– दीपक रंजन दास
जो लोग अपने भाई तक को अपनी गाड़ी नहीं चलाने देते, वो भी अकसर अपनी गर्लफ्रेंड को मना नहीं कर पाते। गर्लफ्रेंड के लिए उनकी यही दरियादिली कभी-कभी घातक सिद्ध हो जाती है। कुछ ऐसा ही हुआ कोटा निवासी रविन्द्र के साथ। गर्लफ्रेंड पूजा के साथ वह अपनी होण्डा कार से घूमने निकला था। रास्ते में पूजा ने कार चलाने की जिद दी। रविन्द्र ने अपनी दरियादिली का परिचय दिया और पूजा को स्टेयरिंग सौंप दी। तभी सामने एक बाइक दिखी। इसपर तीन लोग सवार थे। रविन्द्र चिल्लाया “ब्रेक-ब्रेक”। पूजा ने दबाया तो ब्रेक पर पैर चला गया एक्सिलरेटर पर। गाड़ी एक छलांग लगाकर आगे बढ़ी और बाइक को टक्कर मार दी। बाइक सवार दो लोग छिटक कर दूर जा गिरे। उनकी घटनास्थल पर ही मौत हो गई। तीसरे की मौत अस्पताल में हो गई। भारतीय सड़कों पर गाडिय़ों की संख्या तेजी से बढ़ी है और इसके साथ ही बढ़ा है गाड़ी चलाने का शौक। लोग ड्राइविंग सीखने पर खर्च नहीं करना चाहते। वैसे भी ड्राइविंग कोई सीखता नहीं है। हमारे यहां ड्राइविंग सभी मां के पेट से सीखकर आते हैं। गाडिय़ों पर तो वो तो केवल हाथ साफ करते हैं। हाथ साफ करने के चक्कर में दो-चोर एक्सीडेंट भी कर लेते हैं। पब्लिक की मार से बच गए तो ज्यादा कुछ बिगड़ता नहीं है। सिर्फ पैसे खर्च होते हैं। ड्राइवर के बाजू में बैठे-बैठे ही हेल्पर ड्राइविंग सीख लेता है। वैसे टक्कर हो जाए तो बचने के दो रास्ते होते हैं। एक तो माफी मांग लो, जेब ढीली करो और चुपचाप अपना सा मुंह लेकर चले जाओ। दूसरा उतरते ही दूसरे की गलती निकालो और उसी पर चीखना चिल्लाना शुरू कर दो। यदि शरीफ आदमी हुआ तो चुपचाप चला जाता है। राजधानी रायपुर और भिलाई की कारें आपको अकसर आजू-बाजू या पीछे से पिचकी हुई मिलेगी। लगातार चौड़ी हो रही सड़कों को लोगों ने मैदान मान लिया है। लेन का मतलब किसी की समझ में आता नहीं। वे लगातार बिना इंडीकेटर दिए पूरी सड़क पर दाएं से बाएं और बाएं से दाएं आते जाते रहते हैं। जहां से मौका मिला वहां से निकलने की कोशिश करते हैं। स्पीड को भांपने में जरा सी भी गलती हुई तो बाजू वाली गाड़ी रगड़ देती है। वैसे ही हड़बड़ाकर ब्रेक मारने वालों की गाडिय़ों का पीछे से आ ही गाडिय़ां चुम्मा ले लेती हैं। पुलिस लपककर घटनास्थल पर पहुंचती है। गाडिय़ों को किनारे लगाने या सीधे थाने लेकर चलने के लिए कहती है। वैसे भी घटनास्थल से गाड़ी हटने के बाद इंश्योरेंस का खेल लगभग खत्म ही हो जाता है। थोड़ा बहुत ले देकर बात खत्म कर दी जाती है। हल्ला तभी होता है जब हादसे में किसी की जान चली जाती है।
गुस्ताखी माफ: गर्लफ्रेंड के लिए दरियादिली पड़ गई भारी
