-दीपक रंजन दास
छत्तीसगढ़ के मूल निवासी सावधान हो जाएं। जो गेड़ी नहीं चढ़ सकता, वह छत्तीसगढिय़ा नहीं हो सकता। कम से कम भाजपा के एक प्रदेश महामंत्री का तो यही मानना है। भाई ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर कांग्रेस सरकार को चुनौती दे डाली है कि वह भौंरा-बांटी, गिल्ली डंडा और गेड़ी दौड़ में उनसे मुकाबला करके देख लें। उनका दावा है कि गेड़ी दौड़ में कोई उनसे आगे नहीं निकल सकता। कैसी बचकानी बातें हैं। अब क्या गेड़ी से तय होगा कि सरकार किसकी बनेगी? छत्तीसगढ़ तो क्या, किसी भी प्रदेश की संस्कृति का इतिहास तब से शुरू होता है जब भाजपा-कांग्रेस जैसी पार्टियों का जन्म भी नहीं हुआ था। छत्तीसगढ़ का इतिहास तो रामायणकाल से भी पहले शुरू हो जाता है। रही बात गेड़ी दौडऩे की, भौंरा बांटी या गिल्ली डंडा-गोबर डंडा खेलने की तो यह गांव-गांव में आज भी जीवित है। भूपेश बघेल ही क्यों, भाजपा और कांग्रेस के अधिकांश नेता ग्रामीण पृष्ठभूमि से ही आते हैं। इनमें से 70 फीसदी नेता चुनाव में नामांकन के दौरान स्वयं को किसान ही बताते हैं और कृषि आय ही दर्शाते हैं। आरोप है कि मुख्यमंत्री ग्रामीण खेलों से जुड़कर लोगों को भरमा रहे हैं। यदि ऐसा है जो भाजपा को भी स्पष्ट करना चाहिए कि वह ‘जय श्रीराम’ से क्या साबित करना चाहती है। क्या वह भी जनता को भरमाना चाहती है? भाजपा या कांग्रेस रहे न रहे, न तो प्रभु श्रीराम की महिमा पर कोई आंच आएगी और न ही ग्रामीण मौलिक खेलों पर। यह कोई प्रतियोगिता का विषय ही नहीं है। जनता के साथ तीज-त्यौहारों में शामिल होने की परम्परा सदियों पुरानी है। यहां तक कि राजा भी प्रजा के साथ त्यौहार मनाया करते थे। भूपेश बघेल न केवल ग्रामीण पृष्ठभूमि से हैं बल्कि गांव में रहे हैं। अपने हाथों से बैल जोते हैं, ट्रैक्टर भी चलाया है। रोपा लगाया है फसल भी काटी है। उलानबाटी मारकर नहर में कूदे हैं और खूब नहाए हैं। गेड़ी, भौंरा, बांटी उनके बचपन के साथी हैं। वे इन खेलों को खेलकर खुश होते हैं। मुख्यमंत्री को ग्रामीणों के बीच वही खुशी मिलती है जो कदाचित प्रधानमंत्री को गंगा आरती से मिलती है। भाजपा के महामंत्री ने आरोप लगाया कि भूपेश सरकार अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए छत्तीसगढिय़ावाद का सहारा ले रही है। तो क्या भाजपा भी इसीलिए हिन्दुत्व का झंडा उठाती है? दरअसल, प्राचीन मान्यता है कि जो जैसा होता है, उसे दुनिया वैसी ही नजर आती है। रामचरित मानस के बालकांड की एक चौपाई है – ‘जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी’। जो लोग रामनाम के सहारे सत्ता में हैं, उन्हें तो इस बात की खास जानकारी होनी चाहिए। छत्तीसगढ़ तो राम के ननिहाल को सजा-संवारकर ही खुश है। छत्तीसगढ़ के रोम-रोम में राम है। उसकी रामायण मंडलियां देश दुनिया में प्रसिद्ध हैं। सतनामियों की पंडवानी, पंथी से भी पूरा विश्व परिचित है।
Gustakhi Maaf: अब गेड़ी से तय होगा कौन असली छत्तीसगढिय़ा




