जगदलपुर. कोरोनाकाल के बाद बस्तर के ऐतिहासिक दशहरा उत्सव को लेकर पूरे बस्तर अंचल में उत्साह है। कई अनूठे रस्मों से सजे बस्तर दशहरा तीसरे रस्म काछनगादी में इस बार बड़ेमारेंगा की 8 साल की नंदिनी को कांछन देवी बनने का सौभाग्य हासिल हुआ है। तीसरी कक्षा में पढ़ रही नंदिनी इस साल कांछन देवी के रूप में कांटे के झूले पर सवार होगी और बस्तर दशहरा को निर्विघ्न संपन्न होने अनुमति देगी। लालबाग मार्ग स्थित काछनगुड़ी मंदिर में विधि-विधान पूर्वक नंदिनी के साथ बरवा किया गया है। 75 दिन तक चलने वाले बस्तर दशहरा का सैकड़ों वर्ष पुराना इतिहास है। इस साल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल मुख्य अतिथि के रूप में बस्तर दशहरा में शामिल होंगे।
25 सितंबर को होगी रस्म
तत्कालीन नरेश स्थानीय एक समुदाय की कुल देवी कांछिन देवी से दशहरा मनाने की अनुमति लेते आ रहे हैं। यह रस्म 25 सितंबर को विधि-विधान से संपन्न होगा। इस बार बड़ेमारेंगा में रहने वाली तीसरी कक्षा की छात्र नंदिनी दास पहली बार बेल के कांटों से सजे झूले पर सवार होगी। उसके पिता दयादास और माता सरिता इस उत्सव को लेकर उत्साहित हैं।
कुंवारी कन्या ने किया बरवा रस्म
नंदिनी ने बताया कि वह घर में सबसे बड़ी है और उसके दो छोटे भाई-बहन हैं। पुजारी गणेश दास ने बताया कि 17 सितंबर को नंदिनी का देवी के साथ बरवा (देवी बिठाई) किया गया। इस रस्म को एक समुदाय की कुंवारी कन्या के द्वारा ही किया जाता है, देवी स्वरूप कन्या इस दौरान एक पहर का उपवास रख कठोर तप करती है।
अनुराधा ने 6 साल निभाई थी परंपरा
कांछनगादी की रस्म इससे पूर्व अनुराधा दास ने विगत 6 साल तक परंपरा अनुसार पूर्ण किया। कांछन देवी बनकर कांटे के झूले में सवार हुई और बस्तर दशहरा के सबसे अनूठे रस्म को पूरा किया। अनुराधा के बालिक होने के बाद अब इस परंपरा को नंदिनी पूरा करेगी।