-दीपक रंजन दास
छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सेवाओं को जन-जन तक पहुंचाने के लिए कई प्रयोग किये गये हैं। सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं में भी खूब इजाफा हुआ है। झुग्गी झोपडिय़ों तक मोबाइल मेडिकल यूनिट पहुंच रही हैं ताकि लोगों को उनके घर के पास ही इलाज मिल सके। इसमें डॉक्टर से लेकर पैथोलॉजी की छोटी-मोटी जांचें तक तत्काल हो जाती हैं। एक ऐसी ही शृंखला है “हमर अस्पतालों” की। दरअसल, ये भी स्वास्थ्य केन्द्र ही हैं। सरकार की मंशा स्पष्ट है कि समय पर सबको इलाज मिले ताकि रोग नासूर न बन जाए। सरकार को पता है कि गरीब मजदूर वर्ग जब तक स्थिति गंभीर न हो जाए, अस्पताल नहीं जाता। वह मोहल्ले के झोला छाप डॉक्टरों से ही इलाज करवा लेता है। सीधे मेडिकल पहुंचकर उसी से दवा पूछ और खरीद लेते हैं। क्योंकि उनके लिए अस्पताल जाने और लाइन लगाने का मतलब एक दिन की रोजी-रोटी गंवाना भी होता है। पर सरकार की इस मंशा को चिकित्सा सेवा से जुड़े लोगों की संवेदनहीनता पलीता लगा रही है। अस्पतालों के शहर रायपुर के गुढिय़ारी पड़ाव क्षेत्र में भी एक “हमर अस्पताल” है। यहां एक गर्भवती को लाया जाता है। वह काफी तकलीफ में है, परिजन उतावले हो रहे हैं पर डॉक्टरों के पास मरीज की फौरी जांच की भी फुर्सत नहीं। परिजन दबाव बनाते हैं तो उनका सपाट जवाब मिलता है कि प्रसव से पहले इस तरह का दर्द होना स्वाभाविक है, सभी को होता है। पर साथ आई महिलाओं को लगता है कि यह दर्द, और महिलाओं को होने वाले दर्द जैसा नहीं है। आखिर इस दर्द से वे सभी, कभी न कभी गुजरी हैं। महिला 2-3 घंटे तक ऐसे ही तड़पती रहती है। जब चिकित्सक उसकी जांच करते हैं तो पता चलता है कि गर्भनाल बच्चे के गले में फंसा हुआ है। तब जाकर महिला को निजी अस्पताल रिफर किया जाता है। पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। कहा जाता है कि प्रसव के समय महिला जिस वेदना से गुजरती है वह शरीर की सारी हड्डियों के एक साथ टूटने जैसा होता है। चिकित्सा सेवाओं से दूर गर्भवती इसे सहने के लिए मजबूर होती है। पर अस्पताल में भी अगर उसे इसी स्थिति से गुजरना पड़े तो इसे क्या कहा जाएगा? क्या मानवीय संवेदनाएं पूरी तरह समाप्त हो गई हैं? जिला चिकित्सा अधिकारी अब इस घटना की जांच करवाएंगे। क्या लिखा जाएगा जांच रिपोर्ट में? पहली ही लाइन में लिखा होगा कि गर्भवती महिला की मौत एक निजी अस्पताल में हुई। महिला को “हमर अस्पताल” से बेहतर चिकित्सा के लिए वहां रिफर किया गया था। गर्भस्थ शिशु के गले में गर्भनाल फंसी हुई थी। पर जो अमानवीयता अस्पताल में हुई, क्या उसका भी जिक्र इस जांच रिपोर्ट में होगा? ऐसी कोई संभावना न के बराबर है। मॉड्यूलर ओटी, तमाम उपकरणों का तामझाम तब तक बेमानी है जब तक यहां काम करने वालों में सेवा भाव और मनुष्यता न हो।
Gustakhi Maaf: बस इतने ही संवेदनशील हैं हम
