-दीपक रंजन दास
भिलाई के नेहरू नगर चौक पर लोग आज भी जान को जोखिम में डालकर ही सड़क पार कर रहे हैं. लाल-हरी बत्ती का तो यहां कोई मतलब ही नहीं है. बत्ती पीली होने के बाद भी लोग पूरी रफ्तार से निकल जाने की कोशिश करते हैं. इधर हरी बत्ती का इंतजार करने वाले भी सड़क पर आ जाते हैं. नेहरू नगर से टाउनशिप की तरफ जाने वाली सड़क की हालत भी ठीक नहीं. यहां सड़क को किसी तरह काट-पीटकर मिला दिया गया है. सबसे ज्यादा खतरनाक को भिलाई के होशियार हैं. इन्हें दुर्ग की ओर जाना होता है तो भी ट्रैफिक के बाएं में आकर खड़े होते हैं और सबसे पहले सर्र से निकल जाने की कोशिश करते हैं. यहां कई हादसे हो चुके हैं. कईयों की जान जा चुकी है. सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च कर यहां फ्लाईओवर भी बनवा दिया पर भीड़ अब भी चौक पर ही बनी हुई है. यहां से बोगदा पुल होकर निकल जाना उन्हें ज्यादा आसान लगता है. फ्लाईओवर गुरुद्वारे से आकर सीधे सेक्टर-7 और 8 के बीच उतर जाता है. पर इस सड़क का यह हाल है कि यहां मीटर तो दूर, 10-20 फुट सड़क भी हमवार नहीं है. सड़क को इतनी थेगड़ियां लग चुकी हैं कि पुरानी गाड़ियों के अस्थि पंजर बजने लगते हैं. नई गाड़ियां भी यहां इतने हिचकोले खाती हैं कि भीतर बैठे लोगों का खाना पच जाता है. फ्लाईओवर एक बड़ा काम है. जाहिर है कि किसी ए-क्लास के ठेकेदार ने ही यह काम किया होगा. उसपर सड़क की गुणवत्ता सुनिश्चित करने और एक निश्चित अवधि तक उसके संधारण की भी जिम्मेदारी होगी. अब इस जिम्मेदारी का निर्वहन वह कैसा करता है यह निगरानी करने वाले अफसरों पर निर्भर है. मरम्मत अगर ऐसी हो कि सड़क से मैदान भली लगने लगे तो उसे सड़क कहने में ही संकोच होने लगता है. वैसे भी यह फ्लाईओवर गुरुद्वारे के सामने जहां उतरती है वहां से दाएं मुड़ना भी एक मशक्कत है. ऐसे में लगता है कि पूरे देश को नितिन गडकरी जैसे नेताओं की जरूरत है. अब एक गडकरी पूरे देश को तो नहीं देख सकता. इसलिए एक काम कर सकते हैं. सड़कों की गुणवत्ता और नवोन्मेष की एक ऑनलाइन क्लास शुरू करते हैं. इसमें पार्षदों से लेकर विधायकों और सांसदों तक की ट्रेनिंग सुनिश्चित कर सकते हैं. बड़ी ट्रेनिंग इस बात की होनी चाहिए कि सरकारी अफसरों से काम कैसे लिया जाए. ये इतने उस्ताद होते हैं कि अच्छे-अच्छों को तकनीकी में उलझा देते हैं. इनसे काम लेने के लिए जिद चाहिए, सख्ता चाहिए. इनकी जिम्मेदारी तय करने वाला नेतृत्व चाहिए. अफसरों की जिम्मेदारी तय हो गई तो नेताओं को कट जाने का सिलसिला भी अपने आप बंद हो जाएगा. किसी ईडी, आईटी या सीबीआई को नेताओं और अफसरों के यहां छापेमारी करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. इससे सरकारी काम-काज की लागत भी कम हो जाएगी.