-दीपक रंजन दास
अब सब मिलकर पूजा खेड़कर के पीछे पड़े हैं। एक बलि का बकरा मिल गया है। बल्कि पूजा को तो थैंक-यू बोलना चाहिए। पूजा ने देश की नाक यूपीएससी पर ही सवालिया निशान लगा दिये हैं। एक प्रशासनिक अधिकारी की बेटी पूजा कभी खुद को मानसिक रोगी बताती है औऱ यूपीएससी मान लेती है। वह बताती है कि उसे लोकोमोटर विकलांगता है। एक अस्पताल उसके इस दावे को खारिज करता है पर दूसरा सरकारी अस्पताल उसे विकलांग बता देता है। यूपीएससी को ही दिए एक हलफनामे में वह बताती है कि उसे देखने में दिक्कत होती है। इसे भी ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। उसे छह बार मेडिकल टेस्ट के लिए बुलाया जाता है। आखिरी बुलावे पर वह जाती तो है पर एमआरआई जांच कराने से इंकार कर देती है। इसके बावजूद उसकी तैनाती हो जाती है। वह खुद को ओबीसी नॉनक्रीमी लेयर बताती है और उसे भी मान लिया जाता है। जबकि यूपीएससी को दिए हलफनामे में ही उसने लगभग एक करोड़ की प्रापर्टी खरीदने की जानकारी दी है। विभिन्न मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया है कि उसके पिता के पास 40 करोड़ और खुद उसके पास 22 करोड़ से अधिक की सम्पत्ति है जिससे उसे लाखों रुपए की आमदनी होती है। मजे की बात यह कि ये सारे आंकड़े खुद बाप-बेटी द्वारा समय-समय पर दिये गये हलफनामे के ही हैं। मीडिया को इसके लिए कोई खास मेहनत नहीं करनी पड़ी है। कहानी यहीं खत्म नहीं हो जाती। सामान्य अभ्यर्थी यूपीएससी की परीक्षा अधिकतम 6 बार दे सकता है। ओबीसी के लिए अधिकतम संख्या 9 बार है पर पूजा ने 11 बार यह परीक्षा दिलाई है और 11वीं बार में सिलेक्ट हुई है। इसके लिए पूजा ने अपने नाम और टाइटल के साथ थोड़ी छेड़छाड़ की और यूपीएससी को धोखा देने में कामयाब रही। 2020 को कैट को दिये आवेदन में पूजा ने अपना नाम खेडकर पूजा दिलीपराव लिखा था जबकि 2023 में दिये गये एक और आवेदन में उसने अपना नाम पूजा मनोरमा दिलीप खेडकर लिखा और यूपीएससी गच्चा खा गया। 2020 में वह 30 साल की थी और 2023 में वही पूजा महज 31 साल की थी। जन्मतिथि को लेकर इस तरह के खुलासे 70-80 के दशक तक तो आम थे पर 2023 में भी यह खेल बदस्तूर जारी है। उसकी हैसियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह निजी ऑडी कार से दफ्तर जाती थी। इसी गाड़ी पर उसने सरकारी वीआईपी बीकन लगवा रखा था। अब आप ही बताइए कि इसके लिए क्या उसे व्हिसल-ब्लोअर नहीं मान लेना चाहिए। क्या पूजा की ये हरकतें ये बताने के लिए काफी नहीं हैं कि देश की कोई भी संस्था बेदाग नहीं है। यह तो गनीमत है कि उसकी उद्दंडता ने उसे सुर्खियों में ला दिया वरना वह चुपचाप अपना कार्यकाल पूरा करके रिटायर हो जाती। उंगली तो यूपीएससी पर उठनी चाहिए।