मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के समक्ष गृहमंत्री विजय शर्मा की मौजूदगी में नक्सलियों ने त्यागी हिंसा
जगदलपुर। छत्तीसगढ़ में नक्सल विरोधी अभियान के तहत अब तक सबसे बड़ा और ऐतिहासिक माओवादी आत्मसमर्पण हुआ है। शुक्रवार को रिजर्व पुलिस लाइन जगदलपुर में 208 नक्सलियों ने हथियार छोड़कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ गए हैं। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के समक्ष गृहमंत्री विजय शर्मा की मौजूदगी में इन नक्सलियों ने सरेंडर किया है। इनमें 110 महिलाएं और 98 पुरुष शामिल हैं। सरेंडर नक्सलियों में एक सीसीएम कैडर, डीकेएसजेडसी के 4 कैडर, क्षेत्रीय समिति सदस्य 1 कैडर, डीवीसीएम 21 कैडर, एसीएम स्तर के 61 कैडर, पार्टी सदस्य 98 कैडर तथा अन्य 22 पीएलजीए सदस्य व आरपीसी सदस्य शामिल हैं।
मुख्यधारा में लौटने वाले प्रमुख माओवादी नेताओं में सीसीएम रूपेश उर्फ सतीश, डीकेएसजेडसी सदस्य भास्कर उर्फ राजमन मांडवी, रनीता, राजू सलाम, धन्नू वेत्ती उर्फ संतू, आरसीएम रतन एलम सहित कई वांछित और इनामी कैडर शामिल हैं। इन सभी ने संविधान पर आस्था व्यक्त करते हुए लोकतांत्रिक व्यवस्था में सम्मानजनक जीवन जीने का संकल्प लिया। आत्मसमर्पण के दौरान कुल 153 हथियार भी अधिकारियों को सौंपे गए। इन हथियारों में 19 एके-47 राइफल, 17 एसएलआर राइफल, 23 इंसास राइफल, 1 इंसास एलएमजी, 36 .303 राइफल, 4 कार्बाइन, 11 बीजीएल लॉन्चर, 41 बारह बोर/सिंगल शॉट गन और 1 पिस्तौल शामिल है। सरेंडर करने वाले नक्सलियों का सीएम साय, गृहमंत्री शर्मा, बस्तर आईजी सुंदरराज पी सहित पुलिस व फोर्स के अधिकारियों ने स्वागत व अभिनंदन किया है।
पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि इस बड़े आत्मसमर्पण के बाद उत्तर बस्तर में नक्सल गतिविधियों का लगभग अंत हो गया है। अधिकारियों ने बताया कि अब अभियान का अगला चरण दक्षिण बस्तर पर केंद्रित होगा, ताकि छत्तीसगढ़ को पूरी तरह लाल आतंक से मुक्त कराया जा सके। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा, ‘छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए आज के दिन को ऐतिहासिक दिन कह सकते हैं। आज बहुत बड़ी संख्या में नक्सली हमारे संविधान पर विश्वास करते हुए विकास की धारा से जुड़ने जा रहे हैं। उनका स्वागत है।’

यह ऐतिहासिक आयोजन जगदलपुर पुलिस लाइन परिसर में हुआ, जहाँ आत्मसमर्पित कैडरों का स्वागत पारंपरिक मांझी-चालकी विधि से किया गया। उन्हें संविधान की प्रति और शांति, प्रेम एवं नए जीवन का प्रतीक लाल गुलाब भेंट कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) श्री अरुण देव गौतम ने कहा कि “पूना मारगेम केवल नक्सलवाद से दूरी बनाने का प्रयास नहीं, बल्कि जीवन को नई दिशा देने का अवसर है। जो आज लौटे हैं, वे बस्तर में शांति, विकास और विश्वास के दूत बनेंगे।” उन्होंने आत्मसमर्पित कैडरों से समाज निर्माण में अपनी ऊर्जा लगाने का आह्वान किया।
इस अवसर पर एडीजी (नक्सल ऑपरेशन्स) विवेकानंद सिन्हा, सीआरपीएफ बस्तर रेंज प्रभारी, कमिश्नर डोमन सिंह, बस्तर रेंज आईजी सुंदरराज पी., कलेक्टर हरिस एस., बस्तर संभाग के सभी पुलिस अधीक्षक, वरिष्ठ अधिकारी और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि उपस्थित थे। कार्यक्रम के दौरान पुलिस विभाग द्वारा आत्मसमर्पित माओवादियों को पुनर्वास सहायता राशि, आवास और आजीविका योजनाओं की जानकारी दी गई। राज्य शासन इन युवाओं को स्वरोजगार, कौशल विकास और शिक्षा से जोड़ने के लिए प्रतिबद्ध है, ताकि वे आत्मनिर्भर और सम्मानजनक जीवन जी सकें।
मांझी-चालकी प्रतिनिधियों ने कहा कि बस्तर की परंपरा सदैव प्रेम, सहअस्तित्व और शांति का संदेश देती रही है। जो साथी अब लौटे हैं, वे इस परंपरा को नई शक्ति देंगे और समाज में विश्वास की नींव को और मजबूत करेंगे। कार्यक्रम के अंत में सभी आत्मसमर्पित कैडरों ने संविधान की शपथ लेकर लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त की। उन्होंने प्रतिज्ञा ली कि वे अब हिंसा के बजाय विकास और राष्ट्रनिर्माण की दिशा में योगदान देंगे। ‘वंदे मातरम्’ की गूंज के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। यह क्षण केवल 210 माओवादी कैडरों के आत्मसमर्पण का नहीं, बल्कि बस्तर में विश्वास, विकास और शांति के नए युग की शुरुआत का प्रतीक बन गया।