जहां बंधक थे वही चलता है प्रकरण
बिलासपुर. रमिक पलायन और बंधक श्रमिक आपस में जुड़ी हुई समस्या है जिले में काम ना होना अथवा मजदूरी का दाम कम होना दो कारणों से पलायन होता है।श्रम विभाग जिस पर पलायन को रोकने की जिम्मेदारी है वह इसे आश्रय देता लगता है जिला पंचायत के जिस कार्यक्रम को आधार बनाकर श्रमिकों को रोका जा सकता है उस योजना का नाम महात्मा गांधी रोजगार गारंटी कानून है जिसका उचित कार्यवयन न होना अधिकारियों के कार्यक्षमता पर प्रश्न चिन्ह लगता है आज ही में उत्तर प्रदेश से 90 बंधक श्रमिकों को छुड़ाया गया जिले के मस्तूरी क्षेत्र से लगातार पलायन हो रहा है और अधिकारी केवल पलायन रजिस्टर खोलकर कर्तव्य के पूरा हो जाने का भरोसा करते हैं। पुनर्वास की नीति के अनुसार बंधक मजदूरों को दो राशि दी जाती है तत्काल सहायता राशि दूसरा पुनर्वास दोनों राशि देने की जिम्मेदारी उस राज्य की है जहां पर श्रमिक बंधक बना था जिले में 2016 से लेकर 2019 तक 14 लाख और 8 लाख रुपए तत्काल सहायता राशि का भुगतान हुआ है किंतु यह राशि जिला प्रशासन बिलासपुर ने ही वहन किया है जहां पर श्रमिक बंधक था वहां से आज तक कोई राशि का हस्तांतरण नहीं किया गया आश्चर्यजनक बात यह है कि बंधक श्रमिक के मामले में अभी तक कोई भी नियोक्ता दोषी नहीं पाया गया अतः पुनर्वास राशि किसी बंधक श्रमिक को नहीं मिली कुछ समाज शास्त्री तो यहां तक कहते हैं कि तत्काल सहायता राशि और पुनर्वास राशि यदि सरपंच, जनपद सीईओ, जिला पंचायत सीईओ के वेतन से कटेगी तो पलायन और बंधक श्रमिक अपने आप समाप्त हो जाएगा जबकि उत्तरदायित्व और भूमिका की जांच ना होने के कारण अधिकारी केवल कागजी हवाई जहाज उड़ा कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।(फोटो मजदुर पलायन)
