क्या वास्तव में नक्सली के बजाए परदे के पीछे से साजिशपूर्वक नरसंहार किए गए अन्य आरोपियों को मिलेगी सजा?
रायपुर. छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के मदनवाड़ा में हुए नक्सल नरंसहार मामले में न्यायिक जांच आयोग गठित कर दिया गया है. नक्सली हमले के 10 साल बाद इस मामले में न्यायिक जांच के आदेश दिए गए थे. अब इस जांच आयोग का गठन भी कर दिया गया है. जस्टिस शम्भूनाथ श्रीवास्तव की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग का सरकार ने गठन किया है. आयोग अलग अलग बिंदुओं पर जांच रिपोर्ट देगा.
राजनांदगांव जिले के मदनवाड़ा में 12 जुलाई 2009 में नक्सलियों ने पुलिस पार्टी पर हमला कर दिया था. इस हमले में जिले के एसपी विनोद कुमार चौबे समेत पुलिस के 29 जवान शहीद हो गए थे. प्रदेश में 15 साल बाद सत्ता में आई कांग्रेस सरकार ने इस मामले में न्यायिक जांच कराने का निर्णय लिया. इसका ऐलान सीएम भूपेश बघेल ने सितंबर 2019 में बिलासपुर में शहीद विनोद चौबे की प्रतिमा के अनावरण के दौरान किया था. अब मामले में आयोग का गठन भी कर दिया गया है.
बता दें कि बिलासपुर में सितंबर 2019 में आयोजित एक कार्यक्रम में शहीद आईपीएस विनोद कुमार चौबे की पत्नी और कांग्रेस नेता अटल श्रीवास्तव ने संयुक्त रूप से एक आवेवद सीएम भूपेश बघेल को दिया था. इसमें मदनवाड़ा नरसंहार मामले में न्यायिक जांच कराने की मांग की गई थी. इसके तहत ही अब आयोग का गठन किया गया है. व शहीद विनोद चौबे की पत्नी के आवेदन पर न्यायिक जांच के आदेश दिए गए हैं. बता दें कि वारदात के शहीद चौबे को कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया था. इस घटना के बाद सूचना तंत्र और एसपी को बगैर पर्याप्त सूरक्षा और तथाकथित परिस्थिति बताकर भेजे जाने को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं. घटना की एफआईआर मानपुर पुलिस थाने में दर्ज हुई थी. वैसे इस मामले की कई स्तर पर जांच हो चुकी है, लेकिन इस न्यायिक आयोग को 9 बिंदुओं पर जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई है.
छत्तीसगढ़ में नक्सल वारदातों की लंबी श्रृंखला में मानपुर-मदनवाडा़-कोरकोट्टी हमला के नाम से जाने जाने वाले वारदात को 8 साल हो रहे हैं। थम नहीं रहे वारदातों के बीच सबसे बड़ा सवाल है कि नक्सलवाद का नासूर न जाने कितने परिवारों को तबाह करेगा। कभी किसी मां की गोद सूनी होती है। कभी किसी की मांग का सिंदूर मिट जाता है। कभी किसी बच्चे के सिर से उसके पिता का साया उठ जाता है तो कभी कोई बहन रक्षाबंधन के दिन हाथ में राखी लिए अपने भाई का इंतजार करती रह जाती है।
सुबह छह बजे पहली खबर मानपुर से आती है कि मदनवाड़ा में नक्सलियों ने सुरक्षा बल के दो जवानों को गोली मार दी है। ये जवान शौच के लिए गए थे, तभी नक्सलियों ने उनको अपना निशाना बना लिया। आमतौर पर हर नक्सली घटना के बाद मौके पर पहुंचकर जवानों की हौसला-अफजाई करने वाले राजनांदगांव जिले के एसपी विनोद कुमार चौबे तुरंत मानपुर के लिए कूच कर गए थे।
कुछ देर बाद खबर आई कि शहीदों का आंकड़ा बढ़ सकता है। मन विचलित हुआ। इसके बाद लगातार बुरी खबरें ही आती रहीं। एसपी विनोद कुमार चौब की गाड़ी पर नक्सलियों की फायरिंग की खबर भी आई। साथ ही यह भी कि एसपी विनोद कुमार चौब चौबे नक्सलियों के एंबुश को पार कर सुरक्षित निकल गए हैं। बीच बीच में खबर मिलती रही। हर खबर बुरी थी। जिला मुख्यालय से 100 किलोमीटर दूर मानपुर पहुंचते ही खबर मिली कि कुछ जवानों के शव अस्पताल में लाए जा चुके हैं। अस्पताल में अफरा-तफरी का माहौल था। अंदर देखा तो एक दो नहीं दस बारह जवानों के शव। बिस्तर कम थे सो जमीन पर ही रख दिये गए थे। कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं था।
सभी के चेहरे में दहशत था। खबर बड़ी होती जा रही थी। मानपुर से बमुश्किल छह किलोमीटर दूर कोरकोट्टी में गोली चल ही रही थी। मानपुर अस्पताल में जवानों के शवों के आने का सिलसिला जारी था। दोपहर के करीब 12 बज गए थे। एसपी के एंबुश से निकलने की खबर के साथ यह भी खबर आई कि उनके ड्राइवर को गोली लग गई है। फिर पता चला कि एंबुश में फंसे जवानों की मदद के लिए एसपी चौबे फिर एंबुश में घुस गए हैं।
दोपहर के डेढ़ बज गए होंगे। मौके पर पहुंचने पर वहां एक बडा़ गड्ढा नजर आया। नक्सलियों ने सड़क के बीचोबीच बारुदी सुरंग विस्फोट कर दिया था, ताकि मदद के लिए फोर्स न पहुंच पाए। गोलियों की आवाज थम गई थी। अब वहां सन्नाटा पसरा था। जवानों के शव उठाकर ट्रेक्टर में डाले जा रहे थे। आईजी मुकेश गुप्ता कीचड़ से लथपथ थे। वे लगातार निर्देश दिए जा रहे थे। कुछ देर बाद आईजी मुकेश गुप्ता बात करने तैयार हुए। करीब 20 मिनट तक वो लगातार बोलते रहे। कहीं कहीं वो रूकते। खैर वो बोलते रहे। सिलसिलेवार पूरे घटनाक्रम को बयां करते रहे और आखिर में उन्होंने कहा, ‘नक्सलियों ने दोनों ओर से फायरिंग की, हमने भी जमकर मुकाबला किया, नक्सलियों को कड़ा टक्कर देते हुए एसपी साहब शहीद हो गए हैं।
इस पूरे घटनाक्रम की सच्चाई देखें या फिर तत्कालीन जांच कार्यवाही के दौरान घटना में घोर लापरवाही बरतने और तत्कालिन राज्य सरकार द्वारा संरक्षण देने का आरोप और मुकेश गुप्ता को पूरी कानूनी कार्यवाही से बचा लेने का आरोप अखबार की सुर्खियों के द्वारा लगाते रहें परन्तु आग उगलती सच्चाई को देखने के बावजूद राज्य सरकार शहीदों के सम्मान को रखने के बजाए मुकेश गुप्ता को संरक्षण देती रही और मामला जहां के तहां दबा दिया गया। यहां तक की घटना के पश्चात कुछ निष्पक्ष पत्रकारों के द्वारा लिखे गए समाचारों का भी दबावपूर्वक खंडन करवाया गया और उन्हें पुन: घटनाक्रम की सच्चाई लिखने के लिए धमकीपूर्वक दबाव डाला गया। हालांकि उस समय राजनैतिक पावर भाजपा के हाथ में थी इसलिए मुकेश गुप्ता इस कड़वीं सच्चाई की कार्यवाही से बाईज्जत बच गए। परन्तु अब भूपेश सरकार के द्वारा जांच कार्यवाही के लिए आयोग गठित किए गए है। अब वास्तव में शहीदों को इंसाफ मिल पाएगा यह राज्य की जनता सोचने के लिए मजबूर है और इंसाफ की राह देख रही है।
इस घटना में विनोद कुमार चौबे के साथ निरीक्षक विनोद धु्रव, उप निरीक्षक धनेश साहू, उप निरीक्षक कोमल साहू, प्रधान आरक्षक गीता भंडारी, प्रधान आरक्षक संजय यादव, प्रधान आरक्षक जखरियस खलखो, आरक्षक रजनीकांत, आरक्षक लालबहादुर नाग, आरक्षक निकेश यादव, आरक्षक वेदप्रकाश यादव, आरक्षक श्यामलाल भोई, आरक्षक बेदूराम सूर्यवंशी, आरक्षक लोकेश छेदैया, आरक्षक अजय भारव्दाज, आरक्षक सुभाष बेहरा, आरक्षक रितेश देशमुख, आरक्षक मनोज वर्मा, आरक्षक अमित नायक, आरक्षक टिकेश्वर देखमुख, आरक्षक मिथलेश साहू, आरक्षक प्रकाश वर्मा, आरक्षक सूर्यपाल वटटी, आरक्षक झाडूराम वर्मा, आरक्षक संतराम साहू और सातवीं वाहिनी सीएएफ भिलाई के दो प्रधान आरक्षक दुष्यंत राठौर और सुंदरलाल चौधरी भी शहीद हो गए थे।