकार की दोषपूर्ण नीतियों का ही परिणाम था. एक आम मुसलमान का इससे कोई लेना देना नहीं था. वह तो अपनी मेहनत और उद्यमिता से ही कमा खा रहा है. जिन लोगों ने आधुनिक शिक्षा को अपनाया, उन्होंने वहां भी कामयाबी के झंडे गाड़े. क्रिकेट टीम हो या वैज्ञानिकों की फौज, हर जगह आपको मुसलमान दिखाई दे जाएंगे. पर एक सोची समझी साजिश के तहत हिन्दुओं को एकजुट करने के लिए मुसलमानों के खिलाफ जहर फैलाया जाता रहा और संघ और उसके द्वारा पोषित भाजपा मूकदर्शक बने रहे. बल्कि यूं कहें कि संघ और भाजपा इस विष वृक्ष का फल खाकर मजबूत होते रहे तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. अब जाकर संघ को यह बात समझ में आई है कि जिस विष बेल को फलने-फूलने दिया गया है, वह आगे चलकर गृहयुद्ध की स्थिति निर्मत कर सकता है. इसलिए डैमेज कंट्रोल जरूरी हो गया है. रास्ता कठिन अवश्य है पर ठान लो तो असंभव कुछ भी नहीं. पर इससे पहले उन लोगों के मुंह बंद करने पड़ेंगे तो लगातार समाज में जहर फैला रहे हैं.