भिलाई। कांग्रेस प्रत्याशियों की सूची नवरात्र के पहले दिन यानी 15 अक्टूबर को जारी होने की संभावना है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस की प्रभारी कुमारी सैलजा ने कहा है कि इस सूची में कई विधायकों के टिकट काटे जा रहे हैं। इसी के बाद से कयासों का दौर सरगर्म है कि वे कौन से विधायक हैं, जिनके टिकट काटे जाने की तैयारी है? 2018 में पार्टी ने बड़ी संख्या में युवाओं को टिकट दी थी। इस चुनाव में कुल 68 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों ने जीत हासिल की, जिनमें से 35 विधायक पहली चुनकर विधानसभा पहुंचे। इनमें से ज्यादातर का उनके अपने क्षेत्रों में विरोध है। कांग्रेस ने भले की इस बार 75 प्लस का लक्ष्य निर्धारित किया है, लेकिन उसकी अपनी सर्वे रिपोर्ट में पार्टी को कम सीटें मिलने की संभावना जाहिर की गई है। यह तब, जबकि भूपेश बघेल की अगुवाई वाली सरकार ने कांग्रेस का जनाधार बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
इस विधानसभा चुनाव में कई ऐसे मुद्दे हैं, जिनकी वजह से कांग्रेस को नुकसान होने की संभावना है। इसमें सबसे प्रमुख मुद्दा शराब बंदी का है। भाजपा इस मुद्दे को काफी समय से भुनाने में जुटी है। उसका आरोप है कि अपने घोषणा-पत्र में कांग्रेस ने पूर्ण शराब बंदी का वायदा किया था, लेकिन पूरे प्रदेश में शराब की बिक्री सुनियोजित तरीके से बढ़ाई गई। आबकारी मंत्री स्वयं बार-बार कहते रहे हैं कि प्रदेश में शराब बंदी संभव नहीं है। सरकार भी कई मौकों पर इस मसले पर बचाव करती हुई नजर आई है। इसके अलावा संविदा कर्मचारियों का नियमितीकरण और कई अधूरे वायदे कांग्रेस के लिए सिरदर्द बन सकते हैं। भाजपा ने इस चुनाव में सीएम के लिए कोई चेहरा सामने नहीं किया है। इसका मूल कारण यह है कि पार्टी किसी प्रादेशिक नेता की बजाए प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा सामने रखना चाहती है। दरअसल, मोदी फैक्टर भाजपा को प्रतिद्वंद्वी पार्टियों पर बढ़त दिलाता रहा है। इसके अलावा आम आदमी पार्टी ौर सर्व आदिवासी समाज (आदिवासी संगठनों का समूह) भी चुनावी ताल ठोंक रहे हैं। इनके मैदान में उतरने से भी कांग्रेस के वोटबैंक में सेंध लगने की संभावना है।
छत्तीसगढ़ में 2003 से 2018 के बीच 15 वर्षों तक शासन करने वाली बीजेपी को 2018 में हार का सामना करना पड़ा। सत्ता विरोधी लहर के कारण कांग्रेस ने 2018 विधानसभा चुनाव में भारी जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के पास वर्तमान में 90 सदस्यीय राज्य विधानसभा में 72 सीटें हैं। पार्टी ने आगामी चुनावों में भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली सरकार की किसान-आदिवासी और गरीब समर्थक योजनाओं के दम पर 75 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। सत्ताधारी दल मुख्यमंत्री बघेल की लोकप्रियता को भुनाने की कोशिश में है क्योंकि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और ग्रामीण मतदाताओं पर उनकी अच्छी खासी पकड़ है। राजीव गांधी किसान न्याय और गोधन न्याय योजना सहित कई कल्याणकारी योजनाओं का कार्यान्वयन, किसानों और ग्रामीण आबादी के लिए योजनाएं, बेरोजगारी भत्ता के अलावा समर्थन मूल्य पर बाजरा तथा विभिन्न वन उपज की खरीद कांग्रेस के पक्ष में मतदाताओं को आकर्षित कर सकती है। मुख्यमंत्री बघेल ने स्थानीय लोगों में अपनी लोकप्रियता बढ़ाते हुए अपनी छवि ‘माटी पुत्रÓ के रूप में विकसित की है।

पिछले पांच वर्षों में पार्टी ने बूथ स्तर तक अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत किया है। राजीव युवा मितान क्लब योजना से जुड़े करीब तीन लाख युवा, मतदाताओं को अपने पक्ष में गोलबंद करने में पार्टी की मदद कर सकते हैं। इस योजना का उद्देश्य राज्य के युवाओं को रचनात्मक कार्यों से जोडऩा, नेतृत्व कौशल विकसित करना और उन्हें उनकी सामाजिक जिम्मेदारियों के बारे में जागरूक करना है। कांग्रेस ने 2018 के बाद छत्तीसगढ़ में पांच विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में जीत हासिल की और राज्य में अपनी मजबूती स्थिति का अहसास कराया। हालांकि कांग्रेस की राज्य इकाई में गुटबाजी और अंदरुनी कलह है। पिछले पांच वर्षों में, पार्टी में मुख्यमंत्री बघेल के धुर विरोधी टीएस सिंहदेव ने कई बार विद्रोह का झंडा उठाया। आखिरकार पार्टी को इस साल की शुरुआत में उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाकर संतुष्ट करना पड़ा। वहीं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम के भी बघेल के साथ अच्छे संबंध नहीं थे। उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। इन सबके बावजूद पार्टी में अंदरूनी कलह अभी भी बरकरार बताई जाती है।
बघेल सरकार राज्य में कोयला परिवहन, शराब बिक्री, जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) कोष के दुरूपयोग और लोक सेवा आयोग भर्ती में भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रही है। वर्तमान शासन के दौरान राज्य में धर्मांतरण, सांप्रदायिक हिंसा और झड़पों की कुछ घटनाएं हुईं, जिससे विपक्षी दल भाजपा को कांग्रेस पर हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाने का मौका मिला। पिछले लगभग पांच वर्षों में भाजपा, कांग्रेस पर प्रभावी हमला करने में विफल रही है। भाजपा में नेतृत्व का मुद्दा लगातार बना हुआ है। 2018 के विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा ने अपने प्रदेश अध्यक्ष को तीन बार बदला और पिछले वर्ष विधानसभा में अपने नेता प्रतिपक्ष को भी बदल दिया। भाजपा ने रमन सिंह को भी लगभग दरकिनार कर दिया है, जो 2003 से 2018 के बीच मुख्यमंत्री रहे। इनके कार्यकाल में सरकार पर नागरिक आपूर्ति घोटाले और चिट फंड घोटाले के आरोप लगे। राज्य में कांग्रेस लगातार भाजपा पर निशाना साध रही है और दावा कर रही है कि उसके केंद्रीय नेतृत्व को राज्य में पार्टी के अग्रिम पंक्ति के नेताओं पर भरोसा नहीं है।




