-दीपक रंजन दास
भिलाई नगर निगम और यातायात पुलिस दुर्ग-भिलाई ने एक संयुक्त अभियान छेड़ा है. दोनों मिलकर मुख्य सड़कों के किनारे से अतिक्रमण हटा रहे हैं. सड़क की पटरियों (फुटपाथ) पर वाहन कबाडिय़ों का कब्जा है. यहां “यूज्ड कार”, “यूज्ड टू-व्हीलर” से लेकर फर्नीचर, लोहा लक्कड़ और फर्शी पत्थरों तक के ‘ओपन एयर शोरूम’ हैं. पटरियों पर कब्जा करने वालों में रिक्शा, ठेला, ऑटो, छोटा हाथी से लेकर क्रेटा, नेक्सा तक सभी शामिल हैं. लोग जहां तहां-गाड़ी लगा देते हैं. मना करने पर- “दो मिनट में आ रहा हूँ” कहकर निकल लेते हैं. पिक-पिक की आवाज के साथ गाड़ी लॉक हो जाती है. गजब तो यह है कि लोग कारों के शीशे उतारकर सड़क पर खड़े-खड़े ही फल और सब्जियां खरीदने लगते हैं. दरअसल, पिछले दो-ढाई दशकों में नवधनाढ्यों की एक पूरी फौज खड़ी हो गई है. एक तरफ जहां इनके शौक निराले हैं वहीं दूसरी तरफ इनसे तमीज की उम्मीद तो बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए. कोई भी इनके मुंह नहीं लगना चाहता. पार्किंग को लेकर कुछ कह दिया तो आंखें तरेरकर देखते हैं- मानो कच्चा चबा जाएंगे. वैसे भी इक्का-दुक्का जगहों को छोड़ दें तो शहर के अधिकांश बाजारों में पार्किंग की कोई व्यवस्था नहीं है. पार्किंग की व्यवस्था हो भी तो गाडिय़ों को वहां करीने से लगवाने में ही पसीना छूट जाएगा. सड़क पर कारों की संख्या बाइक से ज्यादा हो गई है. कार अब जरूरत की बजाय शौक ज्यादा है. जिन्हें कोई काम नहीं, वो भी ड्राइविंग सीख रहे हैं. किशोर वय के बच्चे भी “एक चक्कर लगा आता हूँ” के नाम पर कार लेकर निकल पड़ते हैं. व्यस्त दिनों में मॉल की विशाल बेसमेंट पार्किंग भर जाती है. गाडिय़ां सामने की सड़क पर छलक आती हैं. डी-मार्ट की पार्किंग के गेट बंद करने की नौबत आ जाती है. सिविक सेंटर के ‘हरिराजÓ वाले कोने का भी यही हाल है. पिछले कुछ समय से शहर में मल्टीलेवल पार्किंग की भी बातें हो रही हैं. यातायात व्यवस्था किसी भी शहर के चाल-चरित्र का आईना भी होती है. लोगों में कितना ‘सिविक सेंसÓ है, वहां की ट्रैफिक को देखकर ही इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. लोग तिराहों-चौराहों पर इस तरह गाड़ी लगाते हैं कि साइड स्ट्रीट से आने वालों के लिए सड़क पर चढऩा मुश्किल हो जाता है. कुछ लोग मोबाइल पर बात करते हुए 15-20 की रफ्तार से कार रेंगा रहे होते हैं. ऐसे लोग दूसरों को अनावश्यक ओवरटेकिंग के लिए बाध्य करते हैं. साल 2021 के लिए देश भर से जुटाए गए आंकड़ों की मानें तो सड़क हादसों में मरने वाले कुल एक लाख 55 हजार 622 लोगों में से 42 हजार 853 मौतें ओवरटेकिंग की वजह से हुई थीं. ओवरटेकिंग के अधिकांश मामले मजबूरी के होते हैं जिसके लिए सड़क पर खड़ी गाडिय़ों से लेकर रेंगने वाली गाडिय़ां दोनों समान रूप से जिम्मेदार होती हैं. इनकी जिम्मेदारी तय नहीं की तो बाकी प्रया ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित होंगे.