-दीपक रंजन दास
कैलाश खेर को आज कौन नहीं जानता. दुनिया भर में शोहरत की बुलंदियों को छू रही उनकी आवाज के आज करोड़ों दीवाने हैं. भारतीय लोकगीत और सूफी संगीत के शैदाई कैलाश 800 से ज्यादा गानों को अपनी आवाज दे चुके हैं. पिछले दस वर्षों में वे देश विदेश में एक हजार से भी अधिक म्यूजिक कंसर्ट कर चुके हैं. पर यह सफलता रातों रात नहीं आई. किसी ने चांदी की तश्तरी में सजाकर यह उन्हें नहीं परोसा. उन्होंने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे. एक बार तो कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या तक करने निकल पड़े थे. पर किसे पता था कि व्यापार वाणिज्य में अपना सबकुछ गंवा बैठे कैलाश को वह विद्या काम आ जाएगी जो उन्होंने खामख्याली में सीखी थी. बचपन से ही संगीत के प्रति उनकी रुचि थी. वे ऋषिकेश जाकर बस गए थे. वहां साधु-संतों की सोहबत करते और उनके साथ भजन गाया करते. इसी तरह उनकी आवाज न केवल खुली बल्कि सध भी गई. धीरे-धीरे उनकी आवाज सौ लोगों के बीच अलग से सुनाई देने लगी. फिर काम काजी जीवन प्रारंभ हुआ और संगीत दिल के करीब पर जीवन में हाशिए पर ही रहा. पर वक्त को कुछ और मंजूर था. उनके गीत अपने समय पर मशहूर होते चले गए और आज संगीत ही उनकी दुनिया है. दिल के करीब तो यह था ही आज उनका अध्यावसाय भी बन गया है. दरअसल, प्रकृति की तरह ही हमारा जीवन भी विविधताओं से भरा हुआ है. हम जीवन भर किसी न किसी से कुछ न कुछ सीख रहे होते हैं. हम पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों से भी सीखते हैं. तभी तो इंसानों को इनकी उपमाएं दी जाती हैं. इनमें से कौन सा ज्ञान कब काम आ जाए कुछ कहा नहीं जा सकता. पर ब्रिटिश शिक्षा पद्धति ने हमें कोल्हू का बैल बना दिया. सीखने-सिखाने की बातें तो खूब हुईं पर सबकुछ डिग्री और सर्टिफिकेट के मोहजाल में फंस कर रह गया. हम सभी शरीर के स्वामी हैं. हमारा शरीर सबसे पहले हम से ही बातें करता है. पर इसे समझने वाला अलग और बीमार पड़ने पर इसका इलाज करने वाला अलग. मशीनों को समझने वाला भवन निर्माण में दिमाग नहीं लगा सकता. हमारे आसपास ऐसे सैकड़ों उदाहरण बिखरे पड़े हैं जिसमें लोगों को अलग-अलग विधाओं में अविश्वसनीय सफलता मिली है. टीवी की ही बात करें तो रियेलिटी शो में हम देख रहे हैं कि जिन बच्चों के पास अभी पांचवी या आठवीं की अंकसूची तक नहीं है, वो सफलता और शोहरत के शिखर पर जा रहे हैं. एक नया करियर शुरू करने की कगार पर खड़े हैं. संभवतः इसी तरह के स्किल की बात प्रधानमंत्री मोदी करते हैं पर जिन्हें इसे लागू करना है, क्या वे भी उनसे सहमत हैं? शायद नहीं. वैसे इससे ज्यादा फर्क भी नहीं पड़ता. सिंगर यदि सिंगर बनने से पहले दो चार डिग्रियां भी हासिल कर ले तो इसमें कोई बुराई भी नहीं है.
Gustakhi Maaf: जब कैलाश ने सुनाई अपना दास्तां
