-दीपक रंजन दास
यातायात सुरक्षा पर हम केवल बातें ही करते हैं. साल में एक बार सड़क सुरक्षा सप्ताह मना लेते हैं. दो चार दर्जन भाषण होते हैं. कुछ लोग लिख पढ़ कर अपनी भड़ास निकाल लेते हैं. हम भी वही कर रहे हैं. हमारा मनोभाव ही बदल चुका है. यातायात सुरक्षा की बातें करने वालों पर तो लोग हंसते हैं. कुम्हारी फ्लाईओवर पर जो हादसा हुआ, उसके लिए हम दोषी ढूंढ रहे हैं. ठेकेदार के खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर लिया है. लोग राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अधिकारियों के खिलाफ भी एफआईआर की मांग कर रहे हैं. कुछ लोग पुलिस और हाइवे पैट्रोलिंग को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. जनता की सहानुभूति, जैसा कि हमेशा होता है, मृतक परिवार के साथ है. लोग इस बात को नजरअंदाज करना चाहते हैं कि बाइक इतनी रफ्तार में थी कि ब्रेक मारने पर तीन सवारी सहित स्किड हो गई. बाप बेटी नीचे जा गिरे, मां पिलर से टकराकर वहीं लटक गई. दंपति की घटनास्थल पर ही मौत हो गई और तीन बच्चे अनाथ हो गए. इसी जगह से एक कार भी नीचे गिर गई. इससे पहले नेहरू नगर चौक पर भी ऐसा ही हादसा हो चुका है. फर्टाटे से बाइक दौड़ाकर दो युवक फ्लाइओवर पर चढ़ गए. टर्न पर पता चला कि आगे तो सड़क ही नहीं है. कुम्हारी फ्लाईओवर पर सड़क थी जो एकाएक गायब हो गई. कायदा कहता है कि कहीं भी सड़क बंद हो या उसपर काम चल रहा हो तो ट्रैफिक को डाइवर्ट किया जाना चाहिए. इसकी सूचना वहां होनी चाहिए जहां से लोग उस सड़क पर प्रवेश करते हैं. पर हम सभी जानते हैं कि ऐसा करना किसी को भी जरूरी नहीं लगता. लोग अपनी सड़क को पूरा घेर कर पंडाल लगा लेते हैं. लोग उसमें घुसकर फंस जाते हैं. थोड़ी बातें ड्राइविंग की भी कर लें तो अच्छा रहेगा. अगर कोई बंदा अपनी गाड़ी नियम कानून के मुताबिक चलाकर रायपुर जा रहा है तो उसके दोस्त कहने लगते हैं, ला मैं चलाता हूँ. कोई कायदे से गाड़ी चलाए तो साथ बैठी पत्नी भी उलाहना देती है कि ऐसे में तो हम लेट हो जाएंगे. जब हमारी मानसिकता ही सबको धक्का देकर आगे निकलने की होगी तो सुरक्षा नियमों का पालन कौन करेगा. यह परिवर्तन हमारी मानसिकता का है. पिछले दो-तीन दशकों में दिखावा और फोकटिया प्रतिस्पर्धा की ऐसी बीमारी फैली है कि उचित अनुचित का बोध ही खत्म हो गया है. बारिश के मौसम में आधी रात को बिजली चली जाए तो बिना पर्याप्त सुरक्षा उपकरणों के गीली सीढ़ी लेकर लाइन मैन को अपने काम पर निकलना पड़ता है. हम बिजली विभाग की नाक में दम कर देते हैं. घर हो या अस्पताल, एक-एक साकेट पर टू-वे, थ्री-वे लगाकर एकाधिक उपकरण जोड़ दिये जाते हैं. कोलकाता के इससे एक अस्पताल में आगजनी हो गई और कई मारे गए. इसके बावजूद लापरवाही में कोई कमी नहीं आई है. इसलिए तो कहते हैं, “सेफ्टी इज लास्ट प्रायरिटी.”
गुस्ताखी माफ़: “यातायात सुरक्षा!” यह किस चिड़िया का नाम है




