-दीपक रंजन दास
शराब को भारतीय समाज ने कभी अच्छी नजरों से नहीं देखा. हालांकि सोमरस का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है. विभिन्न आदिवासी समाजों में शराब बनाकर पीने का चलन है. उनके देवता भी शराब पीते हैं. वैसे शराब महाकाल को भी चढ़ाया जाता है. हड़िया, सल्फी, महुआ, ताड़ी तो यहां जनजीवन का हिस्सा रहा है. पश्चिमी देशों में शराब सभ्यता का हिस्सा है. वहां मेहमान आने पर लोग ठीक उसी तरह ड्रिंक्स के लिए पूछते हैं जैसे हमारे यहां चाय के लिए पूछा जाता है. भारतीय समाज के उच्च वर्गों ने पश्चिमी चलन को अपना लिया है. रईसों के घर में अब उनके प्राइवेट बार होते हैं और स्त्री पुरुष सभी चुस्की लेते हैं. वाइन, जिन-टॉनिक, व्हिस्की और रम से उन्हें कोई गुरेज नहीं है. ब्रिटिश शासन काल में पाइप का शौक रखने वाले भी कम नहीं थे. हिन्दी फिल्मों में रईसों के यहां की पार्टियां खूब दिखाई जाती थीं. हीरो के मुंह में एक पाइप लटका होता था और हाथ में शराब की गिलास हुआ करती थी. पियानो पर हीरो गाना गाता था और पतली कमर वाली महिलाएं बॉल डांस करती थीं. आज भी शराब शासन के राजस्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. लोग अपने दिन भर की कमाई को शराब दुकानों पर लुटाते हैं और सरकार उसी कमाई से जनहित के तथाकथित कार्य करती है. कायदे से तो सरकार को शराबियों का शुक्रगुजार होना चाहिए. उनके लिए भी अलग से कोई स्कीम लांच की जानी चाहिए. समय समय पर बेवड़ों का सम्मान होना चाहिए. पर ऐसा होता नहीं. शराबियों को सरकार पागल समझती है. खासकर गरीब शराबियों को, जो क्लब, होटल, बार या घर पर बैठकर शराब नहीं पी सकते. इन बेचारों के लिए सरकार ने अहाते बनवा रखे हैं. यहां दो रुपए का चखना 10 रुपए का मिलता है. बेचारा शराबी अकसर एक पव्वा तक अकेले नहीं खरीद पाता. दो लोग मिलाकर पव्वा खरीदते हैं. आधी-आधी पीते हैं, नमक चाटकर घर चले जाते हैं. जेब में थोड़े पैसे अतिरिक्त हों तो अहाते में बैठ जाते हैं. शराबियों की धर-पकड़ में लगी पुलिस इन्हीं शराब दुकानों और अहातों के आसपास मंडराती रहती है. पुलिस को कभी किसी बड़े होटल या बार के आगे डेरा डालते नहीं देखा. पुलिस इन गरीबों को पकड़ती है, डग्गे में बैठाकर थोड़ी दूर छोड़ आती है, ठीक उसी तरह जिस तरह आवारा कुत्तों को म्यूनिसिपल्टी की गाड़ी दूर छोड़ आती है. लगे हाथ पुलिस इनकी जेबें भी खाली करवा लेती है. इस उत्पीड़न के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाता. यदि शराबियों से ट्रैफिक को खतरा है तो सबसे पहले कार वालों को पकड़ना चाहिए जो लोगों को कुचल सकते हैं, ठोकर मारकर उड़ा सकते हैं. ये बेचारे साइकिल, स्कूटी वाले किसी को क्या मारेंगे? सरकार को पैसा चाहिए इसलिए शराब दुकान खोलती है. पुलिस को भी पैसे चाहिए इसलिए वह ठेकों के आसपास मंडराती है. यह लूट बंद होनी चाहिए.
Gustakhi Maaf: ये शराबी हैं साहब! इनपर रहम करो
