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अनोखी पहल: बिना चुनाव के बनते हैं पंच और सरपंच, महिलाओं को लाते हैं आगे; जानिए क्यों करते हैं इस गांव के लोग ऐसा

By Om Prakash Verma Published February 24, 2025
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अनोखी पहल: बिना चुनाव के बनते हैं पंच और सरपंच, महिलाओं को लाते हैं आगे; जानिए क्यों करते हैं इस गांव के लोग ऐसा
अनोखी पहल: बिना चुनाव के बनते हैं पंच और सरपंच, महिलाओं को लाते हैं आगे; जानिए क्यों करते हैं इस गांव के लोग ऐसा
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बालोद। पंचायत चुनाव के महंगे प्रचार प्रसार के दौर में बालोद जिले के एक गांव ने अनोखी मिसाल पेश की है। जहां लगातार दो पंचवर्षीय से यहां पर निर्विरोध पंच और सरपंच चुने जा रहे हैं। दो बार यहां पर सरपंच के रूप में महिलाओं को मौका दिया गया है। आपसी सामंजस्य और भाईचारे की मिसाल पेश करते हुए ग्रामीणों का कहना है कि जो सरपंच प्रचार प्रचार में पैसा खर्च करते हैं। उसे हम विकास कार्यों में लगाते हैं। महंगे खर्चों से हम बचाना चाहते हैं और इससे गांव का सामंजस्य बना रहता है। किसी तरह का कोई विवाद नहीं होता। हम बात कर रहे हैं ग्राम पंचायत पिकरीपार की।

बालोद जिले के इस पंचायत जिसका नाम पिकरीपार है। उस पंचायत में इसका एक आश्रित ग्राम भी आता है। जिसका नाम तिलखैरी है। दोनों गांव को बारी-बारी सरपंच बनने का मौका दिया जाता है। दोनों बार महिलाओं को यहां से आगे बढ़ाया गया है। यहां 10 वार्ड आते हैं। सभी वार्ड के पंच भी निर्विरोध बनकर सामने आए हैं।

बैठक में कर लेते हैं निर्णय
इस गांव की अपनी एक परंपरा पूरे जिले भर में चर्चा का केंद्र बना हुआ है। गांव के वरिष्ठ नागरिक श्यामलाल साहू ने बताया कि बैठक करते हैं और सभी को मौका देने की बात पहले से ही हमने रखी हुई थी तो बारी-बारी से सबको मौका दिया जाता है। कभी इस क्षेत्र से कभी उसे क्षेत्र से और एक ऐसे व्यक्ति के नाम पर सामंजस्य बनाया जाता है जिसे सबका समर्थन हो और सभी का समर्थन और सभी की सहमति से हमने सफलतम या दूसरा पंचवर्षीय कार्यकाल अब शुरू करने जा रहे हैं।

पिछले बार चंदा साहू, इस बार पंचशीला
आपको बता दें गांव ने सर्वसम्मति से यहां पर पिछले पंचवर्षीय में चंदा साहू को सरपंच बनाया था। ग्रामीणों ने बताया कि उनका कार्यकाल बहुत अच्छा था और सरपंच बनने के साथ ही यहां पर सभी कार्यों में उनका समर्थन भी किया जाता है। विरोध जैसा कोई स्वर नहीं होता वहीं इस बार पंचशीला साहू को ग्रामीणों ने मौका दिया है। दोनों ने बताया कि हमारे गांव की यह रीति नीति हमें काफी प्रभावित करती है और जो पैसा हम चुनाव से बचा रहे हैं। उनका गांव की छोटी-छोटी समस्याओं की विकास कार्यों में खर्च करते हैं।

बाहुबल के लिए लोकतंत्र जरूरी, लेकिन यहां सामंजस्य
पहले एक सवाल आता था लोकतंत्र जीतेगा या फिर बाहुबली। बाहुबली को परास्त करने सरकार ने लोकतंत्र को प्रमोट किया लोकतंत्र में सबकी हिस्सेदारी अनिवार्य हैं परंतु यहां जिस गांव की चर्चा हो रही है वहां पर बाहुबली नहीं बल्कि आपसी सामंजस्य से ही इनका केंद्र बिंदु है और यहां ना दबाव चलता है ना पैसा और ना ही कोई बाहुबली बल्कि चलता है विकास सामंजस्य और आपसी भाईचारा।

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