कवर्धा क्षेत्र के झोलाछाप डॉक्टर के खिलाफ की गई कार्यवाही के पश्चात गिरफ्तारी क्यों नहीं?
कवर्धा (डीएनएच)। छत्तीसगढ़ शासन के आदेशानुसार 18 और 19 फरवरी 2020 को ईओडब्ल्यू छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा कवर्धा क्षेत्र के तीन बड़े डॉक्टरों के खिलाफ कार्यवाही करते हुए 7 करोड़ 52 लाख रूपए की अवैध सम्पत्ति बरामद की गई। रूपजीवन प्रसुती गृह कवर्धा, परिहार हॉस्पिटल कवर्धा और स्नेहा क्लीनिक कवर्धा के खिलाफ कार्यवाही करते हुए अस्पताल को सील कर दिया, वहीं जिला अस्पताल दुर्ग प्रबंधक के द्वारा भिलाई क्षेत्र के दो झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ शिकायत मिलने पर कड़ी कार्यवाही करते हुए दवाखाने को ही सील कर दिया गया। परन्तु इन दोनों कार्यवाही से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि अधिकारी चाहे तो झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ या फिर अवैध सम्पत्ति बनाने वाले डॉक्टरों के खिलाफ जरा भी नहीं हिचकते लेकिन कवर्धा क्षेत्र के ही सन् 2019 में दनिया-बनिया गांव में संचालित झोलाछाप डॉक्टर प्रकाश दास मानिकपुरी के खिलाफ अब तक कोई कड़ी कार्यवाही नहीं की गई है वहीं जांच कार्यवाही भी अब संदेह के दायरे में आ चुकी है। औरतों के अपमान और दौलत के अहंकार ने डॉक्टर प्रकाशदास मानिकपुरी के गुरूर को तोड़ा तो जरूर है परन्तु उसकी ऐंठन अब तक नहीं गई है। डॉक्टर का दवाखाना जो दनिया-बनिया गांव में संचालित हो रहा था उसे बंद तो करवा दिया गया है परन्तु डॉक्टर प्रकाशदास मानिकपुरी की गिरफ्तारी अब तक नहीं हो पायी है। जिला प्रशासन के इस धूलमूल और सांठगांठ रवैय्ये से एक बात तो स्पष्ट हो जाता है कि या तो प्रकाशदास मानिकपुरी को जिला प्रशासन मोटी रकम लेकर बचा रही है? या फिर उसे बचा लिया गया है क्योंकि यदि दवाखाना बंद करवाया गया है तो फिर कुछ न कुछ जांच अधिकारियों को दवाखाने और प्रकाशदास मानिकपुरी के पास से अवैध चीजें और अवैध कारोबार का खुलासा हुआ होगा तभी दवाखाने को बंद करवाया गया है? यदि एैसा नहीं होता तो फिर दवाखाने को क्यों बंद करवाया गया है वहीं सुत्रों की मानें तो प्रकाशदास द्वारा संचालित दुबे मेडिकल स्टोर्स में भी कई अवैध दवाईयां जांच में पायी गई थी। यहां भी जांच के दौरान प्रकाशदास के द्वारा पैसों का खेल खेला गया और प्रकाशदास को अब तक गिरफ्तारी से बचा लिया गया है। जिला प्रशासन के इसी संरक्षण के कारण प्रकाशदास मानिकपुरी के हौसले बुलंद है परन्तु पीडि़त कल्याण सिंह ठाकुर के फरियाद और शिकायत को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
चोर चोरी करने से जाए, परन्तु हेरा-फेरी से नहीं
क्योंकि एक पुरानी कहावत के अनुसार चोर चोरी करना तो बंद करना तो बंद कर देता है परन्तु हेराफेरी को कहीं से नहीं छोड़ सकता। प्रकाशदास के पुरे प्रकरण में यही कहावत चरितार्थ हो रहा है, हालांकि दनिया-बनिया में स्थित दवाखाना तो बंद कर दिया गया है लेकिन सभी लूटपाट और अवैध कार्य मेडिकल स्टोर्स से संचालित होने लगे है। सूत्रों का दावा है कि प्रकाशदास अब इसी मेडिकल स्टोर्स से अपने प्राईवेट मरीजों का इलाज कर रहा है। प्रकाशदास को यह तो ज्ञात था कि उसकी औकात एक एमबीबीएस डॉक्टर की तरह नहीं है परन्तु सभी नियमों को ताक में रखकर कानून को तोड़ते हुए किसी बड़े डिग्रीधारी डॉक्टर की तरह वह अपने दनिया-बनिया स्थित दवाखाने में इलाज के दौरान ग्लूकोज के बॉटल और इंजेक्शन लगाने का भी नियम विपरित कार्य करता था। यह अधिकार झोलाछाप डॉक्टरों को नहीं होता, वहीं प्रकाशदास मानिकपुरी को मेडिकल स्टोर्स संचालित करने का हक नहीं है। जिला प्रशासन के एैसी दोगली नीति के कारण आज कल्याण सिंह ठाकुर की समस्या जहां के तहां पहाड़ की तरह खड़ी हुई है। जांच अधिकारियों और प्रकाशदास के द्वारा केस वापस लेने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। अब तक कल्याण सिंह के किसी भी शिकायत की गई विषय पर जांच नहीं की गई है। जबकि कल्याण सिंह के आरोप प्रकाशदास मानिकपुरी के ऊंपर बड़े गंभीर है। दैहिक शोषण के बाद अपने दोस्तों को बचाने के लिए उसके 15 वर्षीय पोती का गर्भपात प्रकाशदास के द्वारा किया गया और आज वह मौत के मुंह में समां चुकी है। वहीं कल्याण सिंह का दावा है कि जांच अधिकारियों के द्वारा जांच से पहले ही प्रकाशदास को इत्तला कर दी गई थी इसलिए प्रकाशदास के दवाखाने से किसी भी औजार के मिलने का दावा जांच अधिकारी नहीं कर रहें है। जबकि कल्याण सिंह का मानना है कि प्रकाशदास अपने अधिकांश मरीजों का इलाज, ऑपरेशन और गर्भपात मरीजों के घर में ही करता था। भु्रण परीक्षण जैसे गैरकानूनी अपराध कवर्धा के बड़े डॉक्टरों के पास करवाता था। सिर्फ दो वर्षो के भीतर करोड़ों की सम्पत्ति अर्जित कर लेना एक साधारण डॉक्टर के बस की बात नहीं है? जबकि प्रकाशदास के द्वारा करोड़ों की सम्पत्ति बनाई गई और आज जांच के पश्चात सभी चल सम्पत्ति अपने पारिवारिक सदस्यों के पास रखवा दिए गए है? दिवाली के समय ली गई कार कहां है यह लोगों की नजरों से दूर है। कल्याण सिंह का मानना है कि ईमानदारी के बलबूते इतनी दौलत कभी भी नहीं कमाई जा सकती। स्वाभाविक रूप से प्रकाशदास के द्वारा अवैध गर्भपात भु्रण परीक्षण जैसे गैरकानूनी कार्य के एवज में सम्पत्ति को ही अर्जित किया है। गौरतलब हो कि प्रकाशदास मानिकपुरी इसके पहले पचराही दलदली क्षेत्र में आदिवासियों के बीच अपना दवाखाना संचालित कर रहा था। यहां भी किसी आदिवासी महिला से अतरंग संबंध होने के कारण और महिला द्वारा भरण-पोषण की मांग किए जाने के पश्चात प्रकाशदास के द्वारा उक्त क्षेत्र को छोड़कर दनिया-बनिया जैसे एक छोटे से गांव में अपने दवाखाना को संचालित किया।
कुछ सवालों से साजिशों में नजर आती है
डॉक्टर प्रकाश के द्वारा अब तक अपने दवाखाना को चलाने के लिए जितने भी कारनामें किए सभी अवैध थे और एक सोची समझी योजना के तहत जानबूझकर अपनी दवाखाने को संचालित किया।
- प्रकाश ने जो अपराध किए वह सोच समझकर साजिशों के तहत पूरी योजना बनाकर धन कमाने के लालच में किया?
- प्रकाश जानता था कि वह एक फर्जी, झोलाछाप डॉक्टर है, फिर भी दवाखाना, डिग्रीधारी डॉक्टर की तरह संचालित कर रहा था?
- प्रकाश जानता था कि एक झोलाछाप डॉक्टर को इंजेक्शन लगाने, दवाई बेचने, लिखने और किसी भी प्रकार के ऑपरेशन करने का कानूनन अधिकार नहीं होता फिर भी प्रकाशदास ने सभी कानून नियमों को तोड़कर, गर्भपात-भु्रण परीक्षण जैसे अपराध, अपने आपको डॉक्टर के रूप में प्रसारित कर, समाज, जनता और शासन-प्रशासन को धोखा देकर अकूत धन अर्जित की, सिर्फ दो वर्षो में?
- प्रकाशदास जानता था कि सुदूर, दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों में दवाखाना और अपने आप को एक डॉक्टर के रूप में प्रचारित कर, धन कमाया जा सकता है, किसी भी प्रकार के जानलेवा केस होने और संबंधित गैर कानूनी कार्य संचालित करने पर कोई आवाज बुलंद नहीं करेगा, इसलिए प्रकाशदास ने सिंघारी, पचराही और दनिया-बनिया जैसे अनजान क्षेत्रों में दवाखाना संचालित किया, यदि प्रकाशदास सही रहता उसके पास डिग्री होती तो वह सहसपुर लोहारा, उडिय़ा और बोड़ला जैसे व्यापारिक क्षेत्र में दवाखाना खोल सकता था परन्तु धनलोभी, अहंकारी प्रकाशदास के भीतर जनसेवा जैसी कोई भावना ही नहीं है। अपनी औकात को भूल चुके प्रकाशदास ने दूरदराज के ग्रामीणों को गुमराह कर धन कमाया, सस्ती दवाईयों को ऊंची कीमत में बेचकर उसने लाखों रूपए कमाएं।
- अपने मरीजों के बीच वह बड़े-बड़े ऑपरेशन कर लेने के दावे कर लोगों को गुमराह करता रहा, जबकि वह गर्भपात और भु्रण परीक्षण जैसे मामलों में ख्याति प्राप्त कर ली।
कल्याण सिंह ठाकुर के शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं?
कल्याण सिंह ठाकुर द्वारा अब तक शासन, प्रशासन सहित मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तक को लिखित जानकारी देकर प्रकाशदास के खिलाफ कार्यवाही की मांग कर चुके है। 20 जनवरी 2020 को उन्होंने पुन: पत्र लिखकर प्रकाशदास के खिलाफ कार्यवाही की मांग की है। पूर्व में की गई कार्यवाही ने जिला अधिकारियों के कार्यवाही पर कई सवालिया निशान खड़े कर दिए है। प्रकाशदास यदि झोलाछाप डॉक्टर नहीं था तो जांच अधिकारियों ने दवाखाना बंद क्यों करवाया और यदि झोलाछाप डॉक्टर व उसके गैर कानूनी कार्य साबित हो चुके हैं तो दवाखाना बंद तो करवा दी गई परन्तु प्रकाशदास को गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया है?
अहंकारी प्रकाशदास ने गांव के अन्य डॉक्टर को पीटवाया थाने में
कल्याण सिंह के शिकायत अनुसार प्रकाशदास के सभी अवैध कार्यों के साथ-साथ, उसके चल-अचल सम्पत्ति के भी जांच की मांग की थी। परन्तु जांच अधिकारियों ने रिश्वत लेकर, इस मामले से बचा लिया गया है, आज सभी सम्पत्ति को जांच अधिकारियों की घोर लापरवाही और सांठगांठ के कारण प्रकाशदास अपने पारिवारिक सदस्यों के घरों में छुपा चुका है? ये बात और है कि जांच के दौरान पारिवारिक सदस्यों के नाम भी सामने आ जाएंगे। अहंकार और पैसों के बलबूते पर दनिया-बनिया के ही एक अन्य डॉक्टर को सहसपुर लोहारा पुलिस के माध्यम से घर से उठवाया और रात भर थाने में उसकी पिटाई करवा दी। इस मामले में प्रकाशदास के ऊंची पहुंच को जहां सार्वजनिक किया वहीं उसके अमानवीय व्यवहार को भी लोगों ने स्वीकारा। एैसे मामलों में प्रकाशदास को उन पौराणिक महाग्रंथों के कथाओं को याद करना होगा जहां रावण और कंस जैसे धनाड्य लोगों के अहंकार धन के मामले में तहस-नहस हो गए। वहीं किसी भी परिवार की छत्रछाया और उसके मुखिया के महाप्रस्थान कर लेने पर उस परिवार के सदस्यों को अनाथ नहीं समझना चाहिए, परन्तु प्रकाशदास ने इन्ही सब बातों को एक अहंकार के रूप में पाला और अपनी बर्बादी को अपने हाथों में ही लिख लिया। लोगों को हमेशा एक बात याद रखना चाहिए खासकर प्रकाशदास जैसे अहंकारियों को कि, शेर को हमेशा सवाशेर मिल ही जाता है। एैसे ही फर्जी और झोलाछाप डॉक्टरों के संबंध में पत्रकार देवेन्द्र कुमार बघेल के द्वारा गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू, स्वास्थ्य मंत्री, टी.एस. सिंहदेव और मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ शासन को पत्र लिखकर छत्तीसगढ़ स्तर पर कड़ी कार्यवाही करने की मांग की है। क्योंकि झोलाछाप डॉक्टरों के अनुभवहिनता के कारण भोले भाले ग्रामीण जहां असमय मौत के मुंह में समां रहें है। वहीं इनके अनुभवहिनता के ही कारण अब तक कई परिवार बर्बाद हो चुके है, एैसे मामलों के ज्वलंत उदाहरण समय-समय पर जनता के सामने आने की आवश्यकता है। एैसे मामलों के सामने आते ही प्रथम दृष्ट्या अपराध दर्ज कर झोलाछाप डॉक्टरों को सलाखों के पीछे भेजना चाहिए।