-दीपक रंजन दास
ऐसी घटनाएं जब भी सामने आती हैं, कलेजा फट जाता है. गुस्सा तो इतना आता है कि सीधे पहुंचें और चार जूता मारें. पर ऐसा कुछ हम करते नहीं हैं। हमारी शिक्षा और संस्कार हमें रोकते हैं। थोड़ा बहुत डर कानून का भी होता है। फिर हम खुद को ही तसल्ली देने लगते हैं कि हो-न-हो जिम्मेदार इन अनाथ बच्चों को आगे के कठिन जीवन के लिए तैयार कर रहे हैं। मामला कांकेर के एक बाल आश्रम का है। ‘शिवनगर दत्तक ग्रहण केन्द्र’ की कार्यक्रम अधिकारी सीमा द्विवेदी का एक वीडियो वायरल हुआ है। इसमें वो छोटी-छोटी बेटियों को बेरहमी से पीटती दिखाई देती हैं। उन्हें थप्पड़ तो मारती ही है, बालों से पकड़कर उठा लेती है और फिर जमीन पर पटक देती है। वो बेरहमी से बच्चों की धुनाई करती हैं। आरोप यह भी है कि यहां रात को कुछ घंटों के लिए सभी सीसीटीवी कैमरे बंद कर दिये जाते हैं। यह वह समय होता है जब उसका बॉयफ्रेंड आता है। कमाल है, जिसे प्यार की इतनी तलब है, वह भी क्रूरता की हदों को पार कर जाती है। कहा तो यह भी जाता है कि दत्तक ग्रहण केन्द्र में हो रही इस हैवानियत का विरोध करने वालों की चुटकियों में छुट्टी कर दी जाती है। पिछले एक साल के भीतर यहां के 8 कर्मचारी रुख्सत किये जा चुके हैं। अब जाकर किसी ने वीडियो बनाने का और उसे वायरल करने का साहस दिखाया है। शायद उसके लिए नौकरी बचाने से ज्यादा जरूरी मानवता रही हो। पर हममें से अधिकांश ऐसा कहां कर पाते हैं। हमारी नौकरी केवल हमारी पहचान और जरूरत नहीं होती। उसपर और भी लोगों का अधिकार होता है, उससे और भी लोगों की उम्मीदें जुड़ी होती हैं। इसलिए हम चुपचाप अपने आसपास हो रही दरिन्दगी के मूक दर्शक बने रहते हैं। ऐसा नहीं है कि मामला पहले कभी लोगों के संज्ञान में न आया हो। पर जो लोग अपने ही बच्चों को ठीक से वक्त नहीं दे पाते, उन्हें किसी दूसरे के परित्यक्त बच्चे से क्या लेना-देना? कुछ साल पहले ट्रेन से यात्रा कर रहा था। सामने एक परिवार बैठा था। उनके पास खाने के लिए जरूरत से ज्यादा सामान पैक किया पड़ा था। जब भी बच्चे भूख-भूख बोलते, उसकी मां बैग से एक पार्सल निकालती। उसे खोलकर सूंघती, खाना खराब हो जाने पर उसे बाजू में एक दूसरी झिल्ली में रख लेती। जब कभी ट्रेन स्टेशन पर रुकी होती तो गरीब बच्चे खिड़की के पास झूमने लगते। अलग रखा हुआ खाना वह उन्हें दे देती। सकुचाते हुए मैंने पूछ ही लिया, जब ये भोजन आपके बच्चों के लिए उपयुक्त नहीं है तो इन गरीब बच्चों को इसे क्यों दे रही हैं? जवाब मिला, ये फुुटपाथ पर रहने वाले गरीब बच्चे सबकुछ पचा लेते हैं। सही है, देश की सरकारों को भी ऐसा ही लगता है। इसलिए ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है।
Gustakhi Maaf: अनाथ बच्चों को मजबूत बना रही मैनेजर




