ब्लेक कैट कमांडो से घिरे वीआईपी नेता के सामने एक सहज-सुलभ आम आदमी
राजनांदगांव (श्रीकंचनपथ न्यूज़)। प्रदेश की हाई प्रोफाइल सीटों में एक राजनांदगांव में चुनाव प्रचार अब अंतिम चरण की ओर है। यहां तीन बार के मुख्यमंत्री रहे भाजपा के डॉ. रमन सिंह का मुकाबला एक आम कृषक गिरीश देवांगन के साथ है। कई स्थानीय मुद्दों के साथ ही यहां प्रमुख रूप से वीआईपी बनाम आम आदमी और छत्तीसगढिय़ा बनाम गैर छत्तीसगढिय़ा का मुद्दा खूब जोरों पर है। मतदाताओं के जेहन पर पिछले 20 वर्षों से यह बात चोंट करती रही है कि उनका प्रतिनिधि ब्लेक केट कमांडों से घिरा रहता है, इसके चलते स्थानीय लोग न उनसे मिल सकते हैं; न संवाद कर सकते हैं। पिछली दफा जब कांग्रेस ने यहां से डॉ. रमन के मुकाबले करुणा शुक्ला को मैदान में उतारा तो मतदाताओं ने उन्हें सिर आंखों पर बिठाया था। लेकिन इस बार की स्थितियां और भी जुदा है। अबकी बार यहां से एक वीवीआईपी उम्मीदवार के सामने कांग्रेस ने एक आम आदमी को उतार दिया है, जिसका मतदाताओं के भीतर तक असर हो रहा है। फिर जिस तरह छत्तीसगढ़ में भगवान राम को भांचा मानकर पूजा जाता है, ठीक उसी तर्ज पर राजनांदगांव में भी गिरीश देवांगन के लिए पलक पावड़े बिछाए गए हैं। गिरीश हमर भांचा… गांव-गांव में गूंज रहा है। भाजपा के लिए इस तरह की कई और चुनौतियां भी हैं, जिससे पार पाना आसान नहीं होगा।
छत्तीसगढ़ की जिन करीब एक दर्जन सीटों पर सबकी निगाहें लगी हुई है, उनमें से एक सीट राजनांदगांव भी है। यहां के विधायक डॉ. रमन सिंह को मतदाता सिर्फ ई-मीडिया या अखबारों में ही देख पाते है। वजह यह है कि वे तीन बार मुख्यमंत्री रहे हैं और उनकी सुरक्षा में चौबीसों घंटे कमांडो दल तैनात रहता है। इसके चलते स्थानीय नागरिक अपने जनप्रतिनिधि को समस्याएं भी नहीं बता पाते। रमन के साथ बढ़ती उम्र भी एक फैक्टर है। वे ज्यादा सक्रिय भी नहीं रह पाते। यहां तक कि चुनाव प्रचार या जनसम्पर्क में भी वे दीगर प्रत्याशियों के मामले में काफी पीछे हैं, क्योंकि ज्यादा चलना-फिरना नहीं हो पाता। दूसरी ओर कांग्रेस प्रत्याशी गिरीश देवांगन समेत अन्य लोग मतदाताओं से प्रत्यक्ष और जीवंत सम्पर्क कर रहे हैं। इसका भी असर राजनांदगांव के चुनाव में सीधे तौर पर दिख रहा है।

एक ओर जहां भाजपा आलाकमान ने इस बार पूरे प्रदेश में नए, युवा और ऊर्जावान चेहरों को ज्यादा तवज्जो दी है तो दूसरी ओर राजनांदगांव में इसकी घोर उपेक्षा हुई है। भले ही कोई खुलकर सामने नहीं आया, लेकिन पार्टी के स्थानीय नेता और टिकट के दावेदारों को यह चोंट दर्द दे रही है। लोकल नेताओं को यह भी समझ आ रहा है कि प्रदेश में पार्टी की स्थिति इस बार भी उतनी मजबूत नहीं है। इसलिए इस चुनाव में उनका मन भी डोल रहा है। कुल मिलाकर भाजपा के लिए राजनांदगांव का मिशन 2023 संतोषजनक और प्रगतिसूचक नहीं है। दूसरी ओर कांग्रेस के कार्यकर्ता प्रदेश में सरकार बनाने को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है। हालांकि गिरीश देवांगन को टिकट दिए जाने के बाद यहां थोड़ी नाराजगी देखने को मिली थी, लेकिन अब उसका शमन किया जा चुका है। धीरे-धीरे कर श्री देवांगन ने पूरा क्षेत्र कव्हर किया है। इसके अलावा उन्हें सीएम भूपेश बघेल के सबसे करीबी लोगों में शुमार किया जाता है। इसका भी असर इस चुनाव में दिख रहा है। नांदगांव विधानसभा क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस के पक्ष में माहौल पूरी तरह मुफीद है, जबकि शहरी क्षेत्र में, जहां भाजपा का खासा जनाधार था, वहां भी कांग्रेस को अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है।

भांचा ल जीताना हे…
राजनांदगांव में गिरीश देवांगन का ननिहाल है। इस नजरिए से श्री देवांगन राजनांदगांव के भांचा है। छत्तीसगढ़ की परंपरा रही है कि बिटिया की शादी हो तो उसके पति को पूरा गांव अपना दामाद मानता है। ठीक इसी तर्ज पर कांग्रेस प्रत्याशी गिरीश देवांगन को पूरा राजनांदगांव क्षेत्र अपना भांचा मान रहा है। अब मतदाताओं के लिए भांचा की जीत, इज्जत और सम्मान पर बन आई है। गांव-गांव में नारा चल रहा है कि भांचा ल जीताना हे…। पार्टी ने यह राजनांदगांव से गिरीश देवांगन को प्रत्याशी घोषित किया था, तब स्वयं श्री देवांगन ने ऐसी उम्मीद नहीं की होगी। लेकिन अब भरोसा जमने लगा है। जिस तरह प्रदेश में भूपेश है तो भरोसा है का नारा चल रहा है, ठीक उसी तरह राजनांदगांव में भी भांचा गिरीश ल जिताना हे.. का नारा जोर-शोर से गूंज रहा है। दरअसल, राजनांदगांव में कुछ समय पहले तक कांग्रेस पार्टी में एक बिखराव नजर आ रहा था। कांग्रेसी एक दूसरे को पीठ दिखाते नजर आते थे। लेकिन अब क्षेत्र के सभी कांग्रेसी गिरीश देवांगन नाम की छतरी के नीचे एकजुट है। यह एक बड़ा अंतर है, जिसका चुनाव के परिणामों पर असर देखने को मिल सकता है। गिरीश देवांगन, क्षेत्र में कांग्रेस के सबसे मजबूत प्रत्याशी के रूप में उभरे हैं। दूसरी ओर भाजपा में टूटे हुए दिल और घर बैठे कार्यकर्ता कुछ और ही संकेत दे रहे हैं। यहां तक कि भाजपा के कई बड़े नामधारी नेता भी इस बार चुनाव प्रचार में नजर नहीं आ रहे।
रमन के सामने बौने साबित हुए युवा और सीनियर नेता
15 साल की भाजपाई सत्ता के बाद पार्टी आलाकमान ने इस बार जब टिकट वितरण की कवायद शुरू की तो बूढ़े और कमजोर चेहरे ही नजर आए। पार्टी की दूसरी पंक्ति नदारत थी। कैडर घर बैठा था और पूरी तरह नाउम्मीद था। इसीलिए दूसरी पंक्ति को सामने लाने और कैडर को मजबूत करने भाजपा ने नए और युवा चेहरों को तवज्जो दी, लेकिन राजनांदगांव में डॉ. रमन सिंह के सामने युवा और सीनियर नेता बौने साबित हुए। अब यहां के युवाओं को एक बार फिर सिर्फ इंतजार ही करना होगा। रमन यहां से लगातार 4 बार चुनाव लड़कर जीत चुके हैं। जो युवा उनके साथ पहली बार आए, वे अब बूढ़े हो रहे हैं। युवाओं की अगली पौध भी राजनीतिक बागडोर संभालने को तैयार है, लेकिन सवाल अवसर का है। युवाओं को यदि अवसर ही नहीं मिलेगा तो बूढ़ाते नेताओं की विरासत कौन संभालेगा? फिर भाजपाइयों के मन में यह बात भी घर कर रही है कि डॉक्टर साहब यदि फिर जीत गए तो अगली बार भी दिक्कत हो जाएगी। भाजपा में इसी तरह की स्थितियों के देखते हुए गिरीश देवांगन की स्थिति को काफी मजबूत माना जा रहा है। कार्यकर्ताओं के भीतर यह बात बैठ चुकी है कि बस थोड़ा सा और प्रयास और फिर जीत…।
डॉ. रमन भी मार रहे हैं जोर
राजनांदगांव में भाजपा प्रत्याशी डॉ. रमन सिंह का प्रचार-प्रसार भी जोरों पर है। वे तीन बार के मुख्यमंत्री है, इसलिए क्षेत्र में उनके चाहने वाले और प्रशंसक कम नहीं है। भाजपा कार्यकर्ताओंं का मानना है कि डॉक्टर साहब का सिर्फ चेहरा ही काफी है। राजनांदगांव क्षेत्र में भाजपा संगठन पूरी तरह व्यवस्थित और चैनलाइज है। चुनाव के वक्त सिर्फ इसे एक्टिव करने की दरकार होती है। प्रत्येक कार्यकर्ता को अपनी भूमिका पता है। वैसे भी डॉ. रमन को यह भलीभांति मालूम है कि चुनाव कैसे लड़ा और लड़वाया जाता है। रमन इस बार नांदगांव से पांचवीं बार मैदान में है। कार्यकर्ताओं में उत्साह है और वे जीत के प्रति आश्वस्त भी हैं।