नई दिल्ली (एजेेंसी)। मैरिटल रेप यानी वैवाहिक दुष्कर्म का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। दिल्ली हाईकोर्ट के विभाजित फैसले के बाद इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। दरअसल, वैवाहिक दुष्कर्म अपराध है या नहीं, इस पर दिल्ली हाईकोर्ट की दो जजों वाली बेंच ने बंटा हुआ फैसला सुनाया था। इस मामले की सुनवाई के दौरान दोनों जजों की राय एक मत नहीं थी। इसी के चलते दोनों जजों ने अब इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए प्रस्तावित किया था।
इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट की दो जजों की खंडपीठ ने मैरिटल रेप के अपराधीकरण को लेकर बंटा हुआ फैसला सुनाया था। बेंच में से एक जज ने अपने फैसले में मैरिटल रेप को जहां अपराध माना है वहीं दूसरे जज ने इसे अपराध नहीं माना था। सुनवाई के दौरान जहां खंडपीठ की अध्यक्षता करने वाले न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने वैवाहिक बलात्कार अपवाद को रद्द करने का समर्थन किया, वहीं न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने कहा कि आईपीसी के तहत अपवाद असंवैधानिक नहीं है और एक समझदार अंतर पर आधारित है।

दरअसल याचिकाकर्ता ने आईपीसी की धारा 375(दुष्कर्म) के तहत वैवाहिक दुष्कर्म को अपवाद माने जाने को लेकर संवैधानिक तौर पर चुनौती दी थी। इस धारा के अनुसार विवाहित महिला से उसके पति द्वारा की गई यौन क्रिया को दुष्कर्म नहीं माना जाएगा जब तक कि पत्नी नाबालिग न हो।

हाईकोर्ट ने केंद्र के रवैये पर जताई थी नाराजगी
गौरतलब है कि उच्च न्यायालय ने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने के मामले में पक्ष रखने के लिए बार-बार समय मांगने पर केंद्र सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई थी। अदालत ने केंद्र को समय प्रदान करने से इनकार करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ के समक्ष केंद्र ने तर्क रखा था कि उसने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस मुद्दे पर उनकी टिप्पणी के लिए पत्र भेजा है। केंद्र के अधिवक्ता ने कहा कि जब तक इनपुट प्राप्त नहीं हो जाते, तब तक कार्यवाही स्थगित कर दी जाए।