-दीपक रंजन दास
“चलबो गोठान-खोलबो पोल” अभियान अब रंग लाने लगा है। हालांकि यह चुनाव पूर्व की राजनीतिक कवायद है पर इससे सरकार का काम आसान हो गया है। कांग्रेस लंबे अर्से से अपने कार्यकर्ताओं से अपील कर रही है कि वे गोठानों में जाएं और वहां की गतिविधियों पर नजर रखें। जरूरत पडऩे पर सहयोग और मार्गदर्शन देवें। जाहिर है किसी ने भी इसपर कोई ध्यान नहीं दिया। अब भाजपा का दावा है कि प्रतिदिन उसके 10 से 12 हजार कार्यकर्ता गोठानों की मैदानी हकीकत का पता लगा रहे हैं। 4 दिन में 3984 गोठानों तक कार्यकर्ता पहुंचे हैं। भाजपा का दावा है कि 664 गोठान केवल कागजों पर ही चल रहे हैं। इन टीमों का नेतृत्व 422 वरिष्ठ नेता कर रहे हैं। काश! यह पहल दो साल पहले शुरू कर दी जाती तो न केवल गौवंश प्रताडऩा से बच जाता बल्कि बेहतर व्यवस्था से गोठानों की सफलता का प्रतिशत भी बढ़ जाता। बहरहाल, देर आयद – दुरुस्त आयद। छत्तीसगढ़ का यह परम सौभाग्य है कि जिन कार्यों को शासन ने सरकारी अमले के भरोसे छोड़ रखा था, उसमें अब जनप्रतिनिधि दिलचस्पी ले रहे हैं। यदि सभी जनप्रतिनिधि इसी तरह से योजनाओं के क्रियान्वयन पर नजर रखें तो जनता की गाढ़ी कमाई को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है। भ्रष्टाचार को उसके न्यूनतम स्तर पर लाया जा सकता है। पर दिक्कत यह है कि यहां उद्देश्य ही गड़बड़ है। इस अभियान का उद्देश्य गोठानों का संचालन बेहतर बनाना नहीं बल्कि सरकार को बदनाम करना है। भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही दलों का बर्ताव अजीबोगरीब है। चुनाव के पहले दोनों न जाने कौन सा एनर्जी ड्रिंक पी लेते हैं कि उनके युवा-अधेड़-बूढ़े सब के सब चिलचिलाती गर्मी में सड़क पर आ जाते हैं। चुनाव खत्म होते ही सभी जनप्रतिनिधि आंखें मूंद लेते हैं। ऐसा लगता है कि उपविजेता पक्ष छुट्टी पर चला गया है। सत्ता पक्ष की तो बात ही और है। वह इस मौके का पूरा-पूरा फायदा उठाने की कोशिश में जुट जाता है। सनद रहे कि किसी भी योजना का पैसा जाता जनता की जेब से ही है। फंड केन्द्र सरकार दे या राज्य सरकार, ये पैसे होते जनता के ही हैं। इन पैसों की बर्बादी को आंखें मूंदकर देखते रहना भी एक तरह का अपराध है। भाजपा शासनकाल में गौशाला योजना शुरू की गई थी जिसमें सरकारी जमीन और राशि की ऐसी बंदरबांट हुई कि गायें भूख-प्यास से मरने लगीं। कहां तो ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होती, उन्हें पद और प्रतिष्ठा देकर उलटे सम्मानित ही किया गया। कांग्रेस की सरकार बनी तो गोठान बनने लगे। गोठानों को ग्रामीण औद्योगिक पार्क का स्वरूप दिया गया। कई स्थानों पर अच्छा काम हुआ। लाभ भी मिला और तारीफ भी। पर यह सभी गोठानों की हकीकत नहीं थी। कुछ जगहों पर स्थिति बेहद खराब है। पर इसे योजना का नुक्स नहीं कहा जा सकता। क्रियान्वयन में सबका सहयोग चाहिए होता है।
Gustakhi Maaf: चलबो गोठान का कुछ तो फायदा हुआ
