-दीपक रंजन दास
प्रेम और वासना दो अलग-अलग भावनाएं हैं। प्रेम एक बेहद पवित्र भाव है जिसपर किसी का जोर नहीं चलता। प्रेम में त्याग, समर्पण और बंधुत्व के गुण होते हैं। इसके ठीक विपरीत वासना दैहिक सौन्दर्य पर आधारित होती है। इसमें एक दूसरे को प्राप्त करने की तीव्र लालसा होती है। दैहिक सुख प्राप्त करने के लिए लोग किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। पौराणिक ग्रंथों में भी इसके अनेक उदाहरण मिल जाएंगे जिसमें प्रेम को पूजा और आराधना के स्तर तक पहुंचा दिया गया और वासना की ज्वाला के चलते अनेक देवों को नारकीय कष्टों को भोगना पड़ा। भारतीय मनीषियों ने दैहिक आकर्षण को कम करने के लिए ही संभवत: कामक्रीड़ा को भी एक विषय माना। इसपर सविस्तार ग्रंथों की रचना की। मंदिर और देवस्थानों पर कामक्रीड़ा के दृश्य उकेरे गए। कोशिश की गई कि काम वासना के प्रति लोगों का कौतूहल कुछ कम हो। बाल विवाह और किशोरावस्था में गौना का जन्म भी यहीं से हुआ। यह परम्परा आदिवासी समाज में भी देखने को मिलती है। दरअसल, अधिकांश कच्ची उम्र के रिश्ते इसी कौतूहल की वजह से प्रारंभ होते हैं। जब समाज उसे स्वीकार नहीं कर पाता तब उसमें विकृतियां आने लगती हैं। पश्चिमी सोच के आने के बाद हमने पुरुषों को दरिन्दा और महिलाओं को पीडि़ता कहना शुरू कर दिया। एकतरफा कानून बनते गए पर अपराध कम होने की बजाय बढ़ते चले गए। दो मामले हाल में सामने आए हैं जिनका उल्लेख करना यहां अप्रासंगिक नहीं होगा। उत्तर प्रदेश के हाथरस स्थित एक कालेज के प्रॉक्टर और भूगोल के विभागाध्यक्ष पर आरोप हैं कि 20 साल में उन्होंने दर्जनों छात्राओं का यौन शोषण किया। आरोप हैं कि उन्होंने छात्राओं को पास करा देने और सरकारी नौकरी लगवा देने का आश्वासन देकर दुष्कर्म किया। अपने ही मोबाइल पर उनके वीडियो बनाए, फोटो खींचे और उन्हें अश्लील साइटों पर पोस्ट भी कर दिया। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि उसने कभी किसी की नौकरी लगवाई भी है या नहीं। किसी को पास करवाया भी या नहीं। आखिर किसी का झूठ इतने लंबे समय तक कैसे चल सकता है? जाहिर है कि इस मामले में अभी कई सवालों के जवाब आने बाकी हैं। यह भी स्पष्ट नहीं है कि जब छात्राएं लगातार शिकायत करती रहीं तो कालेज प्रबंधन ने कोई एक्शन क्यों नहीं लिया। एक दूसरा मामला हरियाणा के जींद का है। यहां के ग्राम छातर में एक महिला के अपने जेठ से संबंध थे। महिला के डेढ़ वर्षीय पुत्र के कारण उनके मिलन में बाधा आ रही थी। महिला ने अपने जेठ से कहा कि इसे ठिकाने लगा दो। जेठ ने होली के दिन बच्चे को बाइक पर बैठाया और पास के नहर में फेंक आया। जाहिर है कि गुरू-शिष्य और माता-संतान जैसे रिश्ते भी वासना की आग में भस्म हो जाते हैं। केवल दरिन्दा और दरिन्दगी कहने से यह समस्या हल नहीं होने वाली।
Gustakhi Maaf: जब लगी हो आग तो क्या रिश्ते, क्या नाते
