-दीपक रंजन दास
छत्तीसगढ़ इन दिनों राजनीतिक बतोलेबाजी का अखाड़ा बना हुआ है। बिरनपुर मामले को लेकर जनभावना को भड़काने में लगे लोगों के साथ सरकार सख्ती से पेश आ रही है। हेट स्पीच देने वालों के साथ ही इन बातों को शेयर करने वालों पर पुलिस कार्रवाई कर रही है। सोशल मीडिया ग्रुप्स में ऐसे पोस्ट शेयर करने पर एडमिन तक की जिम्मेदारी तय करने की चेतावनी दी गई है। इस मामले में पुलिस ने भारतीय जनता पार्टी के आठ पदाधिकारियों को नोटिस भेजकर स्पष्टीकरण मांगा है। उधर, ईसाई धर्म को अपनाने वाले आदिवासियों से सुविधाएं छीनने की मांग की जा रही है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने साफ कर दिया है कि छत्तीसगढ़ में नफरत की राजनीति को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ईसाई आदिवासियों को लाभ से वंचित करने की मांग पर उन्होंने कहा कि यह फैसला केन्द्र सरकार को लेना है इसलिए छत्तीसगढ़ में रैली करने का कोई मतलब नहीं है। इस पर भाजपा के वरिष्ठ नेता का बयान आया है कि भाजपा संस्कृति की रक्षा करने का काम कर रही है। आदिवासियों की संस्कृति खतरे में है। पादरी भगवा कपड़ा पहनकर लोगों का धर्म परिवर्तन करा रहे हैं। अब धर्म परिवर्तन करने वालों का नाम नहीं बदला जाता। धर्मांतरण के इस कुचक्र से आदिवासी समाज टूट रहा है। जहां तक संस्कृति की रक्षा करने का सवाल है तो इस पर लंबी बहस की जा सकती है। शराब का भारतीय संस्कृति से गहरा रिश्ता है। कलवारों का यह पुश्तैनी पेशा रहा है। अब शराबबंदी की मांग की जा रही है। पशु बलि, यहां तक कि नरबलि भी सनातन संस्कृति का हिस्सा रही है। 1940 के दशक में भी दंतेवाड़ा के मंदिर में नरबलि दिए जाने का उल्लेख सरकारी रिकार्ड में दर्ज है। मवेशियों की खाल उतारने से लेकर चमड़े के जूते गांठने वालों का भी अपना समाज था। नगाड़े भी मवेशियों की खाल से मढ़े जाते थे। यह भी एक जाति विशेष का पुश्तैनी धंधा था। उनकी भी अपनी संस्कृति थी। छत्तीसगढ़ में अंगारमोती, चंद्रहासिनी, रायगढ़ का कर्मागढ़ आदि कई स्थानों पर आज भी देवी-देवताओं को बलि चढ़ाई जाती है। देश भर में ऐसे कई मंदिर हैं जहां आज भी बलि चढ़ाई जाती है। जामड़ी पाटेश्वरधाम इलाके में भी आदिवासी देवी-देवता को तुष्ट करने के लिए बलि चढ़ाते थे। संस्कृति रक्षकों ने वहां आदिवासियों की संस्कृति पर हमला किया। त्रिपुरा में 500 साल पुरानी बलि प्रथा को न्यायालय में चुनौती दी गई। अदालत ने पशुबलि को कानून का उल्लंघन माना। ओड़ीशा के बलांगीर में भी शूलिया जात्रा के दौरान पशु बलि दी जाती है। इसे रोकने की नाकाम कोशिशें की जाती रही हैं। समझ में नहीं आता कि कौन किसकी संस्कृति की रक्षा कर रहा है। देश में अनेक वैध कत्लखाने हैं पर पशुबलि गैरकानूनी है। एक ही पर्व नवरात्रि को मनाने की अलग-अलग प्रांतों में भिन्न-भिन्न परम्पराएं हैं। परम्पराएं बदलती भी हैं पर इससे संस्कृति पुष्ट होती है, नष्ट नहीं।
Gustakhi Maaf: किसकी संस्कृति का हो रहा संरक्षण
