-दीपक रंजन दास
376 ई.पू. में जन्मे विष्णुगुप्त अपनी कुटिल विद्वता के कारण कौटिल्य कहलाए. महर्षि चणक का पुत्र होने के कारण उनकी ख्याति चाणक्य के रूप में भी हुई. वे तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य थे. उन्होंने मुख्यतः भील और किरात राजकुमारों को शिक्षा दी. ये दोनों ही आदिवासी समुदाय हैं. उन्होंने पाटलीपुत्र के नंदवंशीय राजा धनानंद का नाश किया और चंद्रगुप्त को राजा बनाया. इस घटना को दो तरह से देखा जा सकता है. पहला तो यह कि एक धूर्त राजा को हटाकर उन्होंने एक ऐसे मेधावी व्यक्ति को सिंहासन पर बैठाया जो एक महान सम्राट बना. लोग इस घटना को इसी तरह से देखते हैं. पर इसका एक पहलू और है. चाणक्य ने राजद्रोह किया, म्लेच्छ राजा पर्वतक की सेना के साथ मिलकर अपने ही राज्य पर चढ़ाई करवाई और अपने ही राजा की हत्या के साजिशकर्ता बने. इस युद्ध में नंदवंश की सेना पराजित हुई और चन्द्रगुप्त के रूप में पाटलीपुत्र को नया राजा मिला. इतिहास की घटनाएं वही रहती हैं, बस देखने का नजरिया बदल जाता है. पिछले लगभग दो दशकों से देश में यही हो रहा है. धर्म के नाम पर राजनीतिक ध्रुवीकरण की चेष्टा हो रही है. मंचों से संत कह रहे हैं, बच्चों को हथियारबंद करो. अदालतों के हाथ बंधे हुए हैं. न्यायपालिका लंबी छुट्टी पर है. एक मित्र से पिछले दिनों इसी बात पर बहस हो गई. उसका परिवार विभाजन के बाद भारत में आकर सेटल हुआ था. तीन पीढ़ियां गुजर गईं, अब सबकुछ ठीक है पर अब वह नए सिरे से नाराज है. कहने लगा कि हिन्दुओं को भी हथियार रखना चाहिए. मैंने कहा, जरूर रखना चाहिए, बस इतना और तय कर लें कि दंगे भड़के तो हम किसे और किसके बच्चों को मारेंगे और अपने कौन से बच्चे को इस दंगे की आग में झोंकेंगे. अच्छा हुआ तभी भाभीजी आ गईं और दोनों बच्चों को आंचल में छिपाकर भीतर ले गईं. बहस खत्म हो गई. कल उसने व्हाट्सअप ग्रुप में दो मैसेज फारवर्ड किये. एक खबर थी कि रोजेदार पंडाल लगाकर डोंगरगढ़ के पदयात्रियों की सेवा कर रहे हैं. दूसरी खबर थी विशाखापत्तनम की. यहां मां दंतेश्वरी का एक मंदिर पिछले साल ही बना है जिसमें हिन्दुओं के साथ ही मुसलमान भी पूजा करते हैं. मन्नतें मांगते हैं. यह तो होना ही था. प्रकृति स्वयं न्याय करती है. प्रकृति का मतलब केवल पेड़-पौधे और नदी-पहाड़ नहीं है. कीट-पतंगे, पशु-पक्षी और स्वयं मनुष्य भी प्रकृति का हिस्सा है. जब धर्म का उपयोग राजनीति के लिए किया जाता है तो उसकी शुचिता नष्ट हो जाती है. धर्म की पुनर्स्थापना के लिए हमेशा भगवान नहीं आते. प्रकृति स्वयं सक्षम है. कुछ साल पहले मैंने भिलाई के एक स्कूल के प्रत्येक चौखट के ऊपर कुरान की आयतें लिखी हुई देखी थी. ऐसा ही होता है. जब बात स्वयं पर आती है तो लोग मंदिर भी जाते हैं और मजार पर चादर भी चढ़ाते हैं.
Gustakhi Maaf: हिन्दू रख रहे रोजा, मुसलमान कर रहे सेवा
