-दीपक रंजन दास
पिछले कुछ दिनों से प्यार के फूहड़ प्रदर्शन के मामलों की बाढ़ सी आई हुई है. देश भर से बाइक पर प्यार करते जोड़ों की तस्वीरें और वीडियो सामने आ रहे हैं. पुलिस धरपकड़ भी कर रही है पर प्यार का यह फिल्मी स्टाइल युवाओं के सिर चढ़कर बोल रहा है. भिलाई की सड़कों पर गर्लफ्रेंड को गोद में बिठाए बाईक चलाने वाले को पुलिस ने पकड़ा और उसकी अच्छी खासी लानत मलामत की. अब राजधानी रायपुर का एक वीडियो सामने आया है. इस बार प्रेमी युगल स्कूटी पर सवार है. स्कूटी के लिए भी उन्होंने ड्राइवर रखा हुआ है. ड्राइवर गाड़ी चला रहा है और पीछे प्रेम हो रहा है. दरअसल, पिछले कुछ दशकों में समाज दिखावे की ओर तेजी से आगे बढ़ा है. अब इसी दिखावे का रंग अगर प्रेम के इजहार पर भी चढ़ जाए तो किसी को दोष नहीं देना चाहिए. जन्मदिन से लेकर शादी ब्याह तक में रस्में कम और दिखावा अधिक हो गया है. फेसबुक पर अपना पर्सनल अकाउंट बनाने के लिए जन्मदिन का उल्लेख करना जरूरी होता था. इसी जन्मदिन का इस्तेमाल कर फेसबुक का आर्टिफिशल इंटेलीजेंस लोगों को याद दिलाता था, और आज भी दिलाता है कि आज फलां-फलां मित्र का जन्मदिन है. पर फेसबुक से एक चूक हो गई. उसने लोगों की एनिवर्सरी का डेट नहीं पूछा. पर लोग तो वैवाहिक वर्षगांठ पर भी बधाई चाहते हैं. इसलिए सुबह-सुबह मंदिर जाकर एक सेल्फी वे खुद अपलोड कर देते हैं. इसके नीचे बड़े ही खूबसूरत अंदाज में लिखा होता है कि दंपति को साथ-साथ चलते कितने वर्ष हो गए. अब लगभग सभी शहरी दंपति शादी की 25वीं सालगिरह मनाने लगे हैं. कुछ लोग 50वीं भी मना लेते हैं. एक बार पोस्ट डाल दिया तो फिर उसकी स्वीकार्यता जांचने बैठ जाते हैं. कितने लोगों ने लाइक किया, कितने कमेंट्स आए. किस-किस ने बधाई दी. लाइक्स कमेंट्स कम लगे तो उसे दोबारा पोस्ट कर देते हैं, टॉप पोस्ट पर पिन कर देते हैं. भारत जैसे गर्म देश में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण का आरंभ कच्ची उम्र में हो जाता है. 10-11 साल के बच्चे भी सिंगल रहना पसंद नहीं करते. हाईस्कूल पहुंचते पहुंचते मामला सीरियस होने लगता है. कालेज पहुंचते तक तो वे मुंहफट हो जाते हैं. आज कल स्कूल कालेज में फैशन शो और रैम्प वॉक का जादू सिर चढ़कर बोल रहा है. कपल्स इसमें अपनी केमिस्ट्री प्रदर्शित करने की कोशिश भी करते दिखाई देते हैं. वैसे दिखावे का दायरा इतना भी सीमित नहीं है. एक जमाना था जब माता-पिता से लेकर गुरू अथवा शिक्षक भी अपनी सादगी के लिए जाने जाते थे. उनकी ये सादगी उनके व्यवहार, उनकी भाषा और उनके वस्त्रों में झलकती थी. पर अब ड्रेस कोड का जमाना है. एक होड़ सी लगी हुई है अलग-अलग रंग के परिधानों को एकत्र करने की. अब कोई नहीं चाहता कि मोर जंगल में नाचे. युवा इसी समाज की उपज हैं.
Gustakhi Maaf: प्यार का फूहड़ प्रदर्शन क्यों?
